गोधरा कांड पर अदालत के फैसले ने ख्रीस्तीयों एवं मुसलमानों को किया निराश
अहमदाबाद, 23 फरवरी सन् 2011 (ऊका न्यूज़): अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने मंगलवार को
गोधरा रेल कांड को साज़िश बताते हुए 31 व्यक्तियों को दोषी पाया, 63 अभियुक्तों को बरी
करने का आदेश दिया तथा इस मामले के मुख्य अभियुक्त मौलवी हुसैन उमरजी को बरी कर दिया
है।
27 फ़रवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एक डब्बे में लगाई गई आग के लिए
गिरफ़्तार अभियुक्तों पर चलाये जा रहे मुकद्दमें में अदालत ने उक्त फ़ैसला दिया। रेल
के डिब्बे में लगाई गई आग में 59 हिन्दू कारसेवक मारे गये थे। इस घटना के उपरान्त भड़के
हिन्दू मुसलिम दंगों को भारतीय इतिहास का सबसे जघन्य दंगा माना गया है जिसमें 1,182 लोग
मारे गये थे। हत्या के शिकार अधिकांश मुसलमान थे। दंगों के कारण कम से कम एक लाख लोग
विस्थापित भी हो गये थे।
गुजरात के मुसलमान एवं ख्रीस्तीय संगठन इस बात पर बल
देते रहे हैं कि गोधरा का रेलकांड पूर्वनियोजित षड़यंत्र नहीं था बल्कि हिन्दुओं द्वारा
भड़काई गई कार्रवाई थी जबकि अदालत ने इसे पहले से सोची गई साजिश बताया है।
गुजरात
के मानवाधिकार कार्यकर्त्ता येसु धर्मसमाजी पुरोहित फादर सैडरिक प्रकाश का कहना है कि
षड़यंत्र का आरोप विफल हो गया है क्योंकि अदालत ने मुख्य आरोपी को निर्दोष पाया है। इसके
बावजूद अदालत द्वारा घटना को षड़यंत्र निरूपित करना वास्तव में हास्यस्पद है।
बरोडा
के काथलिक धर्माध्यक्ष रोज़ारियो गॉडफ्री डिसूज़ा ने फैसले को अनर्थ बताकर कहा कि "ऐसा
प्रतीत होता है कि न्यायाधिकरण ने अपनी रीड की हड्डी खो दी है तथा वह न्याय को अनदेखा
कर गुजरात सरकार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है।"
धर्माध्यक्ष ने इस बात
पर भी खेद व्यक्त किया कि जिन लोगों को बरी कर दिया गया है उन्हें निर्दोष होते हुए भी
नौ साल कारावास में व्यतीत करने पड़े।
इस बीच, येसु धर्मसमाज के कार्यकर्त्ता
फादर स्टेनी जाबामलाई चाहते हैं कि सरकार अकारण कारावास में रखे गये लोगों की क्षतिपूर्ति
करे।
ग़ौरतलब है कि मुकद्दमा सन् 2009 में शुरु हुआ जबकि अभियुक्तों को सन् 2002
में गिरफ्तार किया गया था।