2011-02-14 20:32:14

सामुदायिक जीवन कलीसिया की अभिव्यक्ति


वाटिकन सिटी, 14 फरवरी, 2011 (ज़ेनित) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा कि सामुदायिक जीवन पुरोहितीय जीवन को आकर्षित कर सकता है और इसे मदद दे सकता है पर वास्तव में यह एक ऐसा पथ है जिसके द्वारा स्वयं को ईश्वर में एक किया जाना चाहिये।"
संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने ‘फ्रैटरनिटी ऑफ सेंट चार्ल्स’ समुदाय की स्थापना की 25वीं वर्षगाँठ के अवसर पुरोहितों और सेमिनेरियनों को संबोधित किया। संत पापा ने " कलीसिया में अभिषिक्त पुरोहितों का स्थान " और " पुरोहितीय जीवन में सामुदायिक जीवन का स्थान " पर अपने विचार व्यक्त किये।
संत पापा ने कहा, " ख्रीस्तीय पुरोहिताई अपने आपमें साध्य नहीं है। कलीसिया की स्थापना के समय ही येसु की इच्छा थी कि पुरोहिताई की भी स्थापना हो।"
उन्होंने कहा कि " पुरोहिताई की महिमा इसी में है व्यक्ति येसु और उसके रहस्यात्मक शरीर अर्थात् कलीसिया की सेवा करे। यह कलीसिया का एकमात्र और नेक लक्ष्य को परिलक्षित करता है। यही येसु को लोगों के समक्ष लाता क्योंकि इसी के द्वारा पुरोहित येसु मसीह के अनन्त पुरोहिताई में सम्मिलित होता है।"
सामुदायिक जीवन के बारे में बोलते हुए संत पापा ने कहा कि " पुरोहितों के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वे कहीं अकेले जीवन न जीयें पर अपने छोटे समुदाय का साथ दें, एक दूसरे को सहारा बनें और इस तरह से येसु को सेवा करने के अपने समर्पण और स्वर्गराज्य के प्रचार करने की अपनी प्रबल इच्छा को को मजबूत रखें।
संत पापा ने कहा कि सामुदायिक जीवन धर्मसमाजी जीवन के लिये न तो आकर्षित करने का सबसे पहला बिन्दु है न ही एकाकीपन और मानव कमजोरियों को दूर करने का एकमात्र तरीका ही। वास्तव में, सामुदायिक जीवन येसु की ओर से दिया गया एक वरदान है अर्थात् कलीसियाई जीवन। यही सामुदायिक जीवन आरंभिक कलीसियाई जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया और वहीं से पुरोहिताई बुलाहट का उदय भी हुआ।
संत पापा ने कहा कि " दूसरों के साथ जीना अर्थात् इस बात को स्वीकार करना कि मुझे लगातार प्रभु की ओर लौटना है और इस वापसी के पथ की सुन्दरता को पहचानना, नम्रता में आनन्द मनाना, और प्रायश्चित करना है। इसके साथ दुसरों के साथ जीना अर्थात् वार्ता, मेल-मिलाप और आपसी सहयोग का जीवन जीना।
















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