आस्ट्रेलियाई मिशनरी और उनके दो बच्चों की हत्या के मामले में अभियुक्त के उम्र कैद की
पुष्टि
भारत की सुप्रीम कोर्ट ने सन 1999 में आस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो
बच्चों की हत्या के मामले में अभियुक्त दारा सिंह को दी गयी उम्र कैद की सज़ा की पुष्टि
की है। स्थानीय अदालत ने दारा सिंह को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई थी लेकिन उडीसा उच्च
न्यायालय ने इसे उम्र कैद में बदल दिया था। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पी सत्यशिवम
और बी एस चौहान ने मृत्यु दंड की सज़ा बहाल करने के लोक अभियोजक की अपील को खारिज कर
दिया।माननीय न्यायाधीशों ने अपराध की कड़ी निन्दा की लेकिन इसे उस श्रेणी में रखने से
इंकार कर दिया जिसके लिए मृत्युदंड की सज़ा दी जाये। भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय
सम्मेलन के प्रवक्ता फादर बाबू जोसेफ ने कहा कि हम न्यायालय के फैसले को स्वीकार करते
हैं। यह 1999 के नृशंस घटना का स्मरण कराती है जब ग्राहम स्टेंस और उनके दो पुत्र 10
वर्षीय फिलिप और 8 वर्षीय तिमथी की आग लगाकर हत्या कर दी गयी जब वे अपनी जीप गाड़ी में
सो रहे थे। बीबीसी समाचार सेवा के अनुसार दिल्ली कैथोलिक चर्च के प्रवक्ता फादर दोमनिक
इमानुएल ने अदालत के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वो ख़ुद भी फांसी की सज़ा के हक़
में नहीं थे. “हमारा धर्म माफ़ी में विश्वास रखता है. उम्र क़ैद इन लोगों को सुधरने का
भी मौका देता है. मुझे खुशी है कि उन्हें उम्र क़ैद मिली है क्योंकि उन्हें अपने कर्मों
पर सोचने का भी मौका मिलेगा और शायद कुछ अच्छी नसीहत भी मिलेगी.” ज्ञात हो कि ग्राहम
स्टेंस उड़ीसा राज्य में कुष्ठ रोगियों के लिए लगभग 30 सालों से सेवा कार्य करते थे।
दारा सिंह के नेतृत्व में एक भीड़ ने 22 जनवरी 1999 को उनकी जीप को आग लगा दी थी जब वे
मनोहरपुर गाँव में अपनी जीप में दो पुत्रों के साथ सोये थे। मिशनरियों और ईसाई संस्थानों
के खिलाफ हमलों की श्रृंखला हुई थी जिसके लिए अतिवादी हिन्दु संगठनों पर दोषारोपण किया
गया था जिनका मानना था मिशनरी लोग निर्धन हिन्दुओं का बलात या धन देकर धर्मांतरण कराते
हैं। ईसाईयों ने अनेक बार इन आरोपों का खंडन किया है। भारत में हिन्दु धर्मानुयायियों
की संख्या आबादी का 80 प्रतिशत से भी अधिक है जबकि ईसाईयों की आबादी मात्र लगभग 2 प्रतिशत
है।