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कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 20
7 दिसंबर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स - अन्तर कलीसियाई वार्ता


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी थी जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना गया । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया गया था । काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के बारे में हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठे मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘नयी पूजन विधि के बारे में कलीसियाई धर्मशिक्षा बारे में । आज हम सुनेंगे अंतरकलीसियाई वार्ता के बारे में।
76. श्रोताओ, अन्तकलीसियाई एकता के बारे में बातें करते हुए हम आपको बता दें कि एकता के लिये प्रार्थना करने की शुरुआत स्वयं येसु मसीह ने ही की थी। आज के युग में भी एकता के लिये प्रार्थना करने की सख्त ज़रूरत है। येसु ने अपने प्रवचन में इस बात पर बल दिया था कि एकता की बनाये रखें। अनेकता या किसी भी अन्य प्रकार की बातें जो एकता को भंग करते हों एक ख्रीस्तीय लिये शोभा नहीं देता है। ख्रीस्तीय समुदाय में फूट और आपसी तनाव येसु के उपदेशों का विरोधाभास है, इससे लोगों को भी आघात पहुँचता है। अगर हम येसु की प्रार्थना की याद करें जिसे हम योहन के 17वें अध्याय के 21वें पद में पाते हैं येसु ने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि ईसाइयों की एकता को देख कर दुनिया विश्वास करे कि येसु मसीह प्रभु ही हैं। जब हम एकता की बात करते हैं तो हम इस बात पर गौर करें कि ईसाइयों के लिये ईश्वरीय ज्ञान का जो श्रोत है जिसे हम बाईबल कहते हैं एक ही है। दूसरी ओर, ख्रीस्तीय इतिहास के दो महासभा नाईचिन कोन्सतनतिनोपल में उच्चरित विश्वास, प्रथम शताब्दी का ख्रीस्तीय धर्म जब बिजनटाइन्स भी एक साथ थे संस्कार संतो का आदर और माता मरिया को ईश्वर की माता के रूप में मानना हमारी एकता के चिह्न हैं।
77. हम आपको बता दें कि अन्तर कलीसियाई एकता का आधार है बपतिस्मा संस्कार । इसी बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम एक पिता परमेश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ बन जाते हैं। इसी बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम इस बात के प्रोत्साहित किये जाते हैं कि हम एक साथ प्रार्थना करें एक ही संस्था में अन्तरकलीसियाई एकता के बारे विचार-विमर्श करें, बाइबल का अध्ययन करें। पर कई बार कलीसिया ने इस दिशा में कार्य करने में कठिनाई का अनुभव किया है। अभी भी ईराक और येरूसालेम में इस संबंध में कलीसियाई नेता अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। आज इस बात की ज़रूरत है कि प्रत्येक ख्रीस्तीय को कलीसियाई एकता के बारे में धर्मशिक्षा दी जाये ताकि प्रत्येक ईसाई इस बात से सहमत हो सके कि उन सभी बातों को नहीं छापा जाना चाहिये जिससे कलीसियाई एकता में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न हो जाये या दूसरे की भावना को आघात पहुँचे।
78. हम आपको यह भी बता दें कि अन्तर कलीसियाई एकता लोगों से इस बात की उम्मीद करती है कि इस बात का ईमानदारी से प्रयास किया जाये कि जो भी धारणायें हमने दुसरे समुदाय के प्रति बना लिया है उसे हम मन से निकाल बाहर करें और एक समझदारी का वातावरण बनायें, ताकि विश्वास, संस्कार तथा प्रेरितिक कार्यों के द्वारा अपनी एकता का साक्ष्य दे सकें। सही मायने में अन्तरकलीसियाई एकता व वार्ता का अर्थ है कलीसियाई सदस्यों का मिलकर सत्य की खोज करना। इस प्रकार की वार्ता के कई चरण हो सकते हैं । आधिकारिक तौर पर संत पापा ने मध्यपूर्व में अन्तकलीसियाई एकता की पहल की है और दूसरे अन्य प्रयासों के तहत् ‘प्रो ओरिन्ते दि वियेन्ना फांउन्डेशन’ ने पूर्वी राष्ट्रों के ईसाईयों और ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों को एक मंच में लाने का प्रयास किया है। उन्हें एक साथ लाने के बाद उन्होंने आपस में ईशशास्त्रीय चिंतन भी किये हैं जिससे कलीसिया को अनेक लाभ हुए हैं विशेष करके क्रिस्टोलोज़ी या ख्रीस्तविषयक ज्ञान ओऱ एकलेसयोलोज़ी अर्थात कलीसियाई धर्मसिद्धांत के क्षेत्र में। इसी मंच ने इस विषय में भी चिन्तन करना आरंभ कर दिया है कि रोम के धर्माध्यक्ष अर्थात् संत पापा का ख्रीस्तीय एकता के संबंध में क्या भूमिका हो सकती है। संत पापा जोन पौल द्वितीयन अपने एक दस्तावेज़ ‘उत उनुम सिन्त’ में इस बात का ज़िक्र किया था कि वे इस बात की ज़िम्मेदारी उठाते हैं कि वे एक रास्ता निकालेंगे जिसमें दोनो विधियों लैटिन और ‘ईस्टर्न कैनोनिकल ट्रडिशन’ को समाहित किया जायेगा। इसमें इस बात का भी प्रयास किया जायेगा कि दोनों पक्षों के विचारों को लिया जायेगा और उन्हें अंतरकलीसियाई एकता के मजबूत करने का प्रयास किया जायेगा। संत पापा ने यह भी कहा कि अन्तरकलीसियाई एकता न सिर्फ़ संत पापा का दायित्व है वरन् प्रत्येक ख्रीस्तीय का और प्रत्येक स्थानीय कलीसिया का ताकि ख्रीस्तीय एकता सचमुच में सुदृढ़ हो सके।
79. इस संबंध में जिन बातों से ख्रीस्तीय एकता मजबूत हो सकती है वे हैं - प्रार्थना, पवित्रता की खोज, ह्रदय परिवर्तन और उपहारों का आपसी आदान-प्रदान। संत पापा ने यह भी कहा कि एकता के लिये यह भी आवश्यक है कि विभिन्न कलीसिया के लोग एक दूसरे का सम्मान करें सहयोग करें उदारता का भाव रखें औऱ सामाजिक न्याय के लिये एक साथ कार्य करें। इस प्रकार के क्रियाकलापों को प्रभावपूर्ण तरीके से सम्पन्न करने में मीडिया शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी आपसी सहयोग मदद दे सकते हैं।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अन्तर्गत आज में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित अन्तरकलीसियाई वार्ता के बारे में। अगले सप्ताह हम सुनेंगे अन्तरकलीसियाई वार्ता के बारे में सुनना जारी रखेंगे।








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