हैदराबाद, 3 जनवरी, 2011(उकान) मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रसिद्ध
मानवाधिकार कार्यकता केजी कन्नाबिरन का 30 दिसंबर 2010 की शाम साढे़ छह बजे हैदराबाद
स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। पेशे से वकील रहे 81 वर्षीय कन्नाबिरन के परिवार में
उनकी पत्नी बसंता, दो बेटियां कल्पना, चित्रा और बेटा अरविंद हैं। मोन्टफोर्ट ब्रदर
समाज सेवी ब्रदर वरगीस थेकानाथ ने अपने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि चर्च ने एक ईमानदार
मित्र खो दिया है। केजी कन्नाबिरन निर्भय उत्साही और मानवाधिकारों के रक्षक खो दिया है।
मानवाधिकार के राष्ट्रीय दूत कहे जाने वाले कन्नाबिरन पिछले पांच दशकों से नागरिक
अधिकारों के लिए संघर्षरत थे। कन्नाविरन का चले जाना एक ऐसे दीपक का बुझना है जो हमेशा
लोगों के हक के लिए जलता रहा। ब्रदर थेकानाथ ने कहा कि चर्च ने एक महान युगद्रष्टा,शिक्षक
और सलाहकार को खो दिया है। कन्नाबिरन आंध्र प्रदेश सिविल लिबर्टिज कमिटी (एपसीएलसी) के
पंद्रह वर्ष और पीयूसीएल के दस वर्ष तक अध्यक्ष रहे। उन्होंने सन् 2004 में माओवादियों
और सरकार के बीच शांति समझौते के लिये भी विशेष भूमिका निभायी थी। वे ईमानदार और सामाजिक
न्याय के महान् समर्थक और सिविल सोसायटी के अंतःकरण के रक्षक थे। विदित हो कि किन्नाबिरन
उड़ीसा में हुए ईसाई विरोधी दंगे मे मारे गये लोगों और पीड़ितों के न्याय के लिये भी
कार्य किया । एक माह पूर्व ही उन्होंने 35 वकीलों के लिये एक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया
था ताकि वे कंधमाल मामलों में लोगों को न्याय दिला सकें। दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों
और नक्सलवादियों के ख़िलाफ राज्य प्रायोजित अत्याचार और हिंसा के खिलाफ वह आजीवन संघर्षरत
रहे। आंध्र प्रदेश में उन्हें मानवाधिकारों का पर्याय माना जाता रहा है। आंध्र प्रदेश
में माओवादियों के नाम पर की जाने वाली फर्जी मुठभेड़ों को उन्होंने हमेशा ही तीखे ढंग
से उठाया और कई मामलों में उन्होंने मानवाधिकारों की एक नयी परंपरा बहाल की थी।