वर्ष 2010 में, कहा जा सकता है कि काथलिक जगत ने कई उतार चढ़ाव देखे किन्तु काथलिक कलीसिया
के वर्तमान परमधर्मगुरु, विनीत और सौम्य स्वभाव वाले, दृढ़ संकल्प के धनी, सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें ने प्रेरितवर सन्त पौलुस के उत्तराधिकारी रूप में ख्रीस्त की कलीसिया
की बागडोर मज़बूती से सम्भाले रखी। सन् 2010 के फरवरी माह में, आयरलैण्ड के काथलिक धर्माध्यक्षों
से मुलाकात के अवसर पर ही, कुछेक पुरोहितों द्वारा बच्चों के विरुद्ध किये गये यौन दुराचारों
की पृष्टभूमि में, सन्त पापा ने पश्चाताप एवं नवीनीकरण का मार्ग सुझाया था। उन्होंने
कड़े शब्दों में इसकी निन्दा करते हुए कहा था, "यह एक जघन्य अपराध है, ऐसा पाप जो ईश्वर
का अपमान करता तथा उनके प्रतिरूप में सृजित मनुष्य की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता है।"
इसी सन्दर्भ में, 20 मार्च को आयरलैण्ड के काथलिक धर्मानुयायियों के नाम सन्त पापा ने
एक विशिष्ट पत्र जारी किया। इसमें सन्त पापा लिखते हैं कि कुछेक पुरोहितों के यौन दुराचारों
ने "सुसमाचार के प्रकाश को इस कदर धुँधला किया है कि इससे पहले शताब्दियों के उत्पीड़न
से भी वह धुँधला नहीं पड़ा था।"
इसी प्रकार 11 जून को पुरोहितों को समर्पित वर्ष
के समापन पर, सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्र, 97 राष्ट्रों के लगभग 15,000
पुरोहितों के समक्ष, ख्रीस्तयाग के दौरान प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा था, ...................."यह
अपेक्षित था कि पुरोहिताई की नयी चमक शत्रु को रास न आये; शत्रु तो चाहता था कि वह सदा
के लिये ख़त्म हो जाये, क्योंकि अन्ततः ईश्वर को तो, मानो, उसने विश्व के बाहर ही कर
दिया है। दुर्भाग्यवश, पुरोहिताई को समर्पित इस साल के आनन्दमय समारोहों के बीच में ही,
पुरोहितों के पाप प्रकाश में आये, विशेष रूप से, बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार की घटनाएँ,
जिसमें ईश्वर की ओर से मनुष्यों की देखरेख करनेवाले पुरोहित की बिल्कुल विपरीत छवि विश्व
के समक्ष उभरी।"
सन्त पापा ने उस अवसर पर कलीसिया की प्रतिबद्धता को भी आवाज़
दी और कहा कि इन पापों के लिये कलीसिया शुद्धीकरण का मार्ग अपनायेगी तथा दुराचार के शिकार
बने लोगों के प्रति पूर्ण एकात्मता दर्शायेगी, उन्होंने कहा, "हम प्रभु से तथा उन सबसे
भी क्षमा की याचना करते हैं जो दुराचारों से प्रभावित हुए हैं, साथ ही प्रण करते हैं
कि कलीसिया प्रभावित लोगों की मदद के साथ साथ यह प्रयास भी करेगी ताकि इस प्रकार घटनाएँ
फिर कभी न घटें।"
अपने शब्दों को कार्यरूप देते हुए सन्त पापा ने सन् 2010 में
सम्पन्न ग्रेट ब्रिटेन तथा माल्टा की यात्राओं के दौरान दुराचार के शिकार कुछेक युवाओं
से मुलाकात कर उनके प्रति गहन सहानुभूति का प्रदर्शन किया। साथ ही उन्होंने, इसी वर्ष
के दौरान, गुरुकुल छात्रों में प्रवेश हेतु कठोर नियमों की प्रकाशना की जिन्हें वाटिकन
की वेब साईट पर प्रकाशित किया गया। इस सन्दर्भ में 20 दिसम्बर को क्रिसमस के उपलक्ष्य
में, परमधर्मपीठ में कार्यरत रोमी कार्यालय के धर्माधिकारियों से मुलाकात के अवसर पर
सन्त पापा ने कहा, "विश्वास एवं भलाई के भाव में, हमें एक नया संकल्प करना होगा। हममें
इतनी क्षमता होनी चाहिये कि हम पश्चाताप कर सकें। अच्छे पुरोहितों के निर्माण हेतु हमें
हर सम्भव प्रयास करना चाहिये।"
सन् 2010, विश्व के अनेक क्षेत्रों में ख्रीस्तीय
धर्मानुयायियों के उत्पीड़न और ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा से भी चिन्हित रहा। इसी के मद्देनज़र
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, पहली जनवरी को मनाये जानेवाले, सन् 2011 के विश्व शांति
दिवस के सन्देश को धार्मिक स्वतंत्रता और शांति पर केन्द्रित रखा है। इस सन्देश में सन्त
पापा ने ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को विश्व की सर्वाधिक प्रताड़ित जनता रूप में परिभाषित
किया है। इसी को ध्यान में रखते हुए रोमी कार्यालय के धर्माधिकारियों को सम्बोधित प्रभाषण
में सन्त पापा "क्रिस्टियनोफोबिया" अर्थात् "ख्रीस्तीयों का भय" जैसे शब्द का प्रयोग
करते हैं। 31 अक्टूबर को ईराक के बगदाद शहर में सिरियाई काथलिक गिरजाघर पर हुए भयावह
बम विस्फोट के बाद पहली नवम्बर को, रविवारीय देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिये सन्देश में
वे इस तरह प्रार्थना करते हैं: "................ "इस निर्रथक हिंसा के शिकार लोगों के
लिये मैं प्रार्थना करता हूँ, यह इसलिये और अधिक क्रूर प्रतीत होती है क्योंकि इसने ईश्वर
के घर में प्रार्थना करने एकत्र हुए निर्दोष लोगों पर प्रहार किया, ईश्वर का घर, जो प्रेम
और पुनर्मिलन का धाम है। एक बार फिर, हिंसा के शिकार बने, ईराक के ख्रीस्तीय समुदाय के
प्रति मैं सस्नेह अपने सामीप्य का प्रदर्शन करता हूँ तथा यहाँ के सभी पुरोहितों एवं विश्वासियों
को आशा में दृढ़ बने रहने हेतु प्रोत्साहन प्रदान करता हूँ।"
इस बीच, विश्व के
अन्य क्षेत्रों में भेदभाव के शिकार बने ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को सन्त पापा ने, 25
दिसम्बर को, क्रिसमस के दिन रोम शहर एवं विश्व के नाम जारी अपने सन्देश में याद किया।
अफ्रीका एवं एशिया महाद्वीप के प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित करते हुए उन्होंने कहा, "मुक्तिदाता
का जन्म सोमालिया, डारफुर और आयवरी कोस्ट के लोगों के लिये स्थायी शांति एवं यथार्थ विकास
के क्षितिजों को खोले; उनका जन्म अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान में सुरक्षा और मानवाधिकारों
के सम्मान को प्रतिष्ठापित करे; तथा कोरियाई प्रायद्वीप में पुनर्मिलन को उन्नत करे।
इसी अवसर पर, चीन में, धर्म के कारण, सताये जा रहे लोगोंको उन्होंने याद किया ..................
"मु्क्तिदाता का जन्म, चीन की मुख्यधारा की कलीसिया के काथलिकों के विश्वास, धैर्य और
साहस को शक्ति प्रदान करे, ताकि उनके धर्म पालन और अन्तःकरण की स्वतंत्रता पर लगाये गये
प्रतिबन्धों से वे हताश न होंवे बल्कि, ख्रीस्त एवं उनकी कलीसिया के प्रति निष्ठा को
कायम रखते हुए, आशा की ज्योति जगाये रखें। बालक येसु का प्रेम उन सब ख्रीस्तीय समुदायों
को सम्बल प्रदान करे जो भेदभाव और अत्याचार सह रहे हैं तथा राजनैतिक एवं धार्मिक नेताओं
को प्रेरणा दे कि वे सबके लिये पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता को उपलब्ध कराने के प्रति समर्पित
रहें।"
सन् 2010 के दौरान विभिन्न अवसरों पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने
विश्व में तथा विशेष रूप से यूरोप और पश्चिमी जगत में धर्म के प्रति बढ़ती उदासीनता की
चेतावनी दी। सार्वजनिक जीवन से ईश्वर और विश्वास को हटा देने की प्रवृत्ति की उन्होंने
कई बार निन्दा की तथा नये तरीके से सुसमाचार के प्रचार का सुझाव रखा। इस उद्देश्य से
उन्होंने जून माह में एक नई परमधर्मपीठीय समिति की भी स्थापना की ताकि सुसमाचारी मूल्यों
को लोगों में फिर से आरोपित किया जा सके तथा सत्य, न्याय एवं प्रेम पर आधारित विश्व समाज
के निर्माण में रचनात्मक योगदान दिया जा सके।
आधुनिक समाज में विश्वास एवं धर्म
पालन की क्या भूमिका हो सकती है? इस प्रश्न का उत्तर सन्त पापा ने ग्रेट ब्रिटेन में
अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान दिया। 22 सितम्बर को वाटिकन में आयोजित आम दर्शन समारोह
के दौरान सन्त पापा ने बताया था कि ब्रितानी सांसदों एवं विश्व के कूटनीतिज्ञों के समक्ष
उन्होंने इस बात पर दिया कि विधि विधायकों के लिये विश्वास एक समस्या नहीं होनी चाहिये......................................
"उस प्रतिष्ठित जगह पर मैंने इस बात पर बल दिया कि विधि विधायकों के लिये धर्म कोई समस्या
नहीं होनी चाहिये बल्कि देश की ऐतिहासिक प्रगति एवं लोक वाद विवाद में सजीव योगदान देनेवाला
एक सकारात्मक घटक होना चाहिये, विशेष रूप से, जब सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में,
नैतिकता के आधार पर, विकल्पों को चुनने का प्रश्न उठता है।"
यूनाईटेड किंगडम की
प्रेरितिक यात्रा के अतिरिक्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सन् 2010 में माल्टा की
यात्रा की जहआं सन्त पौल ने सुसमाचार का सूत्रपात किया था, पुर्तगाल के फातिमा नगर में
सन्त पापा पवित्र कुँवारी मरियम के आगे प्रार्थना में नतमस्तक हुए, स्पेन के सान्तियागो
दे कोम्पोस्तेला तथा बारसेलोना नगरों का दौरा कर काथलिकों को उन्होंने उनके विश्वास में
सुदृढ़ किया। जून माह में साईप्रस की प्रेरितिक यात्रा की तथा निकोसिया में मध्य पूर्व
के धर्माध्यक्षों को "इन्सट्रूमेनटूम लाबोरिस" अर्थात् धर्मसभा की तैयारी हेतु विशिष्ट
दस्तावेज़ अर्पित किया। यह धर्मसभा अक्टूबर माह में वाटिकन में सम्पन्न हुई थी। धर्मसभा
के समापन याग में प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने मध्यपूर्व में शांति हेतु प्रार्थना करते
हुए कहा था.......................... "शांति, मानव प्राणी एवं मानव समाज के योग्य रीति
से जीने की अपरिहार्य शर्त है। यह मध्यपूर्व से पलायन को रोकने का भी सर्वोत्तम तरीका
है। ...... मध्यपूर्व में शांति स्थापना के लिये हम प्रार्थना करें। यह प्रार्थना भी
करें कि शुभ इच्छा रखने वाले सभी लोगों को ईश्वर द्वारा मिला शांति का वरदान सम्पूर्ण
विश्व में फैल जाये।"
सन् 2010 में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इटली तथा रोम
धर्मप्रान्त की भी अनेक पल्लियों का दौरा किया। कारपिनेत्तो रोमानो, सुलमोना एवं पालेरमो
में उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे माफिया के चँगुल में न पड़ें। ट्यूरिन में
उन्होंने येसु के पवित्र कफ़न के सामने घुटने टेककर श्रद्धा अर्पित की। प्रति बुधवार
एवं प्रति रविवार को आम दर्शन एवं देवदूत प्रार्थना समारोहों के अवसरों पर प्रवचनों के
अलावा, इस वर्ष के दौरान, सन्त पापा ने 15 राष्ट्रों के काथलिक धर्माध्यक्षों के साथ
पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकातें की। इसी वर्ष, उन्होंने कार्डिनल मण्डल को नवीकृत किया
तथा 24 नये कार्डिनलों को कलीसिया के राजकुमारों का दर्ज़ा प्रदान किया। साथ ही, छः धन्य
आत्माओं को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया। वर्ष के अन्त में, ठीक 30 दिसम्बर
को, एक "मोतू प्रोप्रियो" अर्थात् स्वप्रेरणा से लिखित पत्र की प्रकाशना की। इसके द्वारा
उन्होंने काथलिक कलीसिया तथा उसकी पवित्र पीठ से जुड़ी वित्तीय एवं आर्थिक संस्थाओं में
पारदर्शिता तथा किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि को रोकने हेतु नियमों की प्रकाशना की।
31 दिसम्बर को सन्त पापा सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में धन्यवाद ज्ञापन की धर्मविधि
का नेतृत्व कर रहे हैं। अपने परमाध्यक्षीय काल का आरम्भ करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें ने कहा था कि कलीसिया अभी जवान है। उनका यह विश्वास आज भी बरकरार है जिसे उन्होंने
इस वर्ष जून माह में जर्मनी के बायरिशे रुन्डफुँक रेडियो को दी भेंटवार्ता में आवाज़
देकर कहा था, "इतने अधिक उत्पीड़न के बावजूद कलीसिया आज भी आनन्दित है, यह बूढ़ी होती
कलीसिया नहीं है, हमने देखा है कि कलीसिया जवान है क्योंकि विश्वास आनन्द को प्रस्फुटित
कर नवस्फूर्ति प्रदान करता है।"