समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की रक्षार्थ सांस्कृतिक कार्यक्रम
बाँगला देश, 30 दिसंबर, 2010 (उकान) बाँगला देश के सिरीमंगल मौलबाजार के संत जोसेफ पल्ली
में करीब 200 छात्रों ने 27 से 29 दिसंबर तक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया ताकि
वे अपनी नाच-गान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा कर सकें। कार्यक्रम में उराँव
मुंडा और खड़िया जाति के आदिवासियों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरुआत
परंपरागत झुमुर नृत्य के द्वारा किया गया। झुमुर नृत्य आदिवासियों के बीच एकता का प्रतीक
है। एकता नृत्य के बाद एक परंपरागत नृत्य रैली का भव्य आयोजन किया गया था जिसमें
लोगों ने परंपरागत वेश-भूषा पहन कर भाग लिया। इस अवसर पर प्रतिभागियों ने जन्म शादी
और मरण की परंपरागत रीति रिवाजों को नाटिकाओं के सहारे दर्शाया। इस अवसर पर बोलते
हुए कार्यक्रम के संयोजक कारितास कार्यकर्ता पीयुस ननुवार ने कहा कि वर्षों की लापरवाही
के कारण आदिवसियों की समृद्ध संस्कृति भाषा, संगीत और परंपरायें लुप्त होने के कगार पर
है। यह उचित समय है कि आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने के लिये ठोस कदम उठाये जायें।
पीयुस ने बताया कि जब उन्होने खड़िया लिपि और भाषा के बार में इंटरनेट से जानकारी
प्राप्त की और हिन्दी बंगाली और सादरी भाषा के साहित्यों का अध्ययन किया तो पाया कि ये
कितने उपयोगी हैं। उन्होंने आशा जतायी कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजनों से लोग
अपनी संस्कृति को जानेंगे और अपनी अस्मिता एवं आत्मसम्मान की रक्षा के लिये सामने आयेंगे।
और दुनिया के लोग उन्हें चाय बगान के श्रमिकों से बढ़कर सम्मान देंगे। विदित हो कि
भारत की आज़ादी के पूर्व बंगला देश में रहे आदिवासियों को निकटवर्त्ती राज्यों से बलपूर्वक
उठाकर लाया गया था ताकि वे चाय बागान या रेल लाईन बनाने में कार्य करें। बाद में
उनमें से कई लोगों ने ईसाई धर्म को गले लगा लिया है। हॉली क्रॉस पुरोहित फादर गाब्रिएल
टोप्पो ने बताया कि चर्च के पुरोहितों एवं सिस्टरों ने आदिवासियों के बीच शिक्षा का प्रचार
किया जिससे उनकी स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। कार्यक्र में भाग लेने वालों
ने बताया कि इस सांस्कृतिक आयोजन से उन्हें अपनी जाति संस्कृति और भाषा की समृद्धता के
बारे में जानकारी प्राप्त हुई।