" धर्म परिवर्तन विरोधी विधेयक " ने भारत के मौलिक अधिकारों को और देश कि धर्मनिरपेक्ष
छवि के मर्म को आघात पहुँचाया है। नयी दिल्ली, 16 दिसंबर, 2010 (उकान) धर्म परिवर्तन
विरोधी विधेयक ने भारत के मौलिक अधिकारों को और देश कि धर्मनिरपेक्ष छवि के मर्म को आघात
पहुँचाया है। उक्त बात एक दलित वकील जेम्स मसे ने उस समय कहीं जब उन्होंने अखिल भारतीय
ख्रीस्तीय संघ की सभा में अपने विचार व्यक्त किये । दलित और सबआल्टर्न केंद्र के
निदेशक जेम्स ने कहा कि धर्मपरिवर्तन व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। हाल के दिनों में
कई राज्यों में धर्मपरिवर्तन विधेयक लाया जाना इस बात को इंगित करता है कि कुछ धार्मिक
कट्टरवादी ईसाई या मुसलिम बनने वालों के खिलाफ हैं। विदित हो कि दिल्ली में आयोजित
दो दिवसीय सेमिनार मे एनसीसीआई के सदस्यों ने धर्म संबंधी अनेक मुद्दों पर विचार किये।
इस सभा में ईसाइयों के अलावा मुसलिम और हिन्दुओं ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने बतायाकि
इस प्रकार कानून देश के हित में नहीं हैं। एनसीसीआई के सचिव ने रेभरेन्ड सोलोमोल
रोनगपी ने कहा ऐसे कानून का आधुनिक भारत की जनता के लिये कोई स्थान नहीं होना चाहिये।
आज की नयी पीढ़ी चाहती है उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हो और धार्मिक वार्तालाप
जारी रहेय़ इस अवसर पर बोलते हुए एनसीसीआई के नीति निर्धारण के लिये बनी आयोग की सचिव
अनिता मसीह ने कहाकि " हमें एकजुट होकर ऐसे कानून का विरोध करना चाहिये।" विदित
हो कि अरुणाचल प्रदेश छत्तीसगढ़ गुजरात हिमाचल प्रदेश मध्यप्रदेश उड़ीसा और राजस्थान
में यह विधेयक पारित हो चुका है इस विधेयक के तहत् धर्म परिवर्तन करने वाले को राज्य
को वगैर सूचना दिये सजा दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारत में ईसाइयों की संख्या
सिर्फ 2 प्रतिशत है और मुसलमानों की संख्या 13 प्रतिशत।