नयी दिल्ली, 4 दिसंबर, 2010 (सीबीसीआई)।ईसाई ने 5 दिसंबर को के के रूप में मनाने का निर्णय
किया है। 5 दिसंबर दलित लिबरेशन संडे के दिन एनसीसीआई और सीबीसीआई ने सयुक्त रूप
से लोगों को आमंत्रित किया कि ताकि वे दलित मुक्ति को अपना योगदान और समर्थन दें। एनसीसीआई
के सचिव असिर एबेनेज़ेर ने सीबीसीआई को बताया कि इस प्रकार की पहल से दलित ईसाइयों और
कलीसिया को बहुत लाभ हुए हैं। उन्होंने इस संगठन की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए
बताया कि ‘दलित रविवार’ के आयोजन से ही सन् 1950 ईस्वी की राष्ट्रपति की आज्ञा के तीसरे
परिच्छेद में निहित दलितों के साथ भेदभाव के प्रति सरकार का ध्यान खींचा जा सका। उन्होनें
आशा व्यक्त की है कि दलित रविवार के आयोजन से ईसाई इस बात को लोगों को बता पायेंगे कि
चर्च भेदभाव को एकदम बर्दाश्त नहीं करते हैं। विदित हो कि भारत की कुल 2 करोड़ पाँच
लाख ईसाई जनसंख्या में 70 फीसदी जनसंख्या दलित ईसाई है पर भारत सरकार ने अब तक दलितों
को दलित का दर्ज़ा नहीं देती और उनके अधिकारों से उन्हें वंचित रखी है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावे उनकी मानवीय पहचान और अस्मिता को भी मान्यता नहीं देती है।
रेवरेन असिर ने कहा कि प्राचीन काल से ही दलितों के साथ अन्याय होता रहा है उनके
अधिकारों से उन्हें या तो वंचित रखा गया है या उन्हें उनके अधिकार नहीं देने के कई बहाने
गढ़े जाते रहे है। उनकी आशा है कि चर्च के प्रयासों से दलितों को एक मंच पर लाया
जा सकेगा और उन्हें न्याय मिल पायेगा।