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कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 17
16 नवम्बर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स - कलीसियाई धर्मशिक्षा


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी थी जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना गया । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया गया था । काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने पाठको को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के बारे में हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठे मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘वर्णित मध्यपूर्व ईसाइयों के बारे में । आज हम सुनेंगे कलीसियाई साक्ष्य और धर्मशिक्षा के बारे में।
62. पाठको, हम आपको बता दें कि मध्य पूर्वी राष्ट्रों में ईसाई होने का अर्थ है येसु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा की कृपा से लोगों के दिलों और पूरी दुनिया में येसु की अनवरत उपस्थिति का साक्ष्य देना। कलीसिया का विश्वास है कि मध्यपूर्व राष्ट्रों में काथलिक येसु मसीह द्वारा ही बुलाया गये और येसु ही उनकी आशा है। यह इसलिये कि येसु का प्रेम ईसाइयों पर उँडेला गया है औऱ यह उन्हें कभी भी निराश होने नहीं देगा। इसप्रकार ईश्वरीय प्रेम से परिपोषित होकर सभी ईसाइयों का एक ही मिशन है कि वे येसु मसीह के साक्षी बनें। यह एक ऐसा साक्ष्य है जो काथलिक धर्मशिक्षामाला के द्वारा दूसरों के जीवन में एक मिशन के रूप में हस्तांत्रित किया जाता है।
पाठको, धर्माशिक्षा का यही वास्तविक अर्थ है कि विश्वास को ठीक से जानना और समझना और उसी के अनुसार अपना जीवन जीना। मध्यपूर्व की कलीसिया इस बात पर बल देती है कि प्रत्येक व्यक्ति को धर्मशिक्षा दी जाये। इतना ही नहीं युवाओं को चाहिये कि वे काथलिक धर्मशिक्षा को इतनी अच्छी तरह से सीखें कि वे खुद ही धर्मप्रचारक बन सकें। हालाँकि धर्मशिक्षा के मामले में काथलिक कलीसिया महसूस करती है कि यह कार्य इतना आसान नहीं है इसके लिये लम्बी तैयारी की ज़रूरत पड़ती है। मध्यपूर्व की काथलिक कलीसिया इस बात पर बल देती है कि मात-पिता भी अपने बच्चों को धर्मशिक्षा दें और उन्हें ऐसा बनायें कि एक दिन पारिवारिक ज़िम्मेदारी और कलीसियाई उत्तदायित्व भली-भाँति निभा सकें। श्रोताओ अगर काथलिक धर्मशिक्षा पर विचार करें तो हम पाते हैं कि परिवार और पल्ली को छोड़कर युवा स्कूलों कलीसियाई संगठनों औऱ लघु ख्रीस्तीय समुदायों में धर्मशिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। और अगर स्कूलों में बच्चों को उचित धर्मशिक्षा मिले तो बच्चों का विश्वास निश्चय ही सुदृढ़ हो सकता है।
63. मध्यपूर्व की कलीसिया के मूल्यांकन के लिये जो समिति बनी थी उसने लोगों की ओर से विचार मिलें हैं इस बात पर बल दिया गया है कि धर्मशिक्षा को बच्चों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।इसमें यह भी कहा गया है कि बच्चों के जीवन में धार्मिक शिक्षा को महत्त्व देना अर्थात् उनके आध्यात्मिक जीवन को मजबूत करना। पाठको, यहाँ इस बात को बताया जाना उचित होगा कि जब परिवार बच्चों के जीवन को धर्म से जोड़ने का प्रयास करते हैं तो वे उन्हें इस बात की भी शिक्षा देते हैं कि उनके जीवन के लिये एक आध्यात्मिक निदेशक हो जो उन्हें विभिन्न कठिनाइयों और जीवन की चुनौतियों का सामने करने में मददगार सिद्ध हो सके। आध्यात्मिक निदेशक या सलाहकार ईसाई को न केवल उनके काथलिक जीवन में मदद देगा वरन् वह ईसाइयों को इस बात का भी मार्गदर्शन करेगा कि एक ख्रीस्तीय को दूसरे धर्मावलंबियों के साथ कैसा जीवन जीना चाहिये। यह आध्यात्मिक सलाहकार लोगों को इस बात के लिये भी मदद देगा कि धर्मशिक्षा और रोज दिन के जीवन में एक ईसाई किस तरह से तालमेल के साथ जीवन जी सकता है। कैसे वह धार्मिक शिक्षा के सिद्धांतो को अपने रोजदिन के जीवन में लागू कर सकता है। धर्मशिक्षा के महत्त्व को ध्यान में रखकर इसी समिति ने इस बात को जोर दिया है कि स्कूलों, पल्लियों और धार्मिक संस्थानों में इस बात की व्यवस्था होनी चाहिये ताकि युवा धर्मशिक्षा ईसाई धर्मशिक्षा ग्रहण करने से वंचित न रह जायें।
64. यहाँ एक बात तो बहुत ही स्पष्ट है कि बिना उचित शिक्षाप्राप्त गुरु के धर्मज्ञान या विश्वास प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता है।इसलिये सर्वप्रथम तो इस बात की आवश्यकता है कि लोगों को धर्मशिक्षक बनने के लिये उचित ज्ञान और शिक्षा दी जाये। योग्य धर्मशिक्षक बनाये जाने के लिये उन्हें ईशशास्त्र और काथलिक धार्मिकता का ज्ञान होना भी परमावश्यक है। धर्मशिक्षकों का धर्मज्ञान तब ही उचित फल लायेगा जब धर्मगुरु या शिक्षक धर्मशिक्षा के अनुसार पर खुद ही चले और धर्मसिद्धांतों का साक्ष्य खुद ही अपने जीवन से दे।
65. धर्मशिक्षा की बातें करते हुए पाठको, आइये हम बात पर भी विचार करें आज की धर्मशिक्षा को हम सिर्फ मौखिक शिक्षा तक ही सीमित नहीं कर सकते हैं। मौखिक शिक्षा के द्वारा हम निश्चिय ही धार्मिक सिद्धांतों और नैतिक ज्ञान के बारे में बातें कर सकते हैं पर आज इस बात भी आवश्यकता है कि व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा देने के लिये मीडिया की अन्य तकनीकियों का भी प्रयोग किया जाना चाहिये। धार्मिक शिक्षा देते समय इस बात का ध्यान देना चाहिये कि धार्मिक शिक्षा देने में जो तकनीकि का प्रयोग किया जा रहा हो चाहे उससे व्यक्ति धर्म की सत्यता को आत्मसात कर सके।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम में हमने सुना कलीसियाई साक्ष्य और धर्मशिक्षा के बारे में। अगले सप्ताह हम सुनेंगे कलीसियाई धर्मशिक्षा व धर्मशिक्षा और पूजन विधि के बारे में।








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