लाहौर, 28 नवम्बर, 2010 (एशियान्यूज़) पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़रदारी कथित ईशनिन्दा
के लिये सजा मृत्यु दंड प्राप्त ईसाई महिला आशिया बीबी को अभी तुरन्त माफ नहीं कर सकते।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति क्षमादान दे सकते हैं जब उच्च अदालत में दायर
अपील लंबे समय तक लंबित रहे। विदित हो कि आशिया बीबी के मामले ने अंतरराष्ट्रीय मानव
अधिकार संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया की है और इससे धार्मिक भावनायें भड़क उठीं हैं।
हाल में पूरे पाकिस्तान में ईसाई समुदायों ने एक होकर प्रदर्शन किये हैं और मुस्लिम
समुदाय ने भी क्षमा के विरोध में और ईशनिन्दा कानून के पक्ष में प्रदर्शन किये। आलोचकों
का कहना है कि इस कानून का उपयोग व्यक्तिगत झगडों को निपटाने और अल्पसंख्यकों को जरिया
बन गया है। उधर पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चौधरी शुजात
हुसैन ने मीडिया से कहा कि " आशिया बीबी को क्षमा देने के बदले राष्ट्रपति को चाहिये
कि वह उसे सजा भुगतने दे और पूरे राष्ट्र को चाहिये कि वह राष्ट्रपति के निर्णय का समर्थन
करे। " " विभिन्न लोगों के द्वारा ईशनिन्दा की सत्यता के जाँच की अपील की भी हमे
कोई परवाह नहीं करनी चाहिये।" उसका अपराध क्षमणीय नहीं हो सकता। क्षमा करने से देश
की भावना को ठेस पहुँचेगी। उन्होंने कहा कि " हम पैगंबर मुहम्मद के लिये कोई भी बलिदान
करने को तैयार हैं और जो पैगंबर का अपमान करता है उसे मृत्युदंड दिया ही जाना चाहिये
" ‘लाइफ फॉर ऑल’ के अध्यक्ष रिज़वान पौल ने कहा कि आशिया बीबी के मामले पर गहराई
से अध्ययन करने से पता चलता है कि शुरु में दो महिलाओं ने आशिया से इसलिये जल ग्रहण नहीं
किया क्योंकि वह ईसाई है। जब ये झगड़ा बढ़ा तब देओबान्दी और बारेलभी मौलवियों ने
इस मामले को अपने ऊपर लिया और उन्होंने राष्ट्रपति जरदारी से कहा है कि महिला को क्षमादान
नहीं दें। क्वारी हनीफ़ जालुदारी ने कहा है कि राष्ट्रपति विदेशी दबाव में आकर जल्दबाज़ी
में कोई निर्णय न लें। विदित हो कि हनीफ का एक वफाकुल मदारिस अल अरेबिया नामक एक
संगठन है जो करीब 12 हज़ार सेमिनरी चलाता है जो पैगंबर के अपमान करने वालों के लिये मृत्यु
दंड की वकालत करता रहा है। उधर शेखपुरा जिले की अदालत में ईशनिन्दा के लिये मृत्युदंड
की सजा प्राप्त करने वाली ईसाई महिला आशिया बीबी ने इस आरोप का कड़ा विरोध किया कि उन्होंने
पैगंबर मुहम्मद का अपमान किया है। कुछ "उदारवादियों" ने 8 नवम्बर को माँग की कि सन् 1980
के दशक में तत्कालीन सैन्य तानाशाह जिया उल हक़ द्वारा मुस्लिमों की धार्मिक भावना को
संतुष्ट करने के लिये लाये गये ईशनिन्दा कानून का दुरुपयोग रोका जाना चाहिये। हनीफ़
जालुदारी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़रदारी को सलाह दी है कि वे न्याय की प्रक्रिया
चलने दे जिसके अनुसार यह मामला उच्च न्यायालय के बाद सुप्रीम कोर्ट में जाये और तब ही
राष्ट्रपति के पास पहुँचे।