कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य भाग
- 15 26 अक्तूबर, 2010 सिनॉद ऑफ बिशप्स – मध्यपूर्व में ईसाइयों का प्रत्युत्तर
पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने
कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन
एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा
बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष
सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया
इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है। परंपरागत
रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत,
मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन,
पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को
यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म
की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही
ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं। वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व
भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी
हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी
देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में
13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित
थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ
था। पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और
गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक
कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया
से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण
निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय
पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों
से आपको परिचित करा दें। पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने
सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व
में प्रवासी ईसाइयों के बारे में।आज हम ईसाई प्रवासियों के बारे में सुनना जारी रखेंगे।
48. पाठको, प्रवासियों की स्थिति के बारे में चर्चा करते हुए हमने इस बात पर विचार
किया है कि चर्च को इस संबंध में क्या करना चाहिये। इस संबंध में अन्य कलीसियाई संगठनों
का भी यह कर्त्तव्य है कि वे ईसाइयों को इस बात के लिये प्रेरित करें कि वे अपने पड़ोसियों
और अन्य समुदाय के लोगों और अपने देशवासियों के साथ अपना संबंध मजबूत करेंगे। इस संबंध
में यह भी कहा जा सकता है कि लोग विभिन्न स्तर पर एक-दूसरे से अपना रिश्ता मजबूत कर सकते
हैं। जैसे पर्यटन शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भी ईसाई अपना रिश्ता
मजबूत कर सकते हैं। इतना ही नहीं इन संगठनों का यह भी प्रयास होना चाहिये कि वे प्रवासियों
को उनके अपने ही देश में अपनी संपति पाने के लिये भी सहायता करनी चाहिये। 49. पाठको.
मध्यपूर्वी कलीसिया की एक और विशेषता यह है कि यहाँ एशिया और अफ्रीका से हज़ारों की संख्या
में ईसाई अपनी जीविका के लिये पलायन कर रहे हैं।इन प्रवासियों में अधिकतर महिलायें हैं
जो घरेलु कामगार महिला के रूप में कार्यरत हैं। मध्यपूर्वी राज्यों में कार्यरत ये महिलायें
चाहतीं उनका परिवार आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो। उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि उनकी
स्थिति नाजुक है और वे कई बार समाजिक अन्याय यौन शोषण और कई तरह के अन्य शोषण के शिकार
हो जाते हैं। कई बार तो ये उन एजेंटों द्वारा शोषित होते हैं जो उन्हें मध्यपूर्वी देशों
में जाने में मदद देते हैं तो कई बार अपने मकान मालिक द्वारा शोषित होते हैं। यहाँ इस
बात को भी बताना उचित होगा कि मध्यपूर्वी राष्ट्रों में श्रमिकों या मजदूरों संबंधी अंतरराष्ट्रीय
नियमों का भी कोई सम्मान नहीं किया जाता है। पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन
में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित
‘मध्यपूर्व की कलीसिया में ईसाई प्रवासियों की समस्या के बारे में।आज हम सुनेंगे प्रवासी
समस्या संबंधी ईसाई समुदाय के प्रत्युत्तर के बारे में। 50.धर्माध्यक्षों का मानना
है कि इस संबंध में आम लोगों से जो रिपोर्ट मिले हैं वह इस ओर इंगित करता है कि ईसाई
इस बात की आशा करता है कि चर्च उनकी धार्मिक जरूरतों की पूर्ति के साथ उनके जीवन के सामाजिक
और सांस्कृतिक पक्षों की ओर भी ध्यान दे। लोगों का अनुभव ऐसा रहा है कि वे अपने को असहाय
पाते हैं क्योंकि काथलिक कलीसिया भी एक सीमा तक ही मदद दे सकती है। कलीसिया को यह दायित्व
है कि वे स्थानीय लोगों को इस बात के लिये मदद दें कि वे चर्च के सामाजिक सिद्धांतों
को जान सकें तथा लोगों के साथ सामाजिक न्याय के लिये कार्य कर सकें। 51. पाठको, अब
आइये हम उन बातों पर विचार करें जिनके द्वारा मध्यपूर्वी कलीसिया के ईसाई अपने विश्वास
का साक्ष्य अपने दैनिक जीवन में देते हैं। इस संदर्भ में ईसाइयों का मठवासी जीवन लोगों
को प्रभावित करता है। मठवासी या एकांत जीवन का काथलिक कलीसिया और ऑरथोडॉक्स कलीसिया दोनों
बराबर का महत्त्व है। इस प्रकार का मठवासी जीवन इसलिये भी मह्त्त्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ
रहने वाले मठवासी देश के लिये ईश्वर को अपनी प्रार्थनायें चढ़ाते हैं। वे अपने निवेदन
की प्रार्थनाओं में उन बातों के लिये ईश्वर से अर्जी करते हैं कि परिवारिक मूल्यों की
रक्षा हो, समाज में अन्याय व अत्याचार न हो और लोग शांति और न्यायपूर्ण तरीके समस्याओं
का समाधान हो । इस संबंध में जो रिपोर्ट आये हैं वे यही बताते हैं कि मध्यपूर्वी राष्ट्रों
में मठवासी जीवन की परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। सिर्फ़ येरूसालेम के लैटिन
पैट्रियार्क के क्षेत्र में कई मठ हैं। दूसरी ओर मध्यपूर्वी कलीसिया की स्थिति पर
विचार करते हुए इस बात की जानकारी देना उचित होगा कि मध्यपूर्वी देशों में ऐसे संस्थानों
या धर्मसमाजों जिनकी शुरुआत पश्चिमी देशों में हुई है बहुत सफल रहे हैं। आम अनुभव रहा
है कि जो लोग अपने आप को ईश्वर की सेवा के लिये समर्पित किये हैं उन्होंने शिक्षा स्वास्थ्य
और सामाजिक और सांस्कृतिक विकास, अंतरकलीसियाई और अंतरधार्मिक वार्ता के क्षेत्र में
बहुत योगदान दिये हैं। पर ऐसा भी देखने को मिला है कि कई बार कुछेक धर्मसमाजियों ने अपने
व्यक्तिगत लाभ के लिये कार्य करने के प्रलोभन में भी फँसे पाये गये। इस संबंध मे लोगों
का कहना है कि वे विश्वास केलिये कार्य करें और विभिन्न व्यक्तिगत लाभ की गतिविधियों
में न फँसें। उनका मानना है कि समर्पित व्यक्तियोंका का मुख्य मिशन है आर्दश ख्रीस्तीय
जीवन जीना और अपने तीनों व्रतों - ग़रीबी शुद्धता और आज्ञापालन के प्रति वफादार रहना
और येसु मसीह का निकटता से अनुसरण करना। पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में
हमने जाना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व
की कलीसिया में ईसाई प्रवासियों की समस्या के प्रत्युत्तर के बारे में।अगले सप्ताह हम
सुनेंगे ईसाइयों के कलीसियाई जीवन के बारे में ।