कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य भाग
- 14 19 अक्तूबर, 2010 सिनॉद ऑफ बिशप्स – मध्यपूर्व में ईसाइयों की धार्मिक स्वतंत्रता
पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने
कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन
एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा
बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष
सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया
इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है। परंपरागत
रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत,
मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन,
पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को
यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म
की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही
ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं। वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व
भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी
हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी
देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में
13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित
थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ
था। पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और
गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक
कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया
से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण
निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय
पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों
से आपको परिचित करा दें। पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने
सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व
में ईसाई समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और इसलाम धर्म के बारे में। आज हम जानेंगे मध्यपूर्व
में प्रवासी ईसाइयों के बारे में। 41. पाठको, हम आपको बताना चाहेंगे कि सन 1970
ईस्वी के दशक में मध्यपूर्वी राष्ट्रों में इसलाम एक नये रूप में उभर कर सामने आया जिसने
ईसाइयों और अल्पसंख्यकों बहुत प्रभावित किया। इस काल में इसलाम का राजनीतिकरण शीघ्रता
से हुआ। कई राजनीतिक दलों ने इस्लाम को बढ़ावा दिया और कई लोगों ने तो इस्लाम और इसकी
जीवनशैली को ईसाइयों पर थोपना भी शुरु कर दिया। इस समय मध्यपूर्वी राष्ट्रों में जिस
इस्लाम का उदय हुआ इसने एक नारा दे रखा था ।उनका मानना था कि सभी समस्याओं का समाधान
इस्लाम में है। उनका मानना था कि समाज में बुराइयाँ हैं क्योंकि लोग इस्लाम तौर-तरीकों
से नहीं जीते हैं। इस बात को लोगों को समझाने के क्रम में कई मुसलमानों ने हिंसा का भी
सहारा लिया। 42. मुसलमानों में व्याप्त ऐसी विचारधारा ने ईसाइयों का जीवन दुभर कर
दिया। इस प्रकार के अतिवादी विचारों से न केवल ईसाई वरन् मुसलमान भी भयभीत हो गये।
और स्थिति यह बनी की दोनों ने मिलकर इसके संबंध में कुछ करने की ठानी। 43. पाठको,
मध्यपूर्व की काथलिक कलीसिया की स्थिति के बारे में अगर हम विचार करने लगें तो हम पायेंगे
कि एक समस्या जिससे काथलिक कलीसिया जूझ रही है वह है प्रवासियों की समस्या। धर्माध्यक्षों
की विशेष सभा को इस बात को ध्यान देना चाहिये कि वह प्रवासियों के लिये कुछ विशेष योजनायें
बनाये। सच कहा जाये तो मध्यपूर्वी राष्ट्रो की प्रवासी संबंधी समस्या की शुरुआत 19वीँ
सदी के अन्त में हुई। इसके दो स्पष्ट कारण थे । पहली समस्या राजनीति से संबंधित है
और दूसरी आर्थिक । पाठको कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने जाना ‘मध्यपूर्व
की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया में
ईसाई समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और इस्लाम धर्म के बारे में। अगले सप्ताह हम जानेंगे
काथलिकों की समस्याओं के प्रत्युत्तर के बारे में ।