2010-11-09 18:43:38

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 13
12 अक्तूबर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स – मध्यपूर्व में ईसाइयों की धार्मिक स्वतंत्रता


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । यह विशेष सभा का वर्ष 10 अक्तुबर से रविवार से रोम में आरंभ हो चुकी है और इसका समापन 24 अक्टूबर, को हो जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की चुनौतियों के बारे में । आज हम सुनेंगे मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और इसलाम धर्म के बारे में।
पाठको, हम आपको बता दें कि मध्यपूर्वी राज्यों में धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है पूजा पाठ करने की स्वतंत्रता है न कि अंतःकरण की स्वतंत्रता अर्थात् इस बात की स्वतंत्रता नहीं है कि व्यक्ति विश्वास करे या न करे अपने धर्म के अनुसार व्यक्तिगत या सार्वजनिक रूप से जीवन जीये या अपना धर्म परिवर्तन करे। साधारणतः मध्यपूर्वी राज्यों में धर्म एक सामाजिक या हम कहें राष्ट्रीय निर्णय है व्यक्तिगत नहीं। अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करे तो उसे समाज, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति विश्वासघात माना जाता है।
38. अगर कोई व्यक्ति ईसाई धर्म स्वीकार कर लेता है तो समाज इसे समझती है कि वह व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये ऐसा निर्णय लिया है न कि अपने व्यक्तिगत धार्मिक विश्वास के कारण। मध्यपूर्वी राज्यों में यह बात भी सत्य है कि मुसलमानों को राज्य की कानून ही अपने धर्म परिवर्त्तन करने से मना करती है। ईसाई भी जब अपना धर्म परिवर्त्तन करना चाहते हैं तो उन्हें अपने परिवार के सदस्यों या अपनी जाति की ओर से विरोध का सामना करना पड़ता है पर मुसलमानों की तुलना में इस मामले में वे ज़्यादा स्वतंत्र हैं। कई ऐसा भी देखने को मिला है कि ईसाई मुसलमान धर्म स्वीकार कर लेते हैं इसलिये नहीं क्योंकि वे इसलाम धर्म से प्रभावित हैं पर इसलिये क्योंकि इसलिये कि वे पारिवारिक परेशानियों से बच जायें। कई बार ईसाइयों को मुसलमान बनने के लिये मुसलमानों का दबाव का सामना करना पड़ता है।
धर्माध्यक्षों की महासभा की तैयारी के लिये जो रूपरेखा तैयार की गयी उसमें इस बात को जोर देकर बताया गया है कि ईसाइयों को इस बात का प्रयास नहीं करना चाहिये कि लोग दूसरों को ईसाई बनायें। हाँलाकि कई ईसाई समुदाय ऐसे हैं जो खुलकर धर्म के प्रचार में लगे हुए हैं। सिनॉद की रूपरेखा तैयार करने वाली समिति का विचार है कि धर्मप्रचार के संबंध में सभी कलीसियाओं को एक साथ विचार-विमर्श कर लेना चाहिये ताकि एक आम समझदारी बन सके जिसके तहत् हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अंतःकरण का सम्मान कर सके।
पाठको, हमको यह भी बता दें कि धर्मप्रचार के संबंध में कलीसिया के विचार बिल्कुल स्पष्ट हैं। संत पापा ने कहा है कि जो धर्म के नाम पर दूसरों की मदद करते हैं वे दूसरों पर अपने विश्वास को थोपने का प्रयास न करें। प्रत्येक ईसाई इस बात का गहराई से अनुभव करे कि खुला और उदारतापूर्ण प्रेम ही उसके ईश्वरीय प्रेम का सच्चा साक्ष्य है.
39. धर्म के संबंध में बोलते हुए कुछ लोगों ने यह सलाह भी दी है कि लोगों के मन-दिल को बदलने के लिये यह भी आवश्यक है कि हम लगातार धार्मिक स्वतंत्रता, दूसरों के प्रति सम्मान कानून के समक्ष न्याय और समानता जैसे विषयों पर बातचीत करें। मध्यपूर्वी राष्ट्रों की महासभा के लिये जो सलाह और निर्देश प्राप्त हुए हैं वे इस बात की ओर भी लोगों का ध्यान खींचना चाहते हैं कि राजनीतिक और धार्मिक नेता इसके लिये पहल करें ताकि धार्मिक स्वतंत्रता एवं अंतःकरण की स्वतंत्रता जैसे संवेदनशील मामलों पर आपसी समझदारी बढ़ सके।
40. पाठको, यदि हम मध्यपूर्वी राष्ट्रों में शिक्षा के बारे में बातें करें तो हम पायेंगे कि काथलिक कलीसिया का इस संबंध में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। साधारणतः काथलिक स्कूल और महाविद्यालयों में जो हज़ारों विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं वे ईसाइयों के अलावा विभिन्न अन्य धर्मावलंबियों विशेषतः मुसलमान यहूदी और ड्रूज होते हैं।शिक्षा के अलावा ईसाइयों का योगदान चिकित्सा और समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय है। अपनी सलाहों में लोगों इस बात पर बल दिया है कि ऐसे क्षेत्रों में कार्य करने के लिये कार्यकुशल प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता पड़ती है। वहीं जो लोग प्रेरिताई कार्यों पर बल देते हैं उनका मानना है कि ईसाई अपने कार्यों के द्वारा सुसमाचार के मूल्यों का प्रचार करें विशेष करके स्वतंत्रता जैसे मूल्यों का। उनका मानना है कि पल्लियों में इस बात पर जोर दिया जाये कि लोग मानवाधिकार जैसे मुद्दों के लिये कार्य के लिये सामने आये। इस क्षेत्र में मीडिया अपनी विशेष भूमिका प्रभावपूर्ण तरीके से अदा कर सकती है।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने जाना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया में ईसाई समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता इसलाम धर्म के बारे में। अगले सप्ताह हम जानेंगे मध्यपूर्व में प्रवासी ईसाइयों के बारे में।
















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