2010-10-13 11:44:53

बुधवारीय-आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
13 अक्तुबर, 2010


रोम, 13 अक्तुबर, 2010 (सेदोक, वीआर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

उन्होंने कहा - मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में हम फोलिन्यो के धन्य अंजेला के जीवन पर मनन-चिंतन करें।

धन्य अंजेला का जन्म सन् 1248 ईस्वी में हुआ था। बचपन से ही स्वतंत्र मिज़ाज की अन्जेला को धर्मसमाजियों के जीवन के प्रति उसका कोई आकर्षण नहीं था।

एक समय ऐसा भी था वह धर्मसमाजियों के निर्धनता के व्रत को तुच्छ दृष्टि से देखा करती थी। अपनी शादी के बाद अपने पारिवारिक जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए उसके जीवन में एक ऐसा मोढ़ आया जब उसने अपने आध्यात्मिक जीवन का परीक्षण किया और तब उनका मन परिवर्तन हो गया।

उन्होंने संत फ्रांसिस से प्रार्थना की और बताया जाता है कि उन्हें संत फ्रांसिस के दिव्य दर्शन हुए। सन् 1285 ईस्वी में उन्होंने संत फेलिचियानो में पापस्वीकार संस्कार ग्रहण किया।

उसके जीवन में दुःखों का अन्त नहीं हुआ। एक-एक करके उसकी माँ, पति और बच्चों की मृत्यु हो गयी। तब अंजेला ने अपनी संपति बेचने बेच दी और सेंट फ्रांसिस तीसरे ऑर्डर के धर्मसमाज में प्रवेश किया।

संत अंजेला ने अपने मनपरिवर्तन के बारे में आत्मकथा लिखी जिसे ‘द बुक ऑफ अंजेला ऑफ फोलिन्यो के नाम से प्रकाशित किया गया है।

इस किताब में धन्य अंजेला ने उन साधनों को बताया है जिससे हम अपना मन परिवर्तन या आंतरिक शुद्धि कर सकते हैं।

धन्य अंजेला के अनुसार तपस्या नम्रता और ईश्वर के लिये दुःख उठाकर हम अपना को आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ कर सकते हैं।

धन्य अंजेला ने अपनी किताब में अपने कई आध्यात्मिक अनुभवों, असीम आनन्द के क्षणों और ईश्वरीय अनुभवों की भी चर्चा की है। उन्होंने बताया है कि कई दिव्य अनुभवों का तो बखान करने में अपने को असमर्थ पायीं।

अंजेला लिखतीं हैं कि " ईश्वरीय प्रेम का गहरा अनुभव और पाप की सजा के भय ने उन्हें ‘ क्रूस का रास्ता ’ अपनाने के लिये प्रेरित किया और तब उन्हें ‘ प्रेम का मार्ग प्राप्त हुआ। "

आज हम धन्य अंजेला की प्रार्थना को दुहराते हुए प्रार्थना करें और कहें हे ईश्वर हमें अपने रहस्यों को जानने की शक्ति दीजिये ताकि हम आपके अवर्णनीय प्रेम को समझ सकें।

इतना कह कर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने इंगलैंड, आयरलैंड, थाईलैंड, डेनमार्क, नॉर्वे, साउथ अफ्रीका, इंडोनेशिया, स्कॉटलैंड, कोलोम्बिया, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और अमेरिका के तीर्थयात्रियों, विद्यार्थियों, उपस्थित लोगों एवं उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु येसु की कृपा और शांति का कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।









All the contents on this site are copyrighted ©.