2010-10-05 20:09:55

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 9
14 सितंबर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स – मध्यपूर्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम एक नया कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने जानकारी प्राप्त की ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ के बाईबल पर आधारित चिन्तन के बारे में। आज हम जानेंगे ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया की प्रेरितिक और मिशनरी कार्य के बारे में।
पाठको, हम आपको बता दें कि मध्यपूर्वी राष्ट्रों में विश्वासियों की ओर से विचार प्राप्त हुए हैं वह इस बात को स्पष्ट करती है कि ये राष्ट्र शुरु से ही प्रेरितिक कार्यों में लगे रहे हैं। सच पूछा जाये तो लोगों का मानना है कि यहाँ के लोगों का एक विशेष मिशन या दायित्व है कि वे सुसमाचार का प्रचार करें । इन देशों का इतिहास भी ऐसा रहा है कि इन्होंने सुसमाचार के प्रचार में विशेष ध्यान दिया है। हालाँकि इधर हाल के कुछ वर्षों में इसमें कमी आयी है और जो उत्साह आरंभिक वर्षों में देखा गया था अब कुछ कम हो गया है। आज हमारे राष्ट्रों में इस बात को महसूस किया जा रहा है कि उनका दायित्व कम नहीं हुआ है और उन्हें चाहिये कि वे सुसमाचार का प्रचार करें और लोगों में आशा का संचार करें। हम ऐसा करने को सक्ष्म हैं क्योंकि हमने पवित्र आत्मा को ग्रहण किया है।
21. धर्माध्यक्षों के मार्गनिर्देशन में पुरोहितों और पास्टरों का दायित्व सिर्फ इतना नहीं है वे मेषपालीय कार्यों में अपना ध्यान केन्द्रित करें पर उनका यह भी कर्त्तव्य है कि वे उन कार्यों की ओर ध्यान दें जिससे भविष्य में लाभ हो। उन्हें चाहिये कि वे उन कार्यों को प्राथमिकता दें जिससे लोगों के साथ उनका संबंध बड़े। उन्हें चाहिये कि वे युवाओं का आध्यात्मिक निर्देशन करें, बुलाहट के लिये सामुदायिक प्रार्थना दल का गठन करें ताकि अधिक-से-अधिक युवा ईश्वर की सेवा के लिये सामने आ सकें। पुरोहितों का यह भी कर्त्तव्य है कि वे परिवारों के साथ सीधे संपर्क में रहें और परिवार के सदस्यों को इस बात को बताने का प्रयास करें कि बुलाहट ईश्वर का वरदान है। ख्रीस्तीय परिवारों को इस बात को समझने की आवश्यकता है कि सिर्फ प्रार्थना दलों या प्रेरितिक योजनाओं से ही बुलाहट की प्राप्ति नहीं हो सकती है वरन् परिवार में बच्चों को बुलाहट को स्वीकार करने लिये प्रोत्साहन देने से ही वे ईश्वर की सेवा के लिये आगे आयेंगे।
सच्चाई तो यह है कि आज के युवा सत्य की खोज में लगे हुए हैं जिसकी पूर्ति उनके लिये आध्यात्मिक साधना के आयोजन से हो सकता है। अगर हम ख्रीस्तीय समुदाय में चुनौतियों के बारे में बातें करें तो हम पायेंगे कि बुलाहट की कमी में कई तरह कारण हैं। सबसे पहले तो परिवारों का छोटा होना परिवारों का एक स्थान से दूसरे स्थान में पलायन करना युवाओं में धर्म की रुचि का अभाव आदि। इसके साथ ही साथ कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि पुरोहित अपने भले जीवन का साक्ष्य देने के बदले आपसी कलह से आम लोगों को बुरा नमूना देते हैं जो बुलाहट के विस्तार के लिये अहितकर है। कई बार धर्मबन्धु और धर्मबहनें यह शिकायत करते हैं कि उनकी शिक्षा-दीक्षा का पर्याप्त नहीं है जिससे वे अपनी बुलाहट में मजबूत नहीं हो पाते हैं। यहाँ इस बात पर बल दिया गया कि सेमिनेरियों में आध्यात्मिक संचालक का होना परम आवश्यक है। श्रोताओ, मध्यपूर्वी देशों की कलीसिया ने इस बात पर भी बल दिया है कि समर्पित जीवन के लिये बुलाहट प्रचार का कार्य वे लोग करते हैं जो अपने जीवन से ईश्वरीय जीवन का साक्ष्य देते हैं।
इसके साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि धर्मसमाजी अपने सामुदायिक जीवन से भी ईश्वरीय बुलाहट का साक्ष्य दें। इसके लिये यह आवश्यक है कि वे आपस में मेल-प्रेम से रहें, विभिन्न धर्मसंघों के बीच का संबंध सौहार्दपूर्ण हो और धर्माध्यक्ष और पुरोहितों धर्मबहनों का आपसी तालमेल अनुकरणीय हो।
इतना ही नहीं धर्मसंघीयों और धर्मबहनों को अपने जीवन से इस बात का साक्ष्य देना चाहिये कि उनका जीवन ईश्वरीय खुशी से पूर्ण है और पूर्णतः संतुष्ट हैं। विभिन्न धर्मप्रांतों से प्राप्त पत्र यह भी सलाह देते हैं कि पुरोहितों का जीवन पारदर्शी हो। उपदेशों और उनके क्रियाकलापों में गहरी खाई न हो। वे जो बोलते हों वही करें। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो हम ईश्ववरीय बुलाहट की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं चाहे वह लोगों के साथ मिल कर कार्य करने का समर्पण या मठवासी बनकर ईश्वर की सेवा करने का ही क्यों न हो।
23. श्रोताओ, मध्यपूर्वी कलीसिया के लोगों ने इस बात की भी चर्चा की है कि उनके धर्मप्रांत में स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय धर्मसमाज के पुरुष और महिला धर्मसमाजी कार्य करते हैं। उनकी सेवा की सराहना की जानी चाहिये। फिर भी स्थानीय कलीसिया का यह दायित्व है कि वे उन धर्मसमाजियों की मदद करें ताकि पूरी कलीसिया को इसका लाभ मिले।

मठवासी जीवन के बारे में मध्यपूर्व की स्थानीय कलीसिया का मानना है कि यह समर्पित जीवन का आधार है जो मध्यपूर्वी कलीसिया के कई धर्मप्रांतों में है पर फिर भी इसकी अनुपस्थिति कई धर्मप्रांतों में महसूस की जा रही है जिसके लिये प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।




श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने जानकारी प्राप्त की ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया की प्रेरितिक और मिशनरी कार्य के बारे में। अगले सप्ताह हम जानेंगे मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की भूमिका के बारे में।








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