कर्नाटक मानवाधिकार आयोग द्वारा राज्य सरकार के धीमे प्रत्युतर की आलोचना
भारत के कर्नाटक राज्य में कर्नाटक मानवाधिकार आयोग ने ईसाईयों और मुसलमानों तथा उनके
प्रार्नालयों पर हुए हमलों के बारे में राज्य सरकार के धीमे प्रत्युतर की आलोचना की है।
आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एस आर नायक ने कुछेक गिरफ्तारियों को अपर्याप्त कहते हुए कहा
कि राज्य सरकार केवल आज्ञप्ति जारी नहीं करे लेकिन परिणाम दिखाये। आयोग ने कहा है कि
राज्य सरकार पवित्र स्थलों पर होनेवाले हमलों के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार
ठहराये। इसके साथ ही आयोग ने साम्प्रदायिक सौहार्द की स्थिति बनाये रखने और साम्प्रदायिक
तनावों पर नजर रखने और प्रभावी जवाब देने के लिए जिला स्तर पर समिति गठित किये जाने का
सुझाव दिया है। आयोग ने राज्य सरकार को सन 2007 से लेकर 2010 के बीच राज्य में प्रार्थना
स्थलों पर हुए हमलों पर दो माह के अंदर विस्तृत रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया है। कहा
गया है कि रिपोर्ट में दोषियों , फरार अभियुक्तों तथा पुलिस द्वारा की गयी कार्यवाही
की भी विस्तृत जानकारी उपलब्ध करायी जाये। सन 2008 में कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व
में राज्य सरकार का गठन किये जाने के तीन माह बाद ही हिन्दु चरमपंथियों ने हिन्दु धर्म
और देवी देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी किये जाने और बलात धर्मांतरण का आरोप
लगाते हुए सितम्बर 2008 में ईसाईयों और उनके आराधना स्थलों पर कई हमले किये थे। आयोग
ने 28 सितम्बर को कहा कि मामले को कानून के हाथ में छोड़ देना चाहिए। जस्टिस नायक ने
कहा कि यह कानून निर्धारित करेगा की मामले बलात धर्मांतरण के हैं या नहीं। ग्लोबल कौंसिल
ओफ इंडियन क्रिश्चियन के अध्यक्ष साजन के जोर्ज ने कहा कि आयोग के निर्णय को अविलम्ब
लागू किया गया तो यह राज्य के ईसाई समुदाय के लिए हितकर होगा। कर्नाटक राज्य की आबादी
53 मिलियन है जिसका मात्र 1.9 फीसदी ईसाई हैं।