देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया
गया संदेश
श्रोताओ, रविवार 26 सितम्बर को संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कास्तेल गोंदोल्फो स्थित
प्रेरितिक प्रासाद के प्रांगण में देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को देवदूत
संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व इताली भाषा में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा- अतिप्रिय
भाईयो और बहनो, इस रविवार के सुसमाचार पाठ में येसु एक अमीर और एक कंगाल व्यक्ति
जिसका नाम लाजरूस था उसका दृष्टान्त बताते हैं। धनी व्यक्ति विलासिता से पूर्ण और आत्म
केन्द्रित जीवन जीता था और जब वह मर गया था तो वह नरक गया। लेकिन गरीब व्यक्ति जो कि
धनी व्यक्ति की मेज की जूठन से अपनी भूख मिटाता था उसे स्वर्गदूतों ने उठाकर ईश्वर और
संतो के अनन्त निवास स्थल में लाया। प्रभु ने अपने शिष्यों से कहा- धन्य हैं वे जो निर्धन
हैं क्योंकि स्वर्ग राज्य उन्हीं का है। लेकिन दृ्ष्टान्त का संदेश इससे कहीं आगे
जाता है- यह दिखाता है कि जब हम इस दुनिया में हैं हमें प्रभु की आवाज सुननी चाहिए जो
हमें धर्मग्रंथ के द्वारा कहते हैं और हम उनकी इच्छा के अनुसार जीवन जीते हैं क्योंकि
मृत्यु के बाद इसमें सुधार के लिए बहुत देर हो चुकेगी। इसलिए, यह दृष्टान्त हमें दो चीज
बताता है- पहला- प्रभु निर्धन को प्यार करते हैं और उन्हें अपमानित होने की स्थिति से
ऊपर उठाते हैं। दूसरा- हमारी अनन्त नियति हमारी मनोवृत्ति से निर्धारित होती है। यह हमारे
ऊपर है कि हम ईश्वर द्वारी दिखाये गये जीवन के पथ पर चलें और यह प्यार का रास्ता है जिसे
मात्र भावना न समझा जाये लेकिन ख्रीस्त की उदारता में अन्यों की सेवा है। यह सुखद
संयोग है कि कल हम संत विन्सेंट दे पौल का समारोही पर्व मनायेंगे जो काथलिक परोपकारी
संगठनों के संरक्षक हैं। उनके निधन की 350 वीं पुण्यतिथि है। सन 1600 के फ्रांस में,
उन्होंने अपने हाथों से सबसे अमीर और सबसे निर्धन लोगों के मध्य विद्यमान महान विरोधाभास
का स्पर्श किया। वस्तुतः पुरोहित के रूप में, वे बहुधा कुलीन लोगों के सर्कल में तथा
पेरिस की झुग्गी झोपडि़यों में भी जाते थे। येसु ख्रीस्त के प्रेम से संचालित होकर विन्सेंट
दे पौल ने जाना कि वंचित तबकों की सेवा और सहायता के लिए स्थायी व्यवस्थाओं का संचालन
और समन्वय कैसे किया जाये उन्होंने तथाकथित चारिटीस की स्थापना की अर्थात महिलाओं के
समूह जिन्होंने अपना समय और संसाधन सबसे वंचित तबके को लोगों की सेवा के लिए अर्पित किया।
इन स्वयंसेवियों में कुछ लोगों ने ईश्वर की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया और
इस प्रकार संत लुईस दे मारिलेक के साथ संत विन्सेंट ने डार्टस औफ चारिटी धर्मसमाज की
स्थापना की, महिलाओं का पहला धर्मसमाज जो इस दुनिया में लोगों के बीच, बीमारों तथा जरूरतमंदों
के बीच अपने समर्पित जीवन को जीये. प्रिय मित्रो, केवल प्रेम जो कैपिटल एल के साथ
ही सच्ची खुशी बनाता है। यह एक अन्य साक्ष्य के द्वारा प्रदर्शित किया गया है एक युवती
जिसे रोम में धन्य घोषित किया गया। मैं कियारा बदानो के बारे में कह रहा हूँ, इताली लड़की
जो 1971 को जन्मी तथा बीमारी के कारण जिसका 19 वर्ष की आयु में निधन हो गया लेकिन वह
हर एक जन के लिए प्रकाश की किरण थी जैसा कि उसका निकनेम कियारा लुचे (स्पष्ट प्रकाश)
हमें बताता है। उसकी पल्ली, अक्वी तेरमे धर्मप्रांत और फोकोलारे अभियान जिसकी वह सदस्या
थी आज उसका समारोह मना रहे हैं और यह सब युवाओं के लिए उत्सव का दिन है जो उन्में सतत
ख्रीस्तीयता का उदाहरण पा सकते हैं। ईश्वर की इच्छा को पूरी तरह समर्पित उनके अंतिम शब्द
थेः बाय बाय मामा, खुश रहें क्योंकि मैं हूँ। हम ईश्वर का महिमागान करें क्योंकि
उनका प्रेम, बुराई और मृत्यु से कहीं अधिक शक्तिशाली है। हम कुँवारी माता मरियम को धन्यवाद
दें जो युवाओं को राह दिखाती हैं, कठिनाईयों और कष्टों के मध्य भी मार्गदर्शन देती हैं
ताकि वे येसु के प्रेम को पायें और जीवन के सौंदर्य की खोज कर सकें। इतना कहने के
बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद
प्रदान किया।