श्री लंकाः राष्ट्रपति को और अधिक अधिकार प्रदान करने वाले संवैधानिक संशोधन का विरोध
श्री लंका के पुरोहित, धर्मबहनें और लोकधर्मी ख्रीस्तीय धर्मानुयायी देश के राष्ट्रपति
को और अधिक अधिकार प्रदान करने वाले संवैधानिक संशोधन का विरोध कर रहे हैं। आठ सितम्बर
को श्री लंका के संविधान में उक्त संशोधन किया गया जिसके अनुसार राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे
अपने कार्यकाल की दो अवधियों के बाद भी तीसरी अवधि के लिये पुनः चुनाव लड़ सकते हैं।
श्री लंका का सोलीडेरिटी मूवमेन्ट नामक अभियान देश के समस्त ख्रीस्तीयों को अन्याय
के विरुद्ध एकजुट होने का आग्रह कर रहा है ताकि संविधान में सभी नागरिकों को न्याय का
आश्वासन मिले तथा केवल कुछेक स्वार्थी लोगों के हितों का ही इसमें ध्यान न रखा जाये।
उक्त अभियान के समन्वयकर्त्ता फादर सरथ इदामालगोला ने बीस सितम्बर को एक रैली को
सम्बोधित कर कहा, "केवल एक व्यक्ति या एक दल के कुछ लोगों को समस्त अधिकार प्रदान करनेवाले
इस संवैधानिक संशोधन के दुष्परिणामों को श्री लंकाई समाज जल्दी या देर से अवश्य देखेगा।"
उन्होंने कहा कि लोगों की राय लिये बिना तथा उन्हें अभिव्यक्ति का मौका दिये बिना
संविधान में संशोधन करना लोकतंत्र के खिलाफ़ था। श्री लंका के एंगलिकन पादरी मारीमुत्थुपिल्लै
साथीवेल ने भी संविधान में किये गये संशोधन की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि नागरिकों
को समान अधिकार दिलवाने के लिये समस्त ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों का एकजुट होना न्यायसंगत
है।