लंदन, 19 सितंबर, 2010 ( सेदोक, वीआर) मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, बुजूर्ग या वृद्ध
हमारे समाज के लिये वरदान हैं। दवाइयों के विकास और कुछ अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण
आज लोगों की आयु लम्बी होती है इसे ईश्वर की ओर से दिया गया एक महान् कृपा माना जाना
चाहिये। मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि प्रत्येक पीढ़ी को चाहिये कि वह पुरानी
पीढ़ी की प्रज्ञा और अनुभव से कुछ पाठ ग्रहण करे। वृद्धों के लिये किये जानेवाले कार्य
को उदारता से कहीं बढ़ कर ऋण चुकाये जानवाला कृतज्ञतापूर्ण दायित्व माना जाना चाहिये।
कलीसिया ने सदा ही वृद्धों का सम्मान किया है। ईश्वर के दस नियम में भी इस बात पर
बल दिया कि हम अपने माता-पिता का सम्मान करें। आज मैं आपको मेरे उस प्रथम संदेश की
याद दिलाना चाहता हूँ जिसमें मैंने रोम में 24 अप्रैल 2005 को कहा था कि " प्रत्येक व्यक्ति
की इच्छा की गयी, प्रत्येक को प्रेम किया गया और हर व्यक्ति का हमारे साथ होना परमावश्यक
है । " गर्भधान से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक जीवन एक अनोखा उपहार है। आम लोग अपने
जीवन का तब आनन्द लेते हैं जब वे पूर्ण रूप से स्वास्थ्य है पर ईसाई उस समय भी नहीं घबराता
है जव वह जीवन की विपरीत परिस्थितियों से होकर गुज़रता हो। संत पापा जोन पौल द्वितीय
इसके अनुपम उदाहरण थे जिन्होंने अपने क्षणों तक अपने दुःख को ईश्वर को चढ़ाया। उनकी
धैर्य और दुःख उठाने की क्षमता अद्वितीय थी। मैं सिर्फ आपके पिता नहीं वरन् एक मित्र
के रूप में यहाँ आया हूँ और मुझे मालूम है कि बुढापा की क्या तकलीफें हैं। जब हमारी
आयु लम्बी होती है तो यह हमें इस बात का अवसर देती है कि हम ईश्वर को अपने जीवन के लिये
तो धन्यवाद दें ही वरन् अपने जीवन के कमजोर क्षणों के लिये भी धन्यवाद दें। मेरी प्रार्थना
कि बुढ़ापे का समय आपके लिये आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त करने का समय है। यह समय वह
अवसर देता है जब हम उन सभी व्यक्तियों की याद करें और उन्हें धन्यवाद दें जिन्होंने हमारे
लिये अपना जीवन अर्पित कर दिया है। अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो अवश्य ही यह हमारे लिये
आध्यात्मिक खुशी प्रदान करेगा। अंत में मैं धन्य कुँवारी मरियम और जोसफ की मध्यस्थता
से प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर हमें इस जीवन की खुशी प्रदान करे और इस जगत् से दूसरे
जगत् को शांति पूर्वक पार होने की कृपा प्रदान करे।