2010-09-18 13:25:16

लैमबेथ प्रासाद में एंगलिकन धर्माधिपति से बेनेडिक्ट 16 वें की मुलाकात


यूनाईटेड किंगडम में अपनी यात्रा के दूसरे दिन, शुक्रवार 17 सितम्बर को, काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, लन्दन स्थित लैमबेथ प्रासाद में, विश्व के एंगलिकन ख्रीस्तीय धर्माधिपति महाधर्माध्यक्ष रोवन विलियम्स से मुलाकात की।

लन्दन स्थित परमधर्मपीठीय प्रेरितिक राजदूतावास से 13 किलो मीटर की दूरी पर ब्रितानी संसद भवन वेस्टमिन्सटर प्रासाद के समक्ष स्थित लैमबेथ प्रासाद एंगलिकन धर्माधिपति तथा कैनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष की आधिकारिक पीठ है। सन् 1533 ई. में, सम्राट हेनरी आठवें के शासन काल में, एंगलिकन कलीसिया अर्थात चर्च ऑफ इंगलैण्ड सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया से अलग हो गई थी। इस समय ग्रेट ब्रिटेन में एंगलिकन कलीसिया के दो धर्मक्षेत्र हैं: कैनटरबरी तथा यॉर्क जिसके अन्तर्गत यूनाईटेड किंगडम के 43 धर्मप्रान्त आते हैं। देश के ढाई करोड़ लोग अर्थात् कुल जनसंख्या का 43 प्रतिशत एंगलिकन ख्रीस्तीय धर्मानुयायी है। सम्पूर्ण विश्व में चर्च ऑफ इंगलैण्ड के अनुयायी अर्थात् एंगलिकन ख्रीस्तीयों की संख्या आठ करोड़ है। इस चर्च की प्रधान प्रशासिका हैं ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय जबकि आध्यात्मिक धर्मगुरु हैं केनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष रोवन विलियम्स।

ग़ौरतलब है कि सन् साठ के दशक से काथलिक एवं एंगलिकन ख्रीस्तीयों के बीच एकतावर्द्धक वार्ताएँ फलप्रद सिद्ध हुई हैं तथा दोनों कलीसियाओं के बीच अनेक बिन्दुओं पर सहमति प्राप्त की जा सकी है। तथापि, हाल के वर्षों में महिलाओं के पुरोहिताभिषेक आदि को लेकर कुछ विवाद उत्पन्न हुए हैं। काथलिक कलीसिया में केवल पुरुष ही पुरोहित होते हैं। महिलाओं के पुरोहितभिषेक को लेकर एंगलिकन कलीसिया में भी विरोध उठा है तथा अनेक पुरोहितों एवं धर्माध्यक्षों ने एंगलिकन कलीसिया के परित्याग एवं काथलिक धर्म के आलिंगन की इच्छा व्यक्त की है।

शुक्रवार को महाधर्माध्यक्ष रोवन विलियम्स के साथ मुलाकात के बाद दोनों कलीसियाओं की ओर से एक संयुक्त वकतव्य प्रकाशित किया गया जिसमें बताया गया कि एकता के रास्ते में विकास हेतु धर्मतत्ववैज्ञानिक वार्ताओं पर बल देना अनिवार्य है। इसके लिये दोनों धर्मगुरुओं ने सुसमाचार के मुक्ति सन्देश की उदघोषणा को अपरिहार्य बताया ताकि गहन सांस्कृतिक एवं सामाजिक रूपान्तरण के परिप्रेक्ष्य में ख्रीस्तीय धर्मानुयायी न्याय एवं शांति के पक्ष में कार्य कर मानव उत्थान एवं समाज के रचनात्मक निर्माण में योगदान दे सकें।







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