2010-09-06 12:22:22

कारपिनेत्तो रोमानो, इटलीः सन्त पापा ने लियो 13 वें के योगदान का स्मरण किया


19 वीं सदी के सन्त पापा लियो 13 वें के जन्मस्थान, इटली के कारपिनेत्तो रोमानो का दौरा करते हुए, रविवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कलीसिया को प्रदत्त लियो 13 वें के महान योगदान का स्मरण किया।
उन्होंने कहा कि वार्ता और मध्यस्थता द्वारा, सामाजिक प्रश्नों पर सकारात्मक एवं प्रभावी ढंग से पेश आने हेतु, सन्त पापा लियो 13 वें ने, कलीसिया को, समकालीन सामजिक मुद्दों से निपटने में सक्षम बनाया।
विन्चेन्सो लूईजी पेच्ची अर्थात् सन्त पापा लियो 13 वें के जन्म की 200 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, रविवार को उनके जन्म स्थल कारपिनेत्तो रोमानो का दौरा किया था। लियो 13 वें का जन्म सन् 1810 ई. में तथा निधन 1903 ई. को हो गया था। सन् 1878 ई. में आप कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे।
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा कि हालांकि लियो 13 वें, कलीसिया की सामाजिक शिक्षा पर, सन् 1891 में प्रकाशित अपने विश्व पत्र "रेरुम नोवारुम" द्वारा दिये अनुपम योगदान के लिये याद किये जाते हैं तथापि यह स्मरण करना भी हितकर है कि वे सबसे पहले "महान विश्वास और तीव्र भक्ति के महापुरुष थे", जो सन्त पापाओं सहित प्रत्येक ख्रीस्तीय के अस्तित्व का आधार होना चाहिये।
सन्त पापा ने कहा कि ईश्वर में अपने अटल विश्वास के कारण ही लियो 13 वें, अपने युग की कठिन ऐतिहासिक परिस्थिति के बावजूद, उस सन्देश को लोगों तक पहुँचा सके जो विश्वास के साथ साथ तर्कणा तथा सत्य के साथ साथ ठोस से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने स्मरण दिलाया कि लियो 13 वें के परमाध्यक्षीय काल में यूरोप नेपोलियन महा-तूफान के परिणामों तथा फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव को महसूस कर रहा था जिसमें कलीसिया और ईसाई संस्कृति के मौलिक तत्वों पर प्रश्न उठाये जा रहे थे।
सन्त पापा ने कहा कि यूरोप की इस जटिल परिस्थिति में सन्त पापा लियो 13 वें ने महान प्रज्ञा एवं विवेक का परिचय दिया। उन्होंने नवीन समाज एवं उसके कल्याण के लिये वार्ता और मध्यस्थता का मार्ग सुझाया तथा 20 वीं शताब्दी में एक नवीकृत कलीसिया की प्रस्तावना की जो नयी चुनौतियों का सामना कर सके।








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