2010-09-02 17:44:08

सियोल में 31 अगस्त से 5 सितम्बर तक आयोजित एशियाई लोकधर्मियों के सम्मेलन पर प्रोफेसर थोमस होंग के विचार


एशियाई काथलिक लोकधर्मियों का सम्मेलन दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में 31 अगस्त से 5 सितम्बर तक सम्पन्न हो रहा है। लोकधर्मियों संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सदस्य तथा कोरिया में लोकधर्मी प्रेरिताई कौंसिल के अध्यक्ष रहे प्रोफेसर थोमस होंग सून हान ने वाटिकन रेडियो को दिये साक्षात्कार में कलीसिया के इतिहास तथा लोकधर्मियो की भूमिका के बारे में कहा कि कोरिया के लोकधर्मियों को अपने इतिहास और कलीसिया के जीवन में अपनी भूमिका के लिए बहुत गर्व है। देश में कलीसिया की स्थापना 200 वर्ष पूर्व लोकधर्मी विश्वासियों के द्वारा ही की गयी थी। उन्होंने कहा कि शहादत का दु-खद अध्याय रहा है लेकिन इसके साथ ही यह सुसमाचार प्रचार और कलीसिया के विकास का मूल भी रहा है। कोरिया के काथलिक लोकधर्मियों ने कलीसिया को अपने जीवन का अंग बनाने तथा कलीसिया के जीवन में सहभागी होने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है, यह ईश्वर की महान कृपा है।

उन्होंने कहा कि लोकधर्मी विभिन्न अभियानों और संगठनों के माध्यम से कलीसिया के आंतरिक जीवन में सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए लीजन ओफ मेरी के लगभग 5 लाख सदस्य हैं जो सुसमाचार प्रसार के लिए बहुत कठिन श्रम कर रहे हैं।

उत्तरी कोरिया के साथ संबंध को बेहतर बनाने तथा मेलमिलाप की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए काथलिक लोकधर्मियों की भूमिका के बारे में प्रोफेसर थोमस ने कहा कि लोकधर्मियों ने पुरोहितों और धर्मसमाजियों के साथ हमेशा मिलकर काम किया है। कलीसिया सन 1990 में मेलमिलाप पर जोर देने में सबसे पहले स्थान पर रही है।
प्रोफेसर थोमस ने कहा कि कोरिया में काथलिकों की जनसंख्या पूरी आबादी का मात्र 11 फीसदी हैं लेकिन समाज के उच्चतर स्तरों में यह 20 से 30 फीससदी है। इसलिए कलीसिया लोगों की स्रकिय सहभागिता तथा मेलमिलाप के लिए समर्पण पर आधारित है। उत्तरी कोरिया को भौतिक राहत सहायता उपलब्ध कराने में काथलिक कलीसिया अग्रणी रही है और यह लोकधर्मी विश्वासियों से मिले अनुदान से प्राप्त होती है।

उन्होंने कहा कि कोरिया में कलीसियाई समुदायों तथा लघु मसीही समुदाय के कामों में लोगों को सहभागी होने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता रहा है। कोरिया तथा सम्पूर्ण महाद्वीप में इस प्रकार के अभियानों की स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि द्वितीय वाटिकन महासभा के समय से ही अनेक अभियानों और संगठनों का विकास होता रहा है। उदाहरण के लिए- लीजन औफ मेरी, कारिशमाटिक रिनीवल, फोकोलारे मुवमेंट, कुरसिलोस दे किशतियानीदाद, मैरिज इनकाउंटर इत्यादि इन अभियानों की कोरिया में लोकधर्मी प्रेरिताई का प्रसार करने में बहुत स्रकिय भूमिका रही है। इसके साथ ही साथ व्यक्तिगत प्रेरिताई का महत्व है क्योंकि हमें दैनिक जीवन में ख्रीस्त के साक्षी तथा सच्चे अनुयायी बनना है।
एशिया में अनेक अभियान और संगठन बहुत सक्रिय हैं, फिलीपीन्स में कप्पलस फोर क्राइस्ट तथा भारत में अनेक संगठन सक्रिय हैं। इन सबमें विश्वासियों की सक्रिय भूमिका है। सम्मेलन के अन्य मुददों और लक्ष्यों के बारे में प्रोफेसर थोमस होंग सून हान उन्होंने कहा- प्रथम सहस्राब्दि में सुसमाचार प्रचार का केन्द्र यूरोप रहा, द्वितीय सहस्राब्दि में अमेरिका और अफ्रीका रहा तीसरी सहस्राब्दी में सुसमाचार प्रचार का केन्द्र एशिया है। विश्व की जनसंख्या का दो तिहाई आबादी एशिया में निवास करती है लेकिन कुल आबादी का मात्र केवल 3 फीसदी ही काथलिक हैं। इसलिए एशिया में सुसमाचार प्रसार के लिए हमें समर्पित होना है। सम्मेलन का शीर्ष वाक्य चुना गया है- आज के एशिया में येसु ख्रीस्त की उदघोषणा। उन्होंने कहा कि एशियाई लोग ईश्वर के सत्य तथा येसु ख्रीस्त को जानना चाहते हैं। इसलिए हम सुसमाचार प्रचार के अनुभव को बाँटना चाहते हैं तथा सम्पूर्ण महाद्वीप में सुसमाचार प्रचार के लिए अपनी दृढ़ता का नवीनीकरण करने के लिए एक दूसरे को प्रोत्साहन देना चाहते हैं।

एशिया में सुसमाचार प्रचार करने के क्रम में संवाद के महत्व पर प्रोफेसर थोमस होंग सून हान ने कहा कि सुसमाचार प्रचार के लक्ष्य को पाने के लिए संवाद करना अपरिहार्य है। यह सम्वाद करने का युग है लेकिन संवाद करते समय सावधानी की भी जरूरत है। हम अपनी अस्मिता के बारे में स्पष्ट रहें तथा संवाद क्यों करें, और इसके लिए क्या करना चाहिए यह हमें जानने की जरूरत है।

प्रोफेसर थोमस ने कहा कि एशिया में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य धर्मों के चरमपंथियों द्वारा हमले और अत्याचार की अनेक घटनाएँ सुनने को मिलती हैं। गलतफहमियों को दूर करने के लिए संवाद करना बहुत जरूरी है। लेकिन जो लोग संवाद के काम में संलग्न हैं उन्हें अपनी अस्मिता और काथलिक विश्वास को नहीं खोना चाहिए।









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