2010-09-01 07:28:15

वाटिकन सिटीः सेओल में 31 अगस्त से 5 सितम्बर तक आयोजित एशियाई लोकधर्मियों के सम्मेलन को प्रेषित सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देशः


लोकधर्मी प्रेरिताई सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष
मेरे पूजनीय भाई
कार्डिनल स्तानिसलाव रिल्को
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि 31 अगस्त से 5 सितम्बर तक, एशियाई काथलिक लोकधर्मियों का सम्मेलन, सेओल में आयोजित किया गया है। मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप, लोकधर्मियों की प्रेरिताई सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति द्वारा प्रोत्साहित, इस अर्थगर्भित पहल के लिये एशिया के विभिन्न भागों से एकत्रित होनेवाले, सभी धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसंघियों एवं लोकधर्मियों तक मेरी शुभकामनाओं एवं प्रार्थनामय मंगलकामनाओं को पहुँचायें। सम्मेलन के लिये चुना गया विषयः "आज एशिया में येसु ख्रीस्त की उदघोषणा" बिल्कुल सामयिक है, और मेरा विश्वास है कि यह पुनर्जीवित प्रभु के हर्षपूर्ण साक्ष्य तथा उनके पवित्र शब्द के जीवनदायी सत्य को सुनने हेतु महाद्वीप के लोकधर्मियों को प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन दे सकेगा।
एशिया, विश्व के दो तिहाई लोगों का घर है, महान धर्मों एवं आध्यात्मिक परम्पराओं का वह पालना और विभिन्न संस्कृतियों का जन्मस्थल है जो, इस समय, आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक रूपान्तरण की अभूतपूर्व प्रक्रियाओं से गुज़र रहा है। इस पृष्टभूमि में, एशिया के काथलिक उस एकता एवं सहभागिता -ईश्वर एवं मानव के साथ सहभागिता- के चिन्ह एवं प्रतिज्ञा बनने के लिये आमंत्रित किये जाते हैं जिसका आनन्द उठाना सम्पूर्ण मानव परिवार के लिये तय है तथा जिसे केवल ख्रीस्त ही सम्भव बना सकते हैं। महाद्वीप की विविध जातियों, संस्कृतियों एवं धर्मों का अंग होने के नाते उन्हें एक महान मिशन प्रदान किया गया हैः और वह है मानवजाति के सार्वभौमिक मुक्तिदाता, येसु ख्रीस्त का साक्ष्य प्रदान करना। यही वह परम सेवा एवं महान वरदान है जो कलीसिया एशिया के लोगों को अर्पित कर सकती है और मेरी आशा है कि वर्तमान सम्मेलन इस पवित्र ज़िम्मेदारी के वरण हेतु नवीकृत प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
"एशिया के लोगों को येसु ख्रीस्त एवं उनके सुसमाचार की आवश्यकता है। एशिया उस संजीवन जल के लिये तरस रहा है जो केवल येसु प्रदान कर सकते हैं" (Ecclesia in Asia, 50)। प्रभु सेवक जॉन पौल द्वितीय के ये नबूवती शब्द, एशिया की कलीसिया के हर सदस्य को सम्बोधित आह्वान के रूप में, अभी भी प्रतिध्वनित हो रहे हैं। यदि लोकधर्मियों को इस मिशन की ज़िम्मेदारी उठानी है तो उन्हें बपतिस्मा से प्राप्त कृपा तथा ईश्वर के पुत्र एवं पुत्रियाँ होने की प्रतिष्ठा के प्रति सचेत होना पड़ेगा। इस तथ्य के प्रति उनमें चेतना जागृत होना अनिवार्य है कि वे ईश पुत्र येसु के मरण एवं पुनःरुत्थान में भागीदार हैं तथा ख्रीस्त की रहस्यमय देह अर्थात् कलीसिया के सदस्य होने के नाते पवित्रआत्मा द्वारा अभ्यंजित किये गये हैं। मन और आत्मा से, अपने धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों के साथ संयुक्त होकर तथा विश्वास की तीर्थयात्रा के हर चरण में विश्वस्त आध्यात्मिक एवं धर्मशैक्षिक प्रशिक्षण से शक्ति अर्जित कर, उन्हें सक्रिय सहयोग के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये, केवल उनके अपने ख्रीस्तीय समुदायों के विकास हेतु ही नहीं अपितु समाज के हर क्षेत्र में सुसमाचार के नये रास्तों का निर्माण के लिये भी। सुसमाचार के साक्षी बनने हेतु किये जा रहे उनके प्रयासों की पृष्टभूमि में, एशिया के लोकधर्मी स्त्री-पुरुषों के समक्ष अब मिशन के विशाल क्षितिज खुल रहे हैं; मैं, विशेष रूप से, ख्रीस्तीय वैवाहिक प्रेम एवं पारिवारिक जीवन के उदाहरणों से उपलब्ध अवसरों के बारे में सोच रहा हूँ, गर्भ के प्रथम क्षण से लेकर प्रकृतिक मृत्यु तक उनके द्वारा जीवन की रक्षा, निर्धनों एवं प्रताड़ितों के प्रति उनके प्रेम, अपने शत्रुओं एवं अत्याचारियों को माफ़ कर देने की उनकी तत्परता, कार्यक्षेत्रों में न्याय, सत्य एवं एकात्मता के उदाहरणों तथा सार्वजनिक जीवन में उनकी उपस्थिति के बारे में, मैं विचार कर रहा हूँ।
इस प्रकार, समर्पित, प्रशिक्षित एवं उत्साह से भरे लोकधर्मी व्यक्तियों की बढ़ती संख्या, एशिया में, कलीसिया के भविष्य के लिये महान आशा का संकेत है। इस स्थल पर कृत्तज्ञ भाव से मैं अनेकानेक धर्मशिक्षकों के कार्यों का उल्लेख करना चाहूँगा जो काथलिक विश्वास के वैभव को युवा एवं वयस्कों तक पहुँचाते तथा व्यक्तियों, परिवारों एवं पल्ली समुदायों का साक्षात्कार पुनर्जीवित प्रभु से कराते हैं। विभिन्न प्रेरितिक एवं करिश्माई अभियान भी पवित्रआत्मा के विशिष्ट वरदान हैं क्योंकि वे लोकधर्मियों और विशेष रूप से परिवारों एवं युवाओं के प्रशिक्षण में नवजीवन एवं नई उमंग का संचार करते हैं। मानव प्रतिष्ठा एवं न्याय के प्रोत्साहन को समर्पित विभिन्न संगठन एवं कलीसियाई अभियान, प्रत्यक्षतः, ईश सन्तान रूप में हमारी दत्तकता से सम्बन्धित सुसमाचारी सन्देश की सार्वभौमिकता को दर्शाते हैं। प्रार्थना एवं उदारता के कार्यों से संलग्न अनेकानेक व्यक्तियों एवं संगठनों सहित तथा प्रेरितिक एवं पल्ली परिषदों के योगदान के साथ ये दल, सार्वभौमिक कलीसिया के साथ सहभागिता एवं सुसमाचार उदघोषणा हेतु नवीकृत उत्साह से सुदृढ़ होकर, विश्वास एवं आशा में विकास हेतु एशिया की कलीसिया के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसी कारण, मैं प्रार्थना करता हूँ कि वर्तमान सम्मेलन कलीसिया के मिशन में लोकधर्मियों की अपरिहार्य भूमिका को प्रकाश में लायेगी तथा आज के एशिया में येसु ख्रीस्त की उदघोषणा सम्बन्धी मिशन में उनकी सहायता हेतु विशिष्ट कार्यक्रमों एवं पहलों को विकसित करेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि सम्मेलन के विचार विमर्शों में इस तथ्य पर बल दिया जायेगा कि ख्रीस्तीय जीवन एवं बुलाहट को, सर्वप्रथम, परम सुख एवं अन्यों में बाँटे जानेवाले वरदान के स्रोत रूप में देखा जाना चाहिये। प्रेरितवर सन्त पौल के साथ मिलकर प्रत्येक काथलिक को यह कहने में सक्षम होना चाहिये, "मेरे लिये तो जीवन है मसीह, (फिली. 1:21)। जिन लोगों ने येसु में, अपने जीवन को अर्थ एवं मार्गदर्शन प्रदान करनेवाले, सत्य, आनन्द एवं सौन्दर्य को पा लिया है उनके लिये यह स्वाभाविक है कि वे इस कृपा को अन्यों में बाँटें। कठिनाईयों की उपस्थिति अथवा कार्यों की भरमार से विचलित हुए बिना वे सदैव पवित्रआत्मा की रहस्यमय उपस्थिति में विश्वास करेंगे, जो, व्यक्तियों के दिलों में, उनकी परम्पराओं में तथा उनकी संस्कृतियों में अनवरत सक्रिय रहते तथा रहस्यमय ढंग से "मार्ग, सत्य एवं जीवन" (योहन 14:6) तथा प्रत्येक मानवीय आकाँक्षा की परिपूर्णता अर्थात् ख्रीस्त के प्रति हमारे द्वारों को खोल देते हैं।
इन मनोभावों से, सम्मेलन के सभी प्रतिभागियों पर मैं पवित्रआत्मा के उदगारों की मंगलयाचना करता तथा इन दिनों के अध्ययन एवं प्रज्ञापूर्ण क्रिया के साथ चलनेवाली प्रार्थना में सहर्ष एकप्राण होता हूँ। एशिया की कलीसिया ख्रीस्तीय होने तथा येसु ख्रीस्त को विश्व के मुक्तिदाता उदघोषित करने के अतुलनीय सौन्दर्य के प्रति, पहले से कहीं अधिक उत्साह के साथ, साक्ष्य प्रदान कर सके। सभी उपस्थित सदस्यों को, कलीसिया की माता, मरियम की वात्सल्यपूर्ण मध्यस्थता के सिपुर्द करते हुए, प्रभु में आनन्द एवं शांति की प्रतिज्ञा रूप में, मैं, मित्रभाव से, आप सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।


वाटिकन से, 10 अगस्त 2010




बेनेडिक्ट 16 वें









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