कोलोम्बो, 21 अगस्त, 2010 (एशियान्यूज़) श्रीलंका के ईसाइयों, बौद्ध धर्मावलंबियों और
आम लोगों ने विशेष अदालत द्वारा जेनेरल फोन्सेका को दोषी करार दिये जाने और उनपर लगाये
गये आरोपों का विरोध किया है। 13 अगस्त को सेना की एक अदालत ने श्री लंका सेना के
पूर्व जेनरल सरथ फोन्सेका और उनके एक व्यक्तिगत सहयोगी कप्तान सेनाका हरिप्रिया को इस
बात के लिये दोषी ठहराया है कि उन्होंने अपने सेना की नौकरीकाल में ही राजनीतिक गतिविधियों
में हिस्सा लिया। उनपर इस बात का भी आरोप है कि उन्होंने एक विद्रोही दल का साथ दिया
और ऐसे लोगों को शरण दी जिन्होंने सेना का साथ छोड़ दिया था। जब जेनरल फोन्सेका को
मिलिटरी अदालत ने दोषी करार दिया तो आम लोगों को इस पर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि लोगों
का मानना है कि इस कार्रवाई के पीछे राष्ट्रपति राजपक्षा की राजनीतिक चाल है। राजपक्षा
चाहते हैं जेनरल फोनसेका को सजा देकर उनसे मुक्ति प्राप्त कर लें । विदित हो कि पिछले
राष्ट्रपति चुनाव में जेनरल फोन्सेका ने राष्ट्रपति को काँटे की टक्कर दी थी। श्री लंका
की संसद में विपक्षी दलों ने भी मिलिटरी अदालत के निर्णय का विरोध किया है। विदित हो
कि जेनरल फोन्सेका के नेतृत्व में ही श्रीलंका की सेना ने एलटीटीई पर विजय प्राप्त की
थी। एशियन ह्यूमन राइटस कमीशन का मानना है कि अदालत ने कानून की प्रक्रिया की अवहेलना
की है और बचाव पक्ष को अपने बचावे के लिये समय नहीं दिया गया। उन्होंने इस पक्ष को
भी प्रकाश में लाया है कि मिलिटरी अदालत में उन्हीं को जज बनाया गया था जिन्हें जेनरल
फोन्सेका ने अपने कार्यकाल में सजा दी थी। कोर्ट मार्शल ने जेनरल फोन्सेका को सजा सुनाते
हुए कहा है कि वे अपने सभी मिलिटरी पद, मेडल और पेंसन से वंचित कर दिये जायेंगे और राष्ट्रपति
ने इसका अनुमोदन कर दिया है।राष्ट्रपति के अनुमोदन को बौद्ध पुरोहितों ने अन्यायपूर्ण
कहा है। धर्मप्रांतीय मानवाधिकार आयोग के संयोजक फादर तेरेन्स फेरनान्दो ने कहा
कि वे इस अन्यायपूर्ण निर्णय का विरोध करते हैं। स्वतंत्रता मंच के ब्रिटो फरनन्दो
ने कहा हा कि यह निर्णय राष्ट्रपति के बदले की भावना का परिणाम है। श्रीलंका के आम लोगों
का भी मानना है कि युद्ध के हीरो के साथ राष्ट्रपति के ऐसे व्यवहार को स्वीकारा नहीं
जा सकता है।