भारत की पहली महिला संत की जन्म शताब्दी पर विशेष वर्ष
सीरो मलाबार चर्च के प्रमुख कार्डिनल वर्की वित्याथिल ने वर्तमान समय में संत अल्फोंसा
की साक्षी के महत्व पर एशिया समाचार सेवा से कहा कि प्रथम भारतीय महिला संत के जन्म की
शतवर्षीय उदघाटन समारोह में भारत की राष्ट्रपति के सहभागी होने की महान सार्थकता है।
यह भारतीय जनता की धार्मिकता, धार्मिक संस्कृति और जीवन की पवित्रता की सराहना करने को
प्रतिबिम्बित करती है। उन्होंने कहा कि हमारी परम्परा और संस्कृति में पवित्र जनों की
हमेशा आराधना की गयी है। संत अल्फोंसा के जन्म का शतवर्षीय समारोह विश्व को यह सुझाव
देता है कि वह ईश्वर और उनके प्रेम की ओर लौटे। आज मानव ईश्वर रहित दुनिया का विकास करने
का प्रयास कर रहा है और इसका परिणाम अव्यवस्था तथा हिंसा है। संत अल्फोंसा का संदेश होगा
कि वह ईश्वर की ओर लौटे क्योंकि संत अल्फोंसा ने अपने सारे दिल से ईश्वर को प्यार किया।
कार्डिनल महोदय ने पीड़ा के महत्व पर कहा कि दुनिया सोचती है कि पीड़ा अभिशाप है।
लेकिन हम चाहें या न चाहें पीड़ा ईश्वर के समीप आने का कीमती माध्यम है। पीड़ा में एक
विशेष प्रकार की शक्ति छिपी है, यह एक विशेष कृपा है जो हमें ख्रीस्त के समीप लाती है।
उन्होंने कहा कि अपने शरीर के उपहार द्वारा ख्रीस्त ने पीड़ा को मुक्ति प्रदान करनेवाला
मूल्य दिया। धर्मबहन अल्फोंसा ने गहन पीड़ा का अनुभव किया तथा अनेक लोग उनकी ओर इसीलिए
आकर्षित होते हैं क्योंकि उन्होंने पीड़ा सहन करने को मूल्य प्रदान किया। पीड़ा सहना
मानवजाति के लिए अनेक लाभ लाता है।