कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागित व साक्ष्य भाग
- 4 10 अगस्त, 2010 सिनॉद ऑफ बिशप्स- सदस्यता, कार्य व अधिकार जारी
पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम
एक नया कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल
ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
’ कहा गया है। संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों
की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा
। इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा।
काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती
है। परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं वे हैं तुर्की,
इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त
अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस।
हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम,
बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने
उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं। वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन
द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित
और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया
है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन
24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और
दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन
सन् 1998 ईस्वी में हुआ था। पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक
कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है।
इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं
में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की
दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति
को प्रभावित करता रहा है। एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व
हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों
और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें। श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़
एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘कोड ऑफ कैनन लॉ’ के आधार पर ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’
के लक्ष्य और अधिकारों के बारे में। आज हम सुनना जारी रखेंगे धर्माध्यक्षों की महासभा
के सदस्यता, कार्य और अधिकारों के बारे में। श्रोताओ, हमको यह भी बता दें कि ‘सिनॉद
ऑफ बिशप्स के पास संत पापा को सूचना देने और सलाह देने के कुछ अपने ही तौर-तरीके हैं।
सभा के दरमियान सलाह देने के साथ-ही-साथ सिनॉद ऑफ बिशप्स को निर्णय लेने का अधिकार भी
दिया गया है पर इस निर्णय को अंतिम रूप देने के लिये संत पापा की स्वीकृति की आवश्यकता
होती है। अगर हम सिनॉद ऑफ बिशप्स के कार्यों के बारे में विचार करें तो हम पाते हैं
कि इसके मुख्यतः तीन कार्य हैं। पहला कि यह संत पापा और विश्व के धर्माध्यक्षों के बीच
एकता और सहयोग बढ़ाने के लिये कार्य करे। दूसरा कि यह इस बात की निगरानी रखे कि दुनिया
के विभिन्न भागों से संत पापा के लिये जो सूचनायें या रिपोर्ट आते हों वे स्पष्ट और सही
हों। वह यह भी देखे कि उन सूचनाओं के आधार उस मुद्दे का विश्लेषण किया जाये और तब उस
पर अपनी कोई राय बनायी जाये। तीसरा, कि यह देखे कि कलीसियाई मुख्य सिद्धांतों के मामले
में आवश्यक आपसी समझदारी बनायी जाये ताकि कलीसिया के मिशन के लिये एक उचित और मान्य निर्णय
लिया जा सके। श्रोताओ, यहाँ पर इस बात को भी बताया जान उचित होगा कि सिनॉद ऑफ बिशप्स
सभी कार्यों के लिये संत पापा पर ही निर्भर करती है है चाहे वह सभा के आयोजन का मामला
हो या इसके लिये जगह, समय या दिन के चयन का मसला हो। सभा में विचार किये जाने वाले
मुद्दों के बारे में निर्णय कम-से-कम छः महीने पहले कर दिये जाते हैं और इस बात पर भी
ध्यान दिया जाता है कि इसके अध्ययन के लिये संबंधित व्यक्तियों को इसकी एक प्रति मिल
जाये। इसके साथ ही सिनॉद ऑफ बिशप्स, सभा के संचालन और इसके कार्यक्रम को अंतिम रूप देने
के लिये भी संत पापा पर ही निर्भर करना पड़ता है। श्रोताओ, अब हम आपको बता दें कि
सिनॉद ऑफ बिशप्स के सदस्यों की तीन तरह की सभा होती है जिसे आम सभा, विशेष सभा और अति
विशेष सभा। आम सभा में पैट्रियार्क, पूर्वी कलीसिया के अंतर्गत नहीं पड़नेवाले मुख्य
महाधर्माध्यक्ष शामिल होते हैं। इसके साथ ही सिनॉद ऑफ बिशप्स के 8वें परिच्छेद के अनुसार
चुने हुए धर्माध्यक्षीय समिति के सदस्य और ऐसे चुने हुए धर्माध्यक्ष जिनका अपना धर्माध्यक्षीय
समिति नहीं है। आम सभा में कुछ 10 ऐसे सदस्य भी होते हैं जो रोमन यूनियन ऑफ सुपीरियर्स
जेनेरल के द्वारा चुने जाते हैं। ये सदस्य विभिन्न धर्मसंघों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसके साथ धर्माध्यक्षों की आम सभा में वे सभी कार्डिनल भी हिस्सा लेते हैं जो रोमन कूरिया
में विभिन्न विभागों के अध्यक्ष हैं। श्रोताओ, अब हम आपको बताते हैं कि सिनॉद ऑफ बिशप्स
की अतिविशेष सभा के सदस्य कौन हैं। धर्माध्यक्षों की अतिविशेष सभा में पैट्रियार्क, पूर्वी
कलीसिया पैट्रियार्क के बाहर पड़नेवाले मुख्य महाधर्माध्यक्ष सभी धर्माध्यक्षीय समिति
के अध्यक्ष और उन देशों के धर्माध्यक्षीय समिति के अध्यक्ष जिनका कोई अपना अलग अस्तित्व
न हो। इस अतिविशेष सभा में धर्मसंघों के सिर्फ़ तीन सुपीरियर जेनरल भाग लेते हैं जिन्हें
रोमन यूनियन ऑफ सुपीरियर्स जेनरल चुनती है। इसके साथ ही रोमन कूरिया के वे सभी कार्डिनल
इस सभा के सदस्य होते हैं जो कूरिया के विभागाध्यक्ष होते हैं। श्रोताओ, अब हम आपको
बता दें कि सिनॉद ऑफ बिशप्स की विशेष सभा के सदस्य कौन होते हैं। विशेष सभा में भी सभी
पैट्रियार्क मुख्य महाधर्माध्यक्ष जो कलीसिया की पूर्वी रीति के बाहर के होते हैं। इसके
साथ वे धर्माध्यक्ष जो धर्माध्यक्षीय समिति का प्रतिनिधित्व करते हैं और ऐसे देशों के
धर्माध्यक्ष जिनका कोई अपना अलग धर्माध्यक्षीय समित नहीं हो। इसके लिये सिनॉद ऑफ बिशप्स
की नियमावली के परिच्छेद 5 और 8 पालन किया जाता है। इसके लिये इस बात पर ध्यान देना आवश्यक
है कि ये सभी धर्माध्यक्षों उस क्षेत्र के हों जिस प्रांत के लिये धर्माध्यक्षों की सभा
का आयोजन किया गया हो। सदस्यों के चुनाव के संबंध में इस बात पर भी ध्यान देने की
आवश्यकता होती है कि यदि धर्माध्यक्षीय समिति में 25 या उससे कम सदस्य है तो उसके लिये
1 प्रतिनिधि चुना जाता है, 50 सदस्यों वाले धर्माध्यक्षीय समिति के लिये 2 और 100 या
उससे ज़्यादा के लिये 3 प्रतिनिधि चुने जाते हैं। जिन प्रांतों में अनेक देशों को मिलाकर
एक धर्माध्यक्षीय समिति का गठन हो वे भी इसी प्रकार के निर्देशन का पालन करते हैं। सिनॉद
ऑफ बिशप्स के सदस्यों के चुनाव में इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि समिति के प्रतिनिधि
न केवल बुद्धिमान हो, पर उसे उन बातों की जानकारी हो जिसे सिनॉद में विचार-विमर्श किया
जाना है। इसके साथ ही हम श्रोताओं को यह भी बता दें कि सिनॉद के सदस्यों को घटाने
और बढ़ाने की ज़िम्मेदारी और अधिकार संत पापा को ही है जिसका विवरण नियमावली के परिच्छेद
5 और 8 में दिया गया है। यहाँ इस बात को भी बताया जाना उचित होगी कि किसी भी सदस्य को
जो पद या ज़िम्मेदारी सिनॉद के दौरान दी जाती है वह सभा समाप्ति के साथ यह भी समाप्त
हो जाती है। सिनॉद की सभाओं के लिये एक महासचिव और कई सचिव नियुक्त होते हैं जो संत पापा
के द्वारा ही नियुक्त किये जाते हैं जिनका कार्य और अधिकार भी सभा की समाप्ति की घोषणा
के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले आज
हमने सुना धर्माध्यक्षों की महासभा के सदस्यता, कार्य और अधिकार के बारे में। अगले सप्ताह
हम सुनेंगे सिनॉद की प्रक्रिया के बारे में।