2010-08-03 20:05:44

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 3
3 अगस्त, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स-लक्ष्य व अधिकार


‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम एक नया कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं वे हैं तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने पढ़ा ‘कोड ऑफ कैनन लॉ’ के आधार पर ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की सदस्यता के बारे में। आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे धर्माध्यक्षों की महासभा के लक्ष्यों और अधिकार के बारे में।
पूर्वी कलीसिया के ‘कोड को कैनन’ के परिच्छेद 46 के अनुसार संत पापा को पूरी कलीसिया की अगवाई में कई लोग मदद करते हैं उसमें धर्माध्यक्षों की सभा की भूमिका मह्त्वपूर्ण है। धर्माध्यक्षों की सभा के अलावे कार्डिनलगण, रोमन कूरिया अर्थात् वाटिकन की प्रशासनिक समिति के सदस्य, परमधर्मपीठीय राजदूत तथा वाटिकन की अन्य संस्थायें संत पापा को उनकी ज़रूरतों के अनुसार मदद देती हैं। इन सभी लोगों और संस्थाओं से यही उम्मीद की जाती है कि वे संत पापा की मदद करें ताकि वे कलीसिया का मार्गदर्शन सही तरीके कर सकें।
हम आपको यह भी बता दें कि जिस पत्र के द्वारा ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की स्थापना हुई उसका नाम था ‘अपोस्तोलिका सोल्लिचितुदो’ । इस पत्र में संत पाप पौल छटवें ने 15 सितंबर सन् 1965 मे कहा था कि ‘बदलते समय में बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, कलीसिया के पवित्र कार्यों और मिशन को आगे बढ़ाने के लिये यह आवश्यक है कि हम सभी धर्माध्यक्ष एक साथ मिलकर उनकी मदद करें जिन्हें पवित्र आत्मा ने ईश्वरीय कलीसिया के नेतृत्व का दायित्व सौंपा है। हम ऐसा करने के लिये इसलिये प्रेरित नहीं हुए हैं क्योंकि हम उनका केवल सम्मान करते हैं और उनके प्रति धन्यवादी है पर इसीलिये क्योंकि हम सभी धर्माध्यक्षों पर विश्व की पूरी कलीसिया को चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। यही बात हमें प्रोत्साहन देता है कि हम संत पापा की मदद करें ताकि वे कलीसिया का भला चरवाहा बन सकें। हमारा दैनिक व व्यक्तिगत अनुभव हमें बताता है कि आज की दुनिया बदल गयी है। लोगों के बीच विभाजन है, फूट व विभिन्नतायें हैं और फिर भी लोग ईश्वरीय वरदान को ग्रहण करने के लिये उत्साहित और दिल के खुले हैं इसलिये यह आवश्यक है कि हम एक साथ मिलकर कलीसिया के शीर्ष संत पापा की मदद करें।
इतना ही नहीं हम उपलब्ध सभी साधनों और उपायों का भी सहारा लें और इस एकता को बनायें रखें। ऐसा करने से कलीसिया विश्व के धर्माध्यक्षों की प्रज्ञा, सलाह, सांत्वना की कमी का कभी भी अनुभव नहीं करेंगी।
इसीलिये वाटिकन द्वितीय महासभा के अंतरकलीसियाई सभा के समय इस बात को ज़रूरी समझा गया कि कलीसिया के संचालन में धर्माध्यक्षों की भूमिका को और अधिक मजबूत किया जाये ताकि सार्वभौम कलीसिया का संचालन बखूबी हो सके। अगर सही मायने में ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की स्थापना की प्रक्रिया पर ग़ौर किया जाये तो बात स्पष्ट हो जाती है कि अंतरकलीसिया कौंसिल ने ही इस विचार को प्रोत्साहन दिया कि धर्माध्यक्षों की विशेष सभा की समिति को स्थायी कर दिया जाये।
उसी सभा में उन बातों को कहने के बाद संत पापा पौल षष्टम् ने कहा था कि अब अंतरकलीसियाई सभा का समापन होने जा रहा है और हमें चाहिये कि हम अपना कार्य शुरु करें और उन बातों को लागू करें जिन पर निर्णय हमने सभा में लिया है। उन्होंने आगे कहा कि हमें यह जान कर प्रसन्नता है कि धर्माध्यक्षों ने भी इस दिशा में अपनी उत्सुकता दिखलायी है। और श्रोताओ संत पापा पौल षष्टम् ने कहा कि इन सभी बातों पर ध्यान से विचार करते हुए कलीसिया और इसके मिशन को ध्यान में रखते हुए इसके संचालन में धर्माध्यक्षों सहभागिता को बढ़ाने के उद्देश्य से धर्माध्यक्षों की एक स्थायी समिति स्थापित करते हैं जिसे सिनॉद ऑफ बिशप्स के नाम से जाना जायेगा।
उन्होंने सिनॉद ऑफ बिशप्स के बारे में यह भी कहा कि यह एक मानवीय संगठन है जिसमें समय के अनुसार परिवर्तन अपेक्षित है जो कुछ विशेष नियमों के द्वारा संचालित किया जायेगा।
श्रोताओ संत पापा ने सिनॉद ऑफ बिशप्स की संरचना और संगठन के बारे में जो जानकारियाँ दीं उन्हें हम आपको बताना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि सिनॉद ऑफ बिशप्स ने एक ऐसा संगठन है जिसके सदस्य होंगे विश्व के चुने हुए धर्माध्यक्ष जो संत पापा को कलीसिया के संचालन में मदद देंगें। यह काथलिक कलीसिय की केन्द्रीय संस्था होगी जो स्थायी होगी जिसके प्रतिनिधि धर्माध्यक्ष होंगे और इसके सदस्य उसी समय जमा होंगे जब संत पापा इसकी ज़रूरत समझेंगे।
सिनॉद ऑफ बिशप्स की कार्य है संत पापा को अपने क्षेत्र के बारे में सूचित करना, उन्हें अपनी सलाह देना और संत पापा को कलीसिया के लिये निर्णय करने में मदद देना। कई बार धर्माध्यक्षों की सभा को निर्णय लेने का अधिकार भी दिया जाता है पर इस निर्णय को अंतिम रूप से स्वीकृति प्रदान का अधिकार पोप को ही होता है।
श्रोताओ, अगर हम सिनॉद ऑफ बिशप्स के लक्ष्य के बारे में बातें करें तो हम पायेंगे कि यह चाहती ह कि कलीसिया के हित के लिये संत पापा के मिल कर कार्य करे और उसके साथ सहयोग करे। संत पापा को अपने क्षेत्र के बारे में सूचनायें प्रदान करे और कलीसिया के सिद्धांत संबंधी मामलों में लोगों को सहमत करने में मदद पहुँचाये।

(कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के इस दूसरे अंक में हमने जानकारी प्राप्त की ‘कोड ऑफ कैनन लॉ’ के आधार पर ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ के लक्ष्य और अधिकारों के बारें में। अगले सप्ताह हम धर्माध्यक्षों की महासभा के लक्ष्यों और अधिकारों के बारे में ही आगे जानकारी प्राप्त करेंगे।)













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