पुरोहितों के वर्ष की समाप्ति पर संत पापा का उपदेश 11 जून, 2010 भाग-1
पुरोहितों के वर्ष की समाप्ति पर रोम में 9 से 11 जून तक तीन दिवसीय समारोह का आयोजन
किया गया था, जिसमें देश-विदेश के हज़ारों पुरोहितों ने हिस्सा लिया। संत पापा ने पुरोहित
वर्ष के समापन की घोषणा करते हुए 11 जून शुक्रवार को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण
में यूखरिस्तीय बलिदान चढ़ाया। उन्होंने अपने प्रभाषण में पौरोहित्य जीवन से जुड़े कई
मुद्दों पर लोगों को अपने संदेश दिये। पुरोहित वर्ष के अवसर पर वाटिकन रेडियो हिन्दी
विभाग ने ' एक मुलाकात ' एक विशेष कार्यक्रम चलाया जिसमे महामहिम कार्डिनल तेलेस्फोर
पी. टोप्पो, धर्माध्यक्षों और अनेक पुरोहितों के साक्षात्कार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम
की समाप्ति हम चाहते हैं कि संत पापा के संदेशों के मुख्य बिन्दुओं को अपने प्रिय पाठकों
तक पहुँचायें। प्रस्तुत है संत पापा के उपदेश के मुख्यांश का पहला भाग। मेरे अति
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत योहन मेरी वियन्नी पुरोहितों के संरक्षक संत और आदर्श
की मृत्य के 150 वर्षगाँठ के अवसर पर मनाये जाने वाला पुरोहितों के वर्ष का समापन हो
रहा है। हमने संत योहन मेरी वियन्नी को इस एक साल में अपने आप को समर्पित कर दिया था
ताकि वे हमें पुरोहिताई की महत्ता और इसके विभिन्न क्रियाकलापों के बारे में हमारा मार्गदर्शन
कर सकें। पुरोहित जीवन है क्या? भाईयो और बहनों, पुरोहित समाज के लिये कार्य
करने वाला एक ' कार्यकर्त्ता ' मात्र नहीं है जो समाज को कुछ सेवायें प्रदान करता है।
पुरोहित का कार्य एक ऐसा कार्य है जिसे कोई भी मानव सिर्फ अपने बले-बूते नहीं कर सकता
है। ईशपुत्र येसु मसीह के नाम पर ही वह उन पवित्र वचनों को उच्चरित करता है जिससे इसमें
विश्वास करने वालों के पापों की क्षमा होती है और इस तरह से वह हमारे पूरे जीवन को बदल
देता है और इसे अर्थपूर्ण बनाता है। हम विश्वास करते हैं कि पुरोहित पवित्र यूखरिस्तीय
बलिदान चढ़ाता है तो रोटी और दाखरस को ईश्वर को चढ़ाते समय जिन धन्यवादी शब्दों को उच्चरित
करता है उससे रोटी और दाखरस, येसु के बदन और लोहू में बदल जाते हैं। हम यह भी विश्वास
करते हैं कि पुरोहित के शब्दों से येसु हमारे बीच उपस्थित हो जाते हैं। येसु के हमारे
बीच उपस्थित होने से हमारे लिये स्वर्गीय मार्ग खुल जाता है। इससे हमारे लिये ईश्वर से
एक होने का द्वार खुल जाता है ताकि हम एक दिन ईश्वर के साथ पूर्ण रूप से एक हो जायें।
पुरोहिताई सिर्फ़ एक पेशा नहीं अब प्रश्न उठता है आखिर पुरोहिताई क्या है।
यह बात तो बिल्कुल साफ है कि पुरोहिताई सिर्फ़ एक ' पद ' या ' पेशा ' नहीं है, पर
एक संस्कार है। ईश्वर इस संस्कार के द्वारा मनुष्यों का उपयोग करता है ताकि वह मनुष्यों
के बीच रह सके और उन्हीं की ओर से कार्य कर सके। ईश्वर ने मानव की कमजोरी को जानते हुए
भी मानव पर भरोसा करने का साहस किया है और मानव को इस योग्य समझा कि वह उसके के नाम पर
कार्य करे और उसकी शक्ति का प्रयोग करे। सच पूछा जाये तो ' पुरोहिताई ' शब्द में ईश्वर
की महानता छुपा हुआ है। पुरोहिताईः ईश्वर का आमंत्रण ईश्वर जानता है कि मानव इस
कृपा के योग्य है और इसीलिये उन्होंने मनुष्य को इस सेवा के लिये आमंत्रित किया है उन्होंने
उसे इस कार्य को पूरा करने की आंतरिक शक्ति प्रदान की है। भाईयो और बहनों, पुरोहित वर्ष
में हमने पूरे साल भर इन्हीं बातों के बारे में मनन-चिन्तन करते रहे। अगर हम पुरोहितों
के जीवन पर विचार करते हैं तो हम पायेंगे कि पुरोहितों के द्वारा हम ईश्वर बहुत करीब
आ गये हैं। पुरोहित वर्ष में हमने इसी खुशी को धन्यवादी ह्रदय से जागृत करने का प्रयास
किया है। हम प्रसन्न इसलिये हैं क्योंकि ईश्वर ने हमारी कमजोरी के बावजूद हम पर भरोसा
किया है। इतना ही नहीं उन्होंने हमें अकेला नहीं छोड़ दिया है वरन् सदा हमारी रक्षा करता
और हमें परिपोषित करता है। युवाओं को आह्वान पुरोहितों के वर्ष में हम युवाओं
को भी यह बताना चाहते थे कि ईश्वर के साथ हमारा एक विशेष संबंध है और ईश्वर हमें अपनी
सेवा के लिये आमंत्रित करता रहता है। वह इस बात का इंतज़ार करता है कि हम उसकी सेवा के
लिये आगे आयें और ' हाँ ' कहें। पूरी कलीसिया के साथ एक होकर हम ईश्वर से यह वरदान माँगे
कि वह लोगों को इस सेवा के लिये चुने। आज हम इस कृपा के लिये ईश्वर से याचना करें कि
वह ईश्वरीय दाखबारी में कार्य करने के लिये अपने सेवकों को भेजे। वह हमारे युवाओं के
दिल पर दस्तख़ दे और प्रेरित करे ताकि वे इस बात को समझ सकें कि ईश्वर उन्हें इस योग्य
समझता है कि वे उसके कार्य को आगे बढ़ा सकें। पुरोहितीय खामियाँ और कमजोरियाँ भाइयों
एवं बहनों आज इस बात को समझना आवश्यक है कि पुरोहिताई का जीवन " दुश्मनों " को पसंद नहीं
है। हमारे दुश्मन तो चाहेंगे कि पुरोहिताई सदा के लिये समाप्त हो जाये और पुरोहिताई की
समाप्ति के साथ ही लोग ईश्वर को भूल जायें। विडंबना है कि इस वर्ष में जब कलीसिया
पुरोहिताई संस्कार होने की खुशी मना रही है उसी समय कुछ पुरोहितों के ' खामियाँ और कमजोरियाँ
' भी प्रकाश में आयीं हैं, विशेष कर के पुरोहितों द्वारा किये गये बाल यौन दुराचार।
इस घटना से यह बात लोगों के समक्ष यह बात आ गयी है कि पुरोहितों ने अपनी ज़िम्मेदारी
के ठीक विपरीत कार्य किये हैं। उन्होंने ईश्वरीय कृपा और प्रेम को लोगों के बीच में बाँटने
के बदले लोगों को पीड़ा और ठोकर दिया है।
क्षमा की याचना व प्रार्थना अतः
आज हम ईश्वर और उन लोगों से से दया और क्षमा की याचना करते हैं जिन्हें इससे क्षति पहुँची
है। हम आज एक साथ मिलकर यह भी मनसूबा बाँधते हैं कि इस तरह के दुराचार और फिर कभी नहीं
होंगे। इसके साथ हम इस बात की भी प्रतिज्ञा करते हैं कि जब हम पुरोहिताई कार्य के लिये
नये सदस्यों का चयन करेंगे तो उनका प्रशिक्षण ऐसा होगा कि वे अपनी बुलाहट में मजबूत रह
सकें। हम सक्रिय कलीसिया के रूप में उन्हें ऐसी सहायता देंगे कि वे अपने पुरोहिताई जीवन
में साहस के साथ आगे बढ़ सकें। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी रक्षा करें
विशेष करके ऐसे समय में जब वे जीवन की चुनौतियों का सामना कर रहे हों। भाइयो और बहनों,
अगर यह साल पुरोहितों के व्यक्तिगत परिश्रम का फल होता तो इस साल पौरोहित्य के प्रतिकूल
जो घटनायें घटीं उनसे कलीसिया को बहुत क्षति होती। पर ऐसा नहीं हुआ। दुश्मनों की अपेक्षा
के विपरीत पूरी कलीसिया इस विकट परिस्थिति में भी ईश्वरीय वरदान को पहचान पायी। लोगों
ने ' कमजोर मानव ' में छिपे हुए ईश्वरीय प्रेम को पहचाना है। आज हमें चाहिये कि
हम पिछले दिनों को पर चिन्तन करें और इसे ‘शुद्धिकरण का समय’ मानें। इसे एक ऐसा मिशन
का समय मानें जिसे हम आने वाले दिनों में पूरा करेंगे। जब हम पिछले दिनों की घटनाओं को
कलीसिया के पवित्रीकरण का समय मान पायेंगे तो हम पुरोहितों के जीवन के लिये भी ईश्वर
को धन्यवाद दे पायेंगे उसी ईश्वर को जो सदा हमारे लिये महान् वरदान देते हैं। अगर
हम इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि ईश्वर ने हमें पुरोहितों के रूप में वरदान दिये
हैं और कमजोर मानव पर इतना भरोसा करने का साहस और नम्रता दिखाया है तो हम पूरे उत्साह
और नम्रता से ईश्वर को अपना प्यार भरा प्रत्युत्तर देंगे। पुरोहितों के वर्ष की
समाप्ति के साथ हम येसु के पवित्र ह्रदय का त्योहार भी मना रहें जिसके ह्रदय को एक सिपाही
ने छेदा और उसका ह्रदय सबके लिये खुल गया था। आज जब हम पुरोहितों के जीवन और कार्यों
पर चिन्तन कर रहे हैं तो यह उचित है कि हम येसु के पवित्र ह्रदय की ओर पलट कर देखें।
पुरोहितों का ह्रदय येसु के ह्रदय से जुड़ा होना चाहिये। येसु ही उनके जीवन का श्रोत
बनें और उन्हीं के जीवन से वे प्रेरणा पायें। ऐसा होने से ही प्रत्येक पुरोहित एक ऐसा
जीवन का श्रोत बन पायेगा जो दूसरे के जीवन को सिंचित कर सकता है ताकि उनका जीवन सुन्दर,
सफल और सार्थक बन सके।