संत पापा ने इराक के राजदूत का प्रत्यय पत्र स्वीकार किया
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने वाटिकन के लिए नवनियकुत इराक के राजदूत हब्बीब मुहम्मद
रादी अली अल सद्र का प्रत्यय पत्र शुक्रवार 2 जुलाई को स्वीकार किया। इस अवसर पर दिये
गये संदेश में उन्होंने इराक के राष्ट्रपति जलाल तालाबानी और सब नागरिकों को अपनी शुभकामनाएँ
दीं।संत पापा ने कहा कि इराक के नागरिकों ने 7 मार्च 2010 को विश्व को स्पष्ट संदेश दिया
कि वे हिंसा का अंत तथा लोकतंत्र के पथ पर चलना चाहते हैं जिसके द्वारा वैध, बहुजातीय,
समावेशी समाज में वे सौहार्दपूर्वक जीवन जी सकें। संत पापा ने कहा कि नयी सरकार के गठन
होने तथा राजनैतिक नेताओं से महान साहस एवं दृढ़ता प्रदर्शित करने की आशा की जाती है
ताकि लोगों की स्थायी और संगठित इराक देखने की आकांक्षा पूरी हो सके।
उन्होंने
कहा कि वाटिकन इराक को राजनैतिक और कूटनैतिक संबंधों के द्वारा हमेशा सहायता करेगा ताकि
यह क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में अपना स्थान पाये और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए
बहुत योगदान दे। सरकार लोगों की, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों समुदायों और ईसाईयों की सुरक्षा
को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करे। ईराकी ख्रीस्तीयों कि चिंताओं को महत्व देता है ताकि
वे अपने पैतृ्क भूमि में रहें तथा जो लोग पलायन किये हैं वे वापस लौट सकें। साथ ही यह
आशा कि जाती है कि भविष्य में इराकी समाज शंतिपूर्ण सहअस्ति्त्व में जीवन यापन कर सके।
संत पापा ने कहा कि देश के पुर्ननिर्माण के लिए अल्पसंख्यक काथलिक समुदाय शैक्षणिक
और चिकित्सा प्रेरिताई के द्वारा योगदान देता रहेगा। हाल में हुई हिंसक घटनाओं से ईसाई
और मुसलमान दोनों प्रभावित हुए हैं। यह पीड़ा दोंनों समुदायों को मजबूती से बांधें कि
वे मिलकर मेलमिलाप और शांति स्थापना के लिए काम करें। अनेक धार्मिक नेताओं और निर्दोष
सामान्य जनता की शहादत को देखते हुए संत पापा ने कहा कि इराकी जनता अहिंसा के उच्च मूल्यों
वाले पथ पर चले। मानवाधिकारों का सम्मान कानूनी और व्यवहारिक तौर पर करने के सरकार के
समर्पण को देखते हुए उन्होंने कहा कि सबलोगों के बुनियादी अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता
को मान्यता प्रदान करते हुए सुरक्षित रखा जाये ताकि सार्वजनिक हित के ल्क्ष्य को पूरा
किया जा सकेंगा। उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व क्षेत्र के धर्माध्यक्षों की आगामी धर्मसभा
मध्य पूर्व श्रेत्र में स्थानीय कलीसिया की भूमिका और मसीही साक्ष्य पर चिंतन करने का
अवसर उपलब्ध करायेगी ताकि अंतर धार्मिक वार्ता के महत्वपूर्ण काम को संवेग मिलेगा और
यह शांतिपूर्ण जीवन यापन के लक्ष्य को पाने की दिशा में सहयोग देगा।