2010-06-07 12:14:38

निकोसिया,साईप्रसः मध्यपूर्व को रक्तपात से बचाने हेतु अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों को सघन करने की सन्त पापा की अपील


साईप्रस में अपनी यात्रा के अन्तिम दिन, रविवार को, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने मध्यपूर्व में विद्यमान झगड़ों का अन्त करने तथा उस क्षेत्र के लोगों को और अधिक रक्तपात से बचाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों को सघन किये जाने की अपील की।
स्मरण रहे कि सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें रविवार सन्ध्या साईप्रस की तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा सम्पन्न कर पुनः रोम लौटे हैं। चार जून से छः जून तक जारी इस यात्रा ने विश्व का ध्यान आठ लाख की आबादी वाले साईप्रस द्वीप की ओर आकर्षित कराया है जो सन् 1974 से देश के उत्तरी भाग पर तुर्की के कब्ज़े के कारण पीड़ित हैं। ख्रीस्तीय बहुल दक्षिणी साईप्रस के लोगों का आरोप है कि उत्तरी साईप्रस में तुर्की के अधिकरण के बाद से 500 से अधिक गिरजाघरों एवं आराधना स्थलों को नष्ट कर दिया गया है तथा साईप्रस की ख्रीस्तीय धरोहर एवं संस्कृति को मिटाने का प्रयास अभी भी जारी है।
साईप्रस की राजधानी निकोसिया के एल्फतेरिया खेल मैदान में सन्त पापा ने लगभग दस हज़ार श्रद्धालुओं के लिये रविवार को ख्रीस्तयाग अर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों को आगामी धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का "इन्सत्रत्रूमेनतुम लाबोरिस" अर्थात् कार्यकारी दस्तावेज़ भी अर्पित किया। मध्यपूर्व के लिये धर्माध्यक्षीय धर्मसभा आगामी अक्तूबर माह की 10 से 24 तारीख तक रोम में आयोजित की गई है।
धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के लिये "इन्सत्रत्रूमेनतुम लाबोरिस" धर्माध्यक्षों के सिपुर्द करते हुए सन्त पापा ने कहा, "मैं प्रार्थना करता हूँ कि विशिष्ट सभा का कार्य अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान मध्यपूर्व के ख्रीस्तीय धर्मानुयियों के प्रति आकर्षित करेगा जो अपने विश्वास ख़ातिर पीड़ित हैं ताकि उन झगड़ों का न्यायसंगत एवं स्थायी समाधान मिल सके जिनसे इतनी अधिक कठिनाईयाँ उत्पन्न हुई हैं।" उन्होंने आगे कहा, "इस गम्भीर विषय पर मैं, अत्यावश्यक एवं संगठित अन्तरराष्ट्रीय प्रयास हेतु अपनी वैयक्तिक अपील की पुनरावृत्ति करता हूँ कि इन संघर्षों से और अधिक रक्तपात होने से पूर्व, मध्यपूर्व और, विशेष रूप से, पवित्रभूमि में अनवरत जारी तनावों का समाधान ढूँढ़ा जाये।"
ग़ौरतलब है कि मध्यपूर्व दशकों से इसराएली फिलीस्तीनी झगड़ों से जूझ रहा है, साईप्रस की जनता विभाजन से त्रस्त है, लेबनान में अस्थिर राजनैतिक स्थिति से उत्पन्न समस्याओं का लोगों को सामना करना पड़ रहा है तो ईराक के युद्ध ने देश को केवल आर्थिक क्षति ही नहीं पहुंचाई है अपितु वहाँ की संस्कृति, परम्पराओं एवं धार्मिक आस्था पर भी घोर प्रहार किया है। क्षेत्र के कई देशों में रूढ़िवादी मुस्लिम दल शक्तिशाली हो गये हैं तथा ग़ैरमुसलमानों पर अत्याचार कर रहे हैं।
इन चुनौतियों के कारण विगत दशकों में मध्यपूर्व के देशों से लाखों ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को क्षेत्र से पलायन कर अन्यत्र शरण लेनी पड़ी है। इन सभी समस्याओं पर विशद विचार विमर्श हेतु सन्त पापा ने मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों को अक्तूबर माह में रोम आमंत्रित किया है। सन्त पापा की आशा है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता प्राप्त कर मध्यपूर्व के लोग न्याय एवं शांति पर आधारित समाज की रचना कर सकेंगे जिसमें यहूदी, मुसलमान एवं ख्रीस्तीय तीनों धर्मों के लोगों के अधिकारों का सम्मान हो सके तथा वे सब एक साथ मिलकर जीवन यापन कर सकें।
अक्टूबर माह में आयोजित धर्मसभा के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए सन्त पापा ने कहाः "धर्मसभा, केवल विश्व में व्याप्त ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के लिये ही नहीं अपितु आपके पड़ोसियों एवं सहनागरिकों के लिये भी, बाईबिल भूमि में ख्रीस्तीयों की उपस्थिति एवं उनके साक्ष्य के महत्वपूर्ण मूल्य की प्रकाशना का सुअवसर सिद्ध होगी।"
सन्त पापा ने कहाः "आप अपने यहूदी और मुसलमान पड़ोसियों के साथ शांति एवं मैत्री में जीवन यापन करना चाहते हैं और इसीलिये प्रायः पुनर्मिलन की कठिनतम प्रक्रियाओं में आप शांति निर्माताओं की भूमिका अदा करते हैं।"
मध्यपूर्व के लिये आयोजित धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का "इन्सत्रत्रूमेनतुम लाबोरिस" अर्थात् कार्यकारी दस्तावेज़ ख्रीस्तीय एकता, अन्तरधार्मिक वार्ता, पूर्वी रीति की कलीसियाओं एवं सुसमाचार प्रचार के कार्यों से जुड़े मध्यपूर्व एवं वाटिकन के धर्माधिकारियों द्वारा तैयार किया गया है। 45 पृष्ठोंवाला यह दस्तावेज़ अरबी, फ्रेंच, अँग्रेज़ी और इताली भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। इसमें मध्यपूर्व के ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को समर्थन देने हेतु विश्व से अपील की गई है ताकि न्याय एवं शांति की स्थापना में वे अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें।








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