2010-05-31 12:11:04

जिनिवाः विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर तम्बाकू पर कठोर नियमों का आह्वान


विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यू.एच.ओ. ने विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के उपलक्ष्य में तम्बाकू पर कठोर नियमों का आह्वान किया। डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार तम्बाकू सेवन का सर्वाधिक बोझ निर्धन लोग उठा रहे हैं।
बीड़ी, सिगरेट, गुटका तथा तम्बाकू की लत जानलेवा हो सकती है इस तथ्य के प्रति चेतना जागरण हेतु 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया गया। प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार प्रति वर्ष तंबाकू सम्बन्धी बीमारियों से लगभग 50 लाख लोगों की जानें जाती हैं। सन् 2020 तक ये संख्या क़रीब एक करोड़ तक पहुँच सकती है।
तम्बाकू निषेध दिवस का विषय हैः "तम्बाकू और निर्धनता, एक दूषित चक्र"। तम्बाकू और निर्धनता का घनिष्ठ सम्बन्ध है इस तथ्य की पुष्टि कर डब्ल्यू.एच.ओ. ने बताया कि 84 प्रतिशत तम्बाकू सेवन करनेवाले निर्धन एवं विकासशील देशों में जीवन यापन करते हैं। भारतीय तम्बाकू नियंत्रण न्यास की डॉक्टर संजीला मैनी सचेत करती हैं, ''शौक में नशा शुरु किया जाता है लेकिन लोगों में यह चेतना जाग्रत करनी होगी कि इसके सेवन से सांस की बीमारियों से लेकर कैंसर तक का ख़तरा बढ़ जाता है।''
तम्बाकू सेवन के मामले में भारत का नम्बर चीन के बाद दूसरा है। अनुमान है कि भारत में सिगरेट, बीड़ी, गुटके और खैनी जैसे तंबाकू उत्पादों का सेवन करने वालों की संख्या लगभग साढे 29 करोड़ तक हो सकती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 के अनुसार, भारत में 37 प्रतिशत पुरुष और 10.8 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी प्रकार से तंबाकू का सेवन करते हैं। हर तीसरा पुरुष और आठ प्रतिशत महिलाएं गुटका या पान मसाला खाती हैं।
राजनैतिक दृष्टि से यदि देखा जाये तो भारत में तंबाकू एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद है और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी अहं भूमिका है। तंबाकू बोर्ड के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 72 करोड़ 50 लाख किलो तंबाकू का उत्पादन होता है। तंबाकू निर्यात की दृष्टि से ब्राज़ील, चीन, अमरीका, मलावी और इटली के बाद भारत छठवें स्थान पर है।
ग़ौरतलब है कि सम्पूर्ण विश्व में तम्बाकू के ख़िलाफ़ चलाये जा रहे अभियानों के बावजूद तंबाकू उत्पाद में संलग्न कंपनियाँ चबाए जाने, सूँघे जाने और हुक्कों में उपयोग किए जाने वाले उत्पादों को सिगरेट से कम नुक़सानदेह बता कर उन्हें युवाओं और महिलाओं में लोकप्रिय करने की कोशिश कर रही हैं। तंबाकू विरोधी अभियानों पर विश्व के देश जितना खर्च करते हैं, उससे पाँच गुना ज्यादा वे तंबाकू पर टैक्स लगाकर कमाते हैं। ज़ाफरानी ज़र्दा ऐंड पान मसाला एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के कार्यकारी निदेशक चैतन्य अग्रवाल कहते हैं, ''सरकार इस पर भारी टैक्स लगाती है लेकिन ये भी तथ्य महत्वपूर्ण है कि इससे लाखों लोगों की रोज़ी रोटी चलती है।''
अमरीकी संस्थान ब्लूमबर्ग और बिल एवं मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से सम्पन्न अध्ययन में ये सुझाव दिया गया है कि भारत में तंबाकू के प्रयोग को कम करने के सबसे कारगर उपायों में से एक है उत्पाद करों को बढ़ाकर तंबाकू उत्पादों के दाम में वृद्धि की जाये।
संस्थान का कहना है कि इस पर नियंत्रण यदि नहीं किया गया तो 2010 तक, भारत में, तंबाकू के कारण प्रति वर्ष मरने वालों की संख्या क़रीब 10 लाख तक हो सकती है जिनमें अधिकांश निर्धन एवं अशिक्षित लोग होंगे।








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