2010-05-21 17:26:50

धर्मसिद्धा्न्त, अनुशासन और भक्ति का महत्व


सुसमाचार प्रचार संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल आइवन डायस ने रोम में सम्पन्न हो रही परमधर्मपीठीय मिशनरीज सोसायटीज की सामान्य आमसभा के प्रतिभागियों को 20 मई को सम्बोधित करते हुए कहा कि कलीसिया के कार्यों को सम्पन्न करते समय पुरोहितों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे धर्मसिद्धा्न्त, अनुशासन और भक्ति के प्रति स्वयं को समर्पित करें। उन्होंने फीदेस समाचार सेवा से कहा कि धर्मसिद्धान्तों को देखने का अर्थ है ईशवचन, कलीसिया की शिक्षा तथा संत पापा के शब्दों का पालन करने के प्रति निष्ठा। अनुशासन या डिसिपलिन का अर्थ है मानसिक और शारीरिक अनुशासन जो मानवीय और आध्यात्मिक परिपक्वता का चिह्न और फल है। इसी में शामिल है शुद्धता के पथ में प्रशिक्षण, संबंधों और समुदायों में विवादों और संघर्षों का प्रबंध करना तथा खाली समय और नवीन तकनीकियों के उपयोग का प्रबंध करना। भक्ति के संबंध में कार्डिनल महोदय ने कहा कि पुरोहित अपने हर दैनिक काम में इस तथ्य के प्रति जागरूक रहे कि वह ईश्वर का व्यक्ति है, वह आत्मा को प्राथमिकता दे तथा स्मरण करे कि वह दुनिया में है लेकिन वह दुनिया का नहीं है। वह पवित्रता का प्रसार करे विशेष रूप से ख्रीस्तयाग अर्पित करते तथा अन्य संस्कारों को देते समय विश्वासियों को येसु ख्रीस्त की जीवंत उपस्थिति का साक्षात्कार करने में मदद करे।







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