2010-05-13 16:54:13

फातिमा में पुरोहितों और धर्मसमाजियों के साथ संध्या वन्दना के समय संत पापा का संदेश


संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने फातिमा स्थित त्रियेक ईश्वर को समर्पित गिरजाघर में 12 मई को संध्या वन्दना के समय दिये गये संदेश में कहा कि वे उन सबको जिन्होंने अपना जीवन ख्रीस्त को समर्पित कर दिया है कलीसिया और सुसमाचार के प्रति उनकी निष्ठा के लिए धन्यवाद देते हैं। पुरोहितों को समर्पित वर्ष में जो समाप्त होने जा रहा है उनकी कामना है कि सबपर ईश्वरीय कृपा बहुतायत में हो ताकि वे अपने समर्पण को आनन्दपूर्वक जी सकें और पौरोहितिक निष्ठा की साक्षी दें। संत पापा ने इसके लिए प्रार्थना में, ख्रीस्त के साथ घनिष्ठता को जरूरी बताते हुए कहा कि समर्पित स्त्री पुरूष प्रार्थना और तपस्या के प्रति समर्पण, आध्यात्मिक जीवन में प्रगति, प्रेरिताई और मिशन के द्वारा स्वर्गिक येरूसालेम की ओर बढ़ रहे हैं। आज इस प्रकार के साक्ष्य की बहुत अधिक जरूरत है।


संत पापा ने कहा कि अनेक भाई और बहन ऐसा जीवन जीते हैं मानो इस जीवन से परे कुछ भी नहीं है तथा अपनी अनन्त मुक्ति के बारे में कोई परवाह नहीं करते हैं। लोगों को बुलाया जाता है कि वे ईश्वर को जानें और प्रेम करें तथा कलीसिया का मिशन लोगों को इस बुलावे को समझने में सहायता करना है। आर्स के पुरोहित संत जोन मेरी वियन्नी का अनुसरण करने का आह्वान करते हुए संत पापा ने कहा कि इन्होंने भले ईश्वर के लिए आत्माओं को जीतनेवाले पुरोहित बनने का निश्चय किया। यह पवित्र पुरोहित प्रत्येक पापी के साथ मिलते समय येसु के समान ही उदारता से पूर्ण थे।


संत पापा ने कहा कि अपनी बुलाहट के प्रति निष्ठा बहुत साहस और भरोसे की माँग करती है, ईश्वर चाहते हैं कि पुरोहित एक दूसरे की परवाह करें और भ्रातृत्व भावना में एक दूसरे को प्रार्थना, उपयोगी परामर्श और मनन चिन्तन के द्वारा मदद दें। वे उन परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील रहें जहाँ पौरोहितिक आदर्शों में कमी आ रही है या ऐसे काम हो रहे हैं जो येसु के पुरोहित के सुसंगत नहीं हैं।
संत पापा ने पुरोहितों को विश्वासियों के मध्य नये पौरोहितिक बुलाहटों के विकास के लिए काम करते रहने के लिए प्रोत्साहन देते हुए यह कामना की कि धन्य कुँवारी माता मरियम पुरोहितों और उपयाजको, समर्पित महिलाओं और पुरूषों, गुरूकुल छात्रो और लोकधर्मियों को निष्ठा के इस पथ पर चलने में मार्गदर्शन दें। हम मरियम के साथ और उन्हीं के समान संत बनने, निर्धन, शुद्ध और आज्ञाकारी बनने के लिए स्वतंत्र हों तथा स्वयं के बंधन से मुक्त हों ताकि दूसरे लोग भी ख्रीस्त में बढ़ें।








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