पुर्तगाल में अपनी चार दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दूसरे चरण में बुधवार सन्ध्या सन्त
पापा बेनेडिक्ट 16 वें मरियम दर्शन के लिये विख्यात पुर्तगाल के फातिमा नगर पधारे।
मंगलवार
को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रोम से पुर्तगाल की राजधानी लिसबन के लिये प्रस्थान
किया था। इटली से बाहर अपनी 15 वीं विदेश यात्रा के दौरान सन्त पापा राजधानी लिसबन, फातिमा
नगर तथा पोर्तो शहर की भेंट कर रहे हैं।
बुधवार को लिसबन से विदा लेने से पूर्व
उन्होंने राजधानी स्थित बेलेम सांस्कृतिक केन्द्र में शिक्षा, विज्ञान, कला एवं संस्कृति
जगत के लगभग 1,400 विद्धानों को सम्बोधित करते हुए पुर्तगाल के गौरवमय अतीत का स्मरण
दिलाया। उन्होंने याद किया कि पुर्तगाल उद्यमशील खोजकर्त्ताओं एवं महान मिशनरियों की
भूमि रही है जिन्होंने ख्रीस्तीय धरोहर के वैभव को ब्रहमाण्ड के ओर छोर तक विस्तृत किया।
पुर्तगाल के श्रेष्ठजनगण से उन्होंने अपील की कि वे धर्म के प्रति उदासीन होते तथा भौतिकतावाद
के पीछे दौड़ते देश के लोगों को उनकी ख्रीस्तीय जड़ों का स्मरण दिलायें ताकि एकात्मता,
भ्रातृत्व एवं पड़ोसी प्रेम के मानवीय मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठापित किया जा सके तथा
आधुनिक जगत के छल कपट एवं माया जाल से लोगों को मुक्त किया जा सके।
बुधवार अपराह्न
सन्त पापा बेनेडिक्ट ने लिसबन से लगभग 120 किलो मीटर की दूरी पर स्थित फातिमा नगर का
रुख किया। फातिमा पुर्तगाल के केन्द्र में बसा वही नगर है जहाँ 93 वें वर्ष पूर्व 13
मई सन् 1917 ई. को तीन चरवाहे बालकों, जसिन्ता, फ्राँसिसको एवं लूसिया, ने पहली बार मरियम
के दर्शन पाये थे। प्रतिवर्ष सम्पूर्ण विश्व से लाखों तीर्थयात्री मरियम भक्ति के लिये
फातिमा नगर पहुँचते हैं। मरियम दर्शनों की स्मृति में ही सन् 1919 ई. में यहाँ एक आराधनालय
की स्थापना की गई थी तथा लगभग एक मीटर ऊँची पवित्र कुँवारी मरियम की प्रतिमा को प्रतिष्ठापित
किया गया था। सन् 1956 में मरियम प्रतिमा का मुकुटाभिषेक किया गया जिसे तीर्थ के इतिहास
में अब तक सात बार, भक्ति के लिये, यहाँ से अन्यत्र ले जाया गया है। सन् 2000 में प्रभु
येसु मसीह की जयन्ती के उपलक्ष्य में स्व. सन्त पापा जॉन पौल के आग्रह पर फातिमा की मरियम
प्रतिमा को रोम लाया गया था।
फातिमा पुर्तगाल का एक छोटा सा नगर है जिसकी कुल
आबादी मात्र आठ हज़ार है तथापि यह विश्व के काथलिकों का प्रमुख मरियम तीर्थ है। नगर में
कई आध्यात्मिक साधना केन्द्र हैं, कई मठ हैं तथा कई धर्मसमाजों के आश्रम हैं। इनके अतिरिक्त
कई शरण स्थल एवं धर्मशालाएँ हैं जहाँ तीर्थयात्रियों को आतिथेय प्रदान किया जाता है।
सन् 1919 ई. में निर्मित, मूल आराधनालय को ज्यों का त्यों सुरक्षित रखा गया है जहाँ दर्शन
पाने वाले नौ वर्षीय फ्राँसिसको, सात वर्षीय जसिन्ता तथा दस वर्षीय लूसिया की समाधियाँ
हैं। 11 वर्ष की आयु में फ्राँसिसको का निधन सन् 1919 ई. में तथा दस वर्ष की आयु में
उसकी छोटी बहन जसिन्ता का निधन सन् 1920 ई. में हो गया था जबकि लूसिया का निधन सन् 2005
में हुआ। सन् 2000 में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने फाँसिसको एवं जसिन्ता को धन्य घोषित
कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था जबकि सि. लूसिया की धन्य घोषणा हेतु लिरिया -फातिमा
धर्मप्रान्त ने उनके प्रकरण पर अध्ययन आरम्भ कर दिया है। इस समय सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें की यात्रा फ्राँसिसको और जसिन्ता के धन्य घोषित होने की दसवीँ वर्षगाँठ भी मना
रही है।