कार्डिनल विलियम लेवादा ने कहा है कि बढ़ता नास्तिकवाद तथा चर्च के धर्मसिद्धान्तों को
विकृत करनेवाली पुस्तकों की लोकप्रियता यह आह्वान करती है कि नये आपोलेजिटिक द्वारा ख्रीस्तीय
विश्वास की व्याख्या और रक्षा की जाये। रोम स्थित रेजीना अपोस्तोलोरूम विश्वविद्यालय
में 29 अप्रैल को एक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि खास स्थान और समय
की माँग को देखते हुए सुसमाचार की उदघोषणा करते समय विश्वास की रक्षा और व्याख्या करना
शामिल है। अपोलोजेटिकस (विश्वास के सत्य की रक्षा और व्याख्या करने की पद्धति) का विकास
और उपयोग बहुत हद तक द्वितीय वाटिकन महासभा के साथ ही लुप्त हो गया। उन्होंने कहा कि
इस पद्धति की आज भी जरूरत है क्योंकि हर युग में काथलिकों को अपने विश्वास और भरोसे के
कारणों की व्याख्या करने का आह्वान किया जाता है। उन्होंने कहा कि द्वितीय वाटिकन महासभा
के साथ ही इस पद्धति की आलोचना की जाती थी तथा इसे बहुत आक्रामक या रक्षात्मक मानते हुए
इसका उपयोग नहीं किया जाता था। संभवतः इस दिशा में सह्दयता और सम्मान के साथ अग्रसर होने
की बहुत बार उपेछा की गयी।