साम्प्रदायिक हिंसा पर रोक लगाने संबंधी प्रस्तावित केन्द्रीय विधेयक में परिवर्तन करने
की माँग
(भुवनेश्वर, उकान) भारत के उड़ीसा राज्य में कलीसियाई और सामाजिक कार्य़कर्त्ताओं ने
देश में साम्प्रदायिक हिंसा पर रोक लगाने संबंधी प्रस्तावित केन्द्रीय विधेयक में गहन
परिवर्तन करने की माँग की है। भुवनेश्वर में 21 और 22 अप्रैल को आयोजित सम्मेलन में 52
सामाजिक कार्यकर्त्ता, वकील और कलीसियाई नेता शामिल हुए। उन्होंने साम्प्रदायिक हिंसा
विधेयक की समीक्षा की जिसे भारतीय संसद द्वारा इस वर्ष पारित कर दिये जाने की उम्मीद
की जा रही है। सम्मेलन में शामिल हुए अधिकाँश प्रतिभागी सन 2008 में उड़ीसा के कंधमाल
जिले में हुई ईसाई विरोधी दंगे से संबंधित अनेक मामलों के अनुसंधान से जुड़े हैं। इन
दंगों में 90 से अधिक लोग मारे गये थे तथा लगभग 50 हजार लोग बेघर हो गये थे। सेमिनार
के प्रतिभागियों ने प्रस्तावित विधेयक में अनेक कमियाँ देखते हुए कहा है कि इनका दुरूपयोग
साम्प्रदायिक हिंसा के समय किया जा सकता है जैसा कि कंधमाल में हुआ था। उन्होंने सरकार
से दंगा रोकनेवाले विधेयक का नया प्रारूप तैयार करने की माँग की है जिसमें खुली, पारदर्शी
और सार्वजनिक प्रक्रिया का उपयोग किया जाये तथा नयी समिति में न्यायाधीशों, सामाजिक कार्य़कर्त्ताओं
सहित शिक्षा और कानून जगत् के विशेषज्ञों को शामिल किया जाये। यह समिति जाँच हेतु गठित
विभिन्न आयोगों की अनुसंशाओं और अंतरराष्ट्रीय संविदाओं को भी ध्यान में रखे जिसपर भारत
ने हस्ताक्षर किये हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील वृंदा ग्रोवर ने सेमिनार के प्रतिभागियों
से कहा कि यह विधेयक केन्द्रीय और राज्य सरकारों को बहुत अधिक ताकत देता है जिसका दुरूपयोग
कमजोर समूहों के खिलाफ किया जा सकता है। यह विधेयक राजनैतिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों
को साम्प्रदायिक दंगे के समय उनके द्वारा उठाये गये कदमों या लापरवाही के लिए सज़ा देने
से माफ करता है।