2010-04-12 19:16:21

आयरलैण्ड के काथलिकों के नाम सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें क


1) आयरलैण्ड की कलीसिया के भाइयो एवं बहनो, सार्वभौमिक कलीसिया का मेषपाल होने के नाते, गहन चिन्ता के साथ, मैं आपको लिख रहा हूँ। आप ही की तरह मैं भी, आयरलैण्ड की कलीसिया के सदस्यों और, विशेष रूप से, पुरोहितों एवं धर्मसंघियों द्वारा, बच्चों एवं कमज़ोर युवाओं के विरुद्ध किये गये दुराचारों की सूचना के प्रकाश में आ जाने से व्यथित हूँ। मैं तो केवल उस व्याकुलता एवं विश्वासघात के भाव में सहभागी हो सकता हूँ जिसका आपने, पापपूर्ण एवं अपराधिक कृत्यों तथा कलीसियाई अधिकारियों की अपर्याप्त कार्यवाही को जानकर, अनुभव किया है।


जैसा कि आप जानते हैं, हाल ही मैंने आयरलैण्ड के धर्माध्यक्षों को रोम आमंत्रित किया था ताकि वे मुझे बता सकें कि अतीत में इस तरह के प्रकरणों पर उन्होंने किस प्रकार की कार्यवाही की थी तथा इस गम्भीर स्थिति से निपटने के लिये उन्होंने कौनसे कदम उठायें हैं। परमधर्मपाठीय रोमी कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर, मैंने, व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से, उनकी बात सुनी। उन्होंने अपनी ग़लतियों को स्वीकारा तथा उनसे सीखे गये पाठ का विश्लेषण किया, साथ ही इस समय प्रभावी कार्यक्रमों एवं नयाचारों का ब्यौरा दिया। हमारे बीच सम्पन्न विचार-विमर्श स्पष्ट एवं रचनात्मक रहा। मेरा विश्वास है कि, परिणामस्वरूप, अब, अतीत के अन्यायों को सुधारने तथा न्याय एवं सुसमाचार की शिक्षा की मांगों के आधार पर, नाबालिगों के विरुद्ध हुए दुराचार के प्रश्नों का सामना करने हेतु धर्माध्यक्षों की स्थिति मज़बूत होगी।


2) मेरी ओर से, इन अपराधों की गम्भीरता, तथा आपके देश के कलीसियाई अधिकारियों के, प्रायः, अपर्याप्त प्रत्युत्तर पर विचार करते हुए, आपके प्रति अपनी समीपता को अभिव्यक्त करने तथा चंगाई, नवीनीकरण एवं सुधार का मार्ग प्रस्तावित करने हेतु मैंने इस प्रेरितिक पत्र को लिखने का निर्णय लिया है।


यह सच है, जैसा कि आपके देश के अनेक लोगों ने इंगित किया है, कि बच्चों के विरुद्ध दुराचार की समस्या न तो आयरलैण्ड और न ही कलीसिया मात्र की समस्या है। तथापि, आपके समक्ष अब जो चुनौती है वह है आयरी काथलिक समुदाय में उभरी दुराचार की समस्या को, साहस एवं संकल्प के साथ, सम्बोधित करना। ऐसी कल्पना कोई नहीं कर सकता कि इस दुखद स्थिति का शीघ्र ही समाधान मिल सकेगा। यथार्थ प्रगति हुई है तथापि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। ईश कृपा पर पूर्ण भरोसा रखते हुए अध्यवसायता के साथ सतत् प्रार्थना की ज़रूरत है।


साथ ही, मेरा यह विश्वास भी है, कि इस जघन्य घाव के उपचार के लिये, सबसे पहले आयरलैण्ड की कलीसिया को प्रभु के समक्ष एवं अन्यों के समक्ष सुरक्षाविहीन बच्चों के विरुद्ध हुए गम्भीर पापों को स्वीकार करना होगा। इस स्वीकारोक्ति के साथ साथ इन बच्चों एवं इनके परिवारों की क्षति पर व्यक्त गहन दुःख ऐसे संगठित प्रयासों का मार्ग प्रशस्त करेगा जो भविष्य में इस तरह के अपराधों से बच्चों की सुरक्षा का आश्वासन देने में समर्थ होगा।


चुनौती की इस घड़ी में, मैं आग्रह करता हूँ का आप "उस चट्टान की ओर देखें जिससे आप काटे गये हैं" (इसायस 51:1)। अतीत के आयरी कलीसियाई पुरुषों एवं महिलाओं द्वारा मानवाजति के पक्ष में दिये उदार एवं वीरोचित योगदान पर आप चिन्तन करें और इसे ईमानदार आत्म-परीक्षण तथा कलीसायाई एवं वैयक्तिक नवीनीकरण हेतु समर्पित कार्यक्रम का प्रेरणा स्रोत बनने दें। मेरी आर्त याचना है कि अपने अनेक सन्तों की मध्यस्थता से सहायता प्राप्त कर तथा पश्चाताप से शुद्ध होकर आयरलैण्ड की कलीसिया वर्तमान संकट को पार कर सकेगी तथा एक बार फिर ईशपुत्र येसु ख्रीस्त में प्रकाशित, सर्वशक्तिमान् ईश्वर की सच्चाई और भलाई का विश्वसनीय साक्ष्य प्रदान कर सकेगी।


3) इतिहास की दृष्टि से, आयरलैण्ड के काथलिकों ने, स्वदेश एवं विदेशों में भी, भलाई की अपार शक्ति का प्रमाण दिया है। सन्त कोलुम्बानुस जैसे सेल्टिक भिक्षु ने पश्चिमी यूरोप में सुसमाचार का प्रचार किया तथा मध्यकालीन मठवासी संस्कृति की आधारशिला रखी। ख्रीस्तीय विश्वास से उत्पन्न पवित्रता, उदारता एवं पारलौकिक प्रज्ञा ने गिरजाघरों एवं मठों के निर्माण तथा स्कूलों, अस्पतालों, एवं संग्रहालयों की स्थापना में अभिव्यक्ति पाई, इन सबने यूरोप की आध्यात्मिकता को मज़बूत करने में सहायता प्रदान की। इन आयरी मिशनरियों ने अपनी मातृभूमि की कलीसिया में विद्यमान दृढ़ विश्वास, सबल नेतृत्व एवं यथार्थ नीति वचनों से सम्बल एवं प्रेरणा प्राप्त की थी।


16 वीं शताब्दी के बाद से, आयरलैण्ड के काथलिकों ने दीर्घकाल तक घोर अत्याचार सहे, जिसके दौरान, ख़तरनाक एवं कठिन परिस्थितियों में भी, वे विश्वास की ज्योत जलाये रखने के लिये संघर्ष करते रहे। सुसमाचार के ख़ातिर अपने प्राणों तक की आहुति देने के लिये सदैव तत्पर रहनेवाले, आरमाघ के शहीद महाधर्माध्यक्ष सन्त ओलिवर प्लंकेट, आयरलैण्ड के अनेक साहसी पुत्र पुत्रियों के विख्यात उदाहरण है। अत्याचारों से काथलिकों को मुक्ति मिल जाने के बाद कलीसिया एक बार फिर विकास के लिये स्वतंत्र हो गई। परीक्षा के कठिन समय में भी विश्वास को बरकरार रखनेवाले काथलिक परिवार एवं असंख्य काथलिक धर्मानुयायी, 19 वीं शताब्दी में आयरी काथलिक विश्वास के महाजागरण काल के, उत्प्रेरक बने। कलीसिया ने, विशेष रूप से, निर्धनों को शिक्षा मुहैया कराई जो आयरी समाज को अर्पित प्रमुख योगदान सिद्ध हुआ। नवीन काथलिक स्कूलों के रचनात्मक फलों में बुलाहटों में वृद्धि हुईः मिशनरी पुरोहितों, धर्मबहनों एवं धर्मबन्धुओं की पीढ़ियों ने अपनी मातृभूमि का परित्याग कर विश्व के प्रत्येक महाद्वीप और, विशेष रूप से, अँग्रेजी़ भाषी देशों का रुख किया। वे अपनी अधिक संख्या के लिये ही नहीं अपितु अपने दृढ़ विश्वास तथा अपने प्रेरितिक संकल्प के् प्रति अध्यवसायता के लिये भी आसाधरण थे। अफ्रीका, अमरीका एवं ऑस्ट्रालिया के अनेक धर्मप्रान्तों ने, आयरलैण्ड के उन पुरोहितों एवं धर्मसंघियों से लाभ अर्जित किया जिन्होंने सुसमाचार प्रचार को साथ साथ पल्लियों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों, चिकित्सा केन्द्रों तथा अस्पतालों की स्थापना कर, विशेष रूप से निर्धनों की ज़रूरतों के प्रति सचेत रहते हुए, काथलिकों सहित सम्पूर्ण समुदाय की सेवा की।


आयरलैण्ड के लगभग प्रत्येक परिवार में एक ऐसा व्यक्ति – पुत्र या पुत्री, चाचा या चाची – रहा है जिसने अपना जीवन कलीसिया के लिये दे दिया। आयरलैण्ड के परिवार, ठीक ही, अपने उन परिजनों के कारण गर्व महसूस करते हैं जिन्होंने, ख्रीस्त के प्रति अपना जीवन समर्पित कर, विश्वास के वरदान को अन्यों के साथ बाँटा तथा ईश्वर एवं पड़ोसी की सेवा में अपने विश्वास को मूर्तरूप प्रदान दिया।


4) हालांकि, हाल के दशकों में, आयरी समाज के द्रुतगामी रूपान्तरण एवं धर्म के प्रति बढ़ती उदासीनता के कारण आपके देश की कलीसिया को नई एवं गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पडा है। द्रुतगति से सामाजिक परिवर्तन हुआ है जिसने, बहुत बार, काथलिक शिक्षा एवं मूल्यों के प्रति लोगों के लगाव को विपरीत ढंग से प्रभावित किया है। बहुत बार, विश्वास को समर्थित करनेवाली तथा उसे पोषित करनेवाली सांस्कारीय एवं भक्ति सम्बन्धी गतिविधियाँ जैसे पुनर्मिलन संस्कार, दैनिक प्रार्थनाएँ तथा वार्षिक आध्यात्मिक साधनाओं की उपेक्षा की गई है। इस काल में, पुरोहितों एवं धर्मसंघियों द्वारा भी, सुसमाचार को अलग रखते हुए धर्म रहित वास्तविकताओं का मूल्यांकन करने तथा उन्हीं पर विचार मन्थन की प्रवृत्ति भी अर्थपूर्ण रही है। द्वितीय वाटिकन महासभा द्वारा नवीनकरण हेतु सुझाये गये कार्यक्रम की, कभी कभी, ग़लत व्याख्या की गई और सच तो यह है कि गहन सामाजिक परिवर्तनों के प्रकाश में यह जानना कदापि सरल नहीं रहा कि उक्त कार्यक्रम को लागू कैसे किया जाये। विशेषतः, कलीसिया की दृष्टि से अनियमित स्थितियों के विरुद्ध दण्ड को अलग रखने की भ्रामक प्रवृत्ति प्रचलित हो गई थी। इस सन्दर्भ में हमें बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार की व्यथित समस्या को समझने का प्रयास करना चाहिये, जिसने विश्वास को कमज़ोर किया है तथा कलीसिया एवं उसकी शिक्षा के प्रति सम्मान को कम किया है।


वर्तमान संकट को उत्पन्न करनेवाले अनेक घटकों का सावधानीपूर्वक परीक्षण कर ही इसके कारणों को स्पष्ट रूप से जाना जा सकेगा तथा प्रभावशाली उपचार ढूँढ़ा जा सकेगा। निश्चित रूप से, इस स्थिति के लिये ज़िम्मेदार घटकों में हम इन घटकों को शामिल कर सकते हैं: पौरोहित्य एवं धर्मसंघी जीवन के इच्छुक अभ्यर्थियों को चुनने की अनुपयुक्त प्रक्रियाएँ; गुरुकुलों एवं नवदीक्षार्थीं केन्द्रों में अपर्याप्त मानवीय, नैतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक प्रशिक्षण; पुरोहितों एवं अन्य आधिकारिक व्यक्तित्वों की तरफदारी करने की समाज में व्याप्त प्रवृत्ति; कलीसिया की बदनामी, अपयश की भ्रान्तिपूर्ण चिन्ता तथा अपयश से उसे बचाने की व्यर्थ कोशिश, जिसका परिणाम होता है कलीसियाई दण्डों को लागू करने तथा प्रत्येक मानव प्राणी की प्रतिष्ठा को बरकरार रखने की असफलता। दुराचार के शिकार व्यक्तियों और उनके परिवारों पर दुखद परिणाम उत्पन्न करनेवाले इन घटकों को सम्बोधित करने के लिये तुरन्त उपाय किये जाने की ज़रूरत है जिन्होंने सुसमाचार के प्रकाश को इस कदर धूमिल किया है कि शताब्दियों के उत्पीड़न एवं अत्याचारों ने भी नहीं किया था।


5) सन्त पेत्रुस की पीठ में मेरी नियुक्ति के बाद से, कई अवसरों पर, मैंने यौन दुराचार के शिकार बने लोगों से मुलाकात की है और भविष्य में भी मैं उनसे मुलाकात के लिये तैयार हूँ। मैं उनके साथ बैठा हूँ, उनकी कहानियों को मैंने सुना है, उनकी पीड़ा को मैंने स्वीकार किया है तथा मैंने उनके साथ उनके लिये प्रार्थना की है। मेरे परमाध्यक्षीय काल के आरम्भ में ही, इस विषय पर चिन्तित, मैंने आयरलैण्ड के धर्माध्यक्षों आग्रह किया था कि वे, "अतीत के करतूतों पर सत्य की स्थापना करें, उसे फिर कभी न दुहराये जाने के लिये सभी आवश्यक कदम उठायें, इस बात का आश्वसन दें कि न्याय के सिद्धान्त का पूर्ण सम्मान हुआ है, और सबसे महत्वपूर्ण, इन जघन्य अपराधों के शिकार एवं इनसे प्रभावित सभी लोगों को उपचार एवं चंगाई प्रदान करें।" (28 अक्तूबर सन् 2006 को आयरलैण्ड के धर्माध्यक्षों को सम्बोधित प्रभाषण)।


इस पत्र के द्वारा, मैं आप सबका आह्वान करता हूँ, आयरलैण्ड में, ईश प्रजा होने के नाते, आप ख्रीस्त के शरीर पर ढाये गये घावों पर मनन करें, उन उपचारों पर चिन्तन करें जो कभी कभी दुखद होने के बावजूद चंगाई के लिये आवश्यक होते हैं, पुनर्द्धार एवं कलीसिया के नवीनीकरण की लम्बी प्रक्रिया के लिये आवश्यक एकता, उदारता एवं आपसी समर्थन पर चिन्तन करें। अब मैं आपके समक्ष उन शब्दों को रखता हूँ जो मेरे हृदय की अतल गहराई से निकले हैं और मैं आप सबसे व्यक्तिगत रूप से तथा प्रभु में भाई और बहन के सदृश बातचीत करना चाहता हूँ।


6) दुराचार के शिकार व्यक्तियों एवं उनके परिवारों को


आपने दारुण वेदना सही है जिसके लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। मुझे मालूम है कि कुछ भी उस ग़लती को मिटा नहीं कर सकता जो आपने सही है। आपके विश्वास के साथ धोखा हुआ और आपकी प्रतिष्ठा का उल्लंघन किया गया। आपमें से अनेक ने पाया कि जब उन्होंने साहसपूर्वक कुछ कहना चाहा तब किसी ने उनकी नहीं सुनी। आप में से जो व्यक्ति आवासीय संस्थाओं में दुराचार का शिकार बनाये गये थे उन्होंने अवश्य ही यह महसूस किया होगा कि पीड़ा से भाग निकलने का कोई रास्ता नहीं था। यह स्वाभाविक है कि क्षमा कर देना या कलीसिया के साथ मेलमिलाप कर लेना आपके लिये कठिन प्रतीत हो रहा है। कलीसिया के नाम पर, मैं, मुक्त रूप से, उस लज्जा और पश्चाताप को अभिव्यक्ति प्रदान करता हूँ जिसका अनुभव हम सब कर रहे हैं। इसके साथ ही, मैं आपसे निवेदन करता कि आप आशा का परित्याग नहीं करें। केवल कलीसिया के साथ सहभागिता में ही हम प्रभु येसु ख्रीस्त के व्यक्तित्व का साक्षात्कार कर सकते हैं जो स्वयं अन्याय एवं पाप के शिकार बने थे, आपके सदृश, वे अभी भी अन्यायपूर्ण पीड़ा के घावों को ढोये हुए हैं। वे आपकी पीड़ा की गहराई से वाकिफ हैं तथा आपके जीवन एवं, कलीसिया सहित, अन्यों के साथ आपके सम्बन्धों पर पड़नेवाले, उसके दुष्परिणामों को भली प्रकार समझते हैं। मुझे ज्ञात है कि जो कुछ हुआ उसके बाद आप में से कुछ गिरजाघरों के प्रवेश द्वार तक जाना भी कठिन महसूस करते हैं। तथापि, उनकी उद्धारकारी पीड़ा से रूपान्तरित ख्रीस्त के अपने घाव वे साधन हैं जिनसे बुराई की शक्ति भंग होती तथा हम जीवन एवं आशा में नवजीवन प्राप्त करते हैं। मुक्ति एवं एक नई शुरुआत की प्रतिज्ञा के लिये, हृदय की अतल गहराई से – अन्धकार भरी एवं आशाविहिन परिस्थितियों में भी – मैं, ख्रीस्त के समर्पित प्रेम की उपचारिक शक्ति में विश्वास करता हूँ।


ईश्वर की सभी सन्तानों के प्रति उत्कंठित एक मेषपाल होने के नाते, मैं विनम्रतापूर्वक आपसे निवेदन करता हूँ कि आप मेरे शब्दों पर विचार करें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि पश्चाताप से शुद्ध एवं प्रेरितिक उदारता से नवीकृत कलीसिया के जीवन में भागीदार बनते हुए, येसु के निकट आकर, आप में से प्रत्येक व्यक्ति ख्रीस्त के असीम प्रेम की पुनर्खोज कर सकेगा। मेरा विश्वास है कि इस प्रकार आप पुनर्मिलन, गहन आन्तरिक चंगाई एवं शांति प्राप्त कर पायेंगे।


7) उन पुरोहितों एवं धर्मसंघियों को जिन्होंने बच्चों के विरुद्ध दुराचार किया


तुमने निर्दोष बच्चों एवं उनके अभिभावकों के साथ विश्वासघात किया है और इसके लिये तुम्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर और उपयुक्त संघटित अदालतों के समक्ष उत्तर देना होगा। तुमने आयरलैण्ड के लोगों के सम्मान को अपवर्तित किया है तथा अपने सहयोगी पुरोहितों एवं धर्मसंघियों को लज्जा एवं अपमान का विषय बनाया है। तुममें से जो पुरोहित हैं उन्होंने पुरोहिताभिषेक संस्कार की पवित्रता का उल्लंघन किया है, उस पवित्रता का, जिसमें ख्रीस्त हममें एवं हमारे कार्यों में उपस्थित होते हैं। दुराचार के शिकार बने लोगों को हानि पहुँचाने के साथ साथ तुमने कलीसिया तथा पौरोहित्य एवं धर्मसंघी जीवन पर जन साधारण के परिप्रेक्ष्य को अपार क्षति पहुँचाई है।


मैं तुमसे आग्रह करता हूँ कि तुम अपने अन्तःकरण की जाँच करो, उन पापों की ज़िम्मेदारी वहन करो जो तुमने किये हैं तथा विनम्रतापूर्वक अपने पापों पर पश्चाताप करो। निष्कपट पश्चाताप ईश्वरीय क्षमा का द्वार खोलेगा तथा सुधार हेतु कृपा प्रदान करेगा। जिनके विरुद्ध तुमने अपराध किये हैं उनके लिये प्रार्थना और पश्चाताप कर तुम्हें अपने कृत्यों के लिये क्षमा की खोज करना चाहिये। ख्रीस्त के उद्धारकारी बलिदान में गम्भीर से गम्भीर पाप को क्षमा कर देने तथा सर्वाधिक जघन्य अपराध से भी शुभ को उत्पन्न करने की शक्ति है। इसके अतिरिक्त, ईश्वरीय न्याय हमारा आह्वान करता है कि हम अपने कृत्यों का पूर्ण ब्यौरा दें तथा कुछ भी नहीं छिपायें। उदार मन से तुम अपने दोष को स्वीकार करो, न्याय के प्रति खुद को समर्पित कर दो किन्तु साथ ही ईश्वर की करूणा में आशा को बनाये रखो।


8) अभिभावकों को


यह जानकर कि जिस जगह को सबसे सुरक्षित वातावरण होना चाहिये था वहीं पर हुई भयावह घटनाओं को सुनकर आप स्तब्ध हुए हैं। आज विश्व में एक परिवार का निर्माण करना तथा बच्चों की परवरिश करना सरल काम नहीं है। सुरक्षा के वातावरण में विकसित होना उनका अधिकार है, प्रेम पाना तथा सराहा जाना उनका अधिकार है, उनकी अपनी पहचान एवं योग्यता की भावना का उनमें होना आवश्यक है। मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा में मूलबद्ध नैतिक मूल्यों की यथार्थ शिक्षा प्राप्त करना उनका अधिकार है, हमारे काथलिक विश्वास के सत्य के बारे में प्रशिक्षित होना उनका अधिकार है तथा आचार व्यवहार के उन तरीकों को सीखना उनका अधिकार है जो स्वस्थ आत्मसम्मान एवं स्थायी आनन्द तक ले जाते हैं। यह नेक किन्तु आवश्यक कार्य आप यानि अभिभावकों के सिपुर्द किया गया है। मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप अपने बच्चों के लिये हर सम्भव देखरेख का आश्वासन दें, घर में और समाज में भी। इस बीच, कलीसिया अपनी ओर से, पल्लियों एवं स्कूलों में बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये, हाल के वर्षों में स्थापित नियमों को लागू करने पर बल देती रहेगी। अपनी अहं ज़िम्मेदारियों का वहन करते हुए इस बात के प्रति आश्वस्त रहिये कि मैं आपके समीप हूँ तथा अपनी प्रार्थनाओं द्वारा आपको पूर्ण समर्थन प्रदान कर रहा हूँ।


9) आयरलैण्ड के बच्चों एवं युवाओं को


 आप सबको मैं विशेष प्रोत्साहन देना चाहता हूँ। कलीसिया में आपका अनुभव आपके माता पिताओं एवं पितामहों से बिल्कुल अलग है। जब वे आपकी उम्र के थे तब से अब तक विश्व बहुत बदल गया है। तथापि, प्रत्येक पीढ़ी में, सभी लोगों को, किसी परिस्थिति में, जीवन की एक ही राह से गुज़रना पड़ता है। कलीसिया के कुछेक सदस्यों और विशेषकर उन लोगों के पापों एवं असफलताओं से हम सब विक्षुब्ध हैं जिन्हें बच्चों एवं युवाओं को मार्गदर्शन देने तथा उनकी सेवा के लिये चुना गया था। तथापि, कलीसिया में ही आप येसु ख्रीस्त को पा सकेंगे जो कल, आज और अनन्त काल तक एकरूप रहते हैं (दे. इब्रा.13:8)। वे आपसे प्रेम करते हैं तथा आपके ख़ातिर उन्होंने क्रूस पर अपना बलिदान अर्पित किया। उनकी कलीसिया की सहभागिता के अन्तर में आप उनके साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध बनायें क्योंकि वे कभी भी आपके साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। एकमात्र वे ही आपकी गहनतम तृष्णा को तृप्त कर सकेंगे तथा आपको अन्यों की सेवा के प्रति अभिमुख कर आपके जीवन को पूर्ण अर्थ प्रदान कर सकेंगे। येसु एवं उनकी दयालुता पर आप अपनी दृष्टि लगायें रहें तथा विश्वास की लौ को अपने हृदयों में जगायें रखें। आयरलैण्ड में आपके अन्य काथलिक भाइयों के साथ मिलकर मैं आपको निहारता हूँ कि आप प्रभु ईश्वर के विश्वसवनीय शिष्य बनें तथा अपने उत्साह और आदर्श द्वारा अपनी प्रियतम कलीसिया के पुनर्निर्माण एवं नवीनीकरण में आवश्यक योगदान दें सकें।


10) आयरलैणड के पुरोहितों एवं धर्माध्यक्षों को


अपने उन धर्मबन्धुओं के पापों के कारण हम सब दुःखी हैं जिन्होंने एक पवित्र विश्वास को धोखा दिया अथवा दुराचार की शिकायतों का न्यायिक एवं ज़िम्मेदार उत्तर देने में असफल रहे। लोकधर्मियों में ही नहीं अपितु आपमें और आपके धर्मसंघों में भी जो क्रोध और रोष भड़का है उसके कारण आप हतोत्साहित हुए हैं और यहाँ तक कि अपने आपको परित्यक्त भी महसूस कर रहे हैं। इस बात का भी मुझे ज्ञान है कि कुछ लोगों की दृष्टि में आप संगठन के कारण कलंकित हैं तथा लोग आपको इस नज़र से देखते हैं मानो अन्यों के कुकृत्यों के लिये आप किसी प्रकार से ज़िम्मेदार हैं। इस दुखद क्षण में, मैं, आपके पौरोहित्य एवं धर्मसंघीय जीवन तथा प्रेरितिक समर्पण को मान्यता देना चाहता हूँ। आपको मैं आमंत्रित करता हूँ कि आप ख्रीस्त में अपने विश्वास, उनकी कलीसिया के प्रति अपने प्रेम तथा मुक्ति, क्षमा एवं आन्तरिक नवीनीकरण हेतु सुसमाचार की प्रतिज्ञा में अपने विश्वास को सुदृढ़ करें। इस तरह, आप सबके समक्ष यह दर्शा देंगे कि जहाँ पाप की वृद्धि होती है, वहाँ अनुग्रह की उससे भी अधिक वृद्धि होती है (दे. रोमियो 5:20)।

 मैं जानता हूँ कि आप में से बहुत जन इस बात से निराश, आश्चर्यचकित एवं नाराज़ हैं कि आपके कुछ अध्यक्षों ने इन प्रकरणों पर गम्भीर रूप से विचार नहीं किया। तथापि, यह अनिवार्य है कि आप उन लोगों के साथ निकट से सहयोग करें जो आपके अधिकारी हैं तथा यह आश्वासन देने में मदद दें कि इस संकट से उभरने के लिये जो कदम उठायें गये हैं वे वास्तव में सुसमाचारी, न्यायपूर्ण एवं कारगर सिद्ध हों। सबसे पहले, मैं आप सबसे आग्रह करता हूँ कि आप, साहसपूर्वक मनपरिवर्तन, शुद्धीकरण एवं पुनर्मिलन का मार्ग अपनाकर, प्रार्थना के स्त्री-पुरुष बनें। इस तरह, आयरलैण्ड की कलीसिया, आपके जीवन में प्रदर्शित प्रभु की उद्धारकारी शक्ति के प्रति आपके साक्ष्य से नवजीवन एवं सजीवता को सिंचित कर सकेगी।


11) मेरे धर्माध्यक्ष भाइयों को


इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आप और आपके पूर्वाधिकारियों में से कुछ, बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार के अपराध को दण्डित करने के लिये, कलीसियाई विधान संहिता में बहुत पहले से संस्थापित नियमों को लागू करने में, कभी कभी, बुरी तरह विफल हुए हैं। आरोपों का प्रत्युत्तर देने में संजीदा ग़लतियाँ हुई हैं। मैं मानता हूँ कि समस्या की जटिलता को परखना, विश्वसनीय सूचना प्राप्त करना तथा विशेषज्ञों के विवादास्पद परामर्शों के प्रकाश में उचित निर्णय लेना बहुत कठिन काम था। तथापि, यह स्वीकार करना होगा कि न्याय करने में संजीदा ग़लतियाँ हुई तथा नेतृत्व की विफलताएँ भी सामने आईं। इस सबसे आपकी विश्वसनीयता एवं प्रभावात्मकता को ठेस लगी है। अतीत की ग़लतियों को सुधारने तथा भविष्य में ऐसी ग़लतियाँ न हो यह आश्वासन देने के लिये आपके प्रयासों की मैं सराहना करता हूँ। बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार के प्रकरणों पर कलीसियाई संहिता में संस्थापित नियमों को लागू करने के साथ साथ आप, इस क्षेत्र में समर्थ, नागर अधिकारियों के साथ भी सहयोग करें। यह स्पष्ट है कि धर्मसंघ अध्यक्षों को भी यही करना है। इन प्रकरणों का स्पष्ट एवं सुसंगत प्रत्युत्तर देने के लिये उन्होंने भी, हाल में, रोम में सम्पन्न विचार विमर्श में भाग लिया है। यह अनिवार्य है कि बच्चों की सुरक्षा से सम्बन्धित नियमों को आयरलैण्ड की कलीसिया में निरन्तर नवीकृत किया जाये ताकि उन्हें कलीसियाई विधान संहिता के अनुकूल लागू किया जा सके।


पूर्ण ईमानदारी एवं पारदर्शिता के साथ किया गया निर्णयात्मक कार्य कलीसिया के प्रति आयरलैण्ड के लोगों के सम्मान एवं शुभकामना को पुनः स्थापित कर सकेगा जिसके लिये हमने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। इसे, सबसे पहले, आपके अपने आत्म परीक्षण, आन्तरिक शुद्धीकरण एवं आध्यात्मिक नवीनीकरण से उत्पन्न होना चाहिये। आयरी लोग उचित ही आपसे यह अपेक्षा करते हैं कि आप पवित्र और सादगी का जीवन यापन करनेवाले धर्मी पुरुष तथा व्यक्तिगत रूप से दैनिक मनपरिवर्तन में संलग्न रहनेवाले व्यक्ति हों। उनके लिये, सन्त अगस्टीन के शब्दों में, आप धर्माध्यक्ष हैं; तथापि, आप उनके साथ ख्रीस्त का अनुसरण करने के लिये बुलाये गये हैं (दे. उपदेश 340,1)। अस्तु, मैं आपका आह्वान करता हूँ कि आप ईश्वर के समक्ष अपनी ज़िम्मेदारी को नवीकृत करें, अपने लोगों के साथ एकात्मता में विकसित होवें तथा अपने रेवड़ के सभी सदस्यों के प्रति अपनी प्रेरितिक व्याकुलता को तीव्र करें। विशेषतया, मैं आप से अनुरोध करता हूँ कि आप अपने हर पुरोहित के आध्यात्मिक एवं नैतिक जीवन के प्रति पूर्ण ध्यान दें। अपने जीवन द्वारा उनके समक्ष आदर्श प्रस्तुत करें, उनके समीप रहें, उनकी चिन्ताओं को सुनें, इस कठिन घड़ी में उन्हें प्रोत्साहन प्रदान करें तथा ख्रीस्त के प्रति उनके प्रेम और साथ ही भाइयों एवं बहनों के प्रति उनके समर्पण की लौ को प्रजव्लित रखें।


लोकधर्मी विश्वासियों को भी कलीसिया में अपनी उचित भूमिका निभाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। उन्हें इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाये कि वे आधुनिक समाज के बीच स्पष्ट एवं विश्वसनीय ढंग से सुसमाचार सुना सकें (दे. 1 पेत्रुस 3:15) तथा कलीसिया के जीवन एवं मिशन में पूर्ण सहयोग प्रदान कर सकें।


12) आयरलैण्ड के सभी विश्वासियों को


कलीसिया का अनुभव प्राप्त करनेवाले युवा व्यक्ति को, एक प्रेमपूर्ण एवं पोषक समुदाय के अन्तर्गत, येसु ख्रीस्त के साथ व्यक्तिगत एवं जीवनदायी साक्षात्कार के फल उत्पन्न करना चाहिये। इस वातावरण में, युवाओं को, उनके पूर्ण मानवीय एवं आध्यात्मिक ऊँचाई तक विकसित होने, पवित्रता, उदारता एवं सत्य के उच्चतम आदर्शों की आकाँक्षा रखने तथा महान धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि से प्रेरणा ग्रहण करने का मौका दिया जाना चाहिये। धर्म के प्रति नित्य उदासीन होते हमारे समाज में, जहाँ, हम ख्रीस्तीय भी, अपने अस्तित्व के पारलौकिक आयाम के विषय में बात करना कठिन महसूस करते हैं, कलीसिया की सहभागिता में, येसु ख्रीस्त के साथ मित्रता के सौन्दर्य एवं वैभव को युवाओं तक ले जाने के लिये नये तरीकों को खोजने की ज़रूरत है। वर्तमान संकट का सामना करने के लिये, प्रत्येक अपराध को न्यायिक रूप से परखने की आवश्यकता है, फिर भी, अपने आप में वे पर्याप्त नहीं हैं: हमारे सामान्य विश्वास की धरोहर को संजोये रखने हेतु वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिये एक नई दृष्टि की आवश्यकता है। सुसमाचार द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलकर, ईश नियमों का पालन कर, तथा अपने जीवन को येसु ख्रीस्त के व्यक्तित्व के अनुकूल बनाकर आप सचमुच में गहन नवीनीकरण का अनुभव प्राप्त करेंगे, जिसकी आज नितान्त आवश्यकता है। आप सबको इस पथ पर अटल रहने के लिये मैं आमंत्रित करता हूँ।


13) ख्रीस्त में अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, इस दुखद क्षण में, जब मानवीय स्थिति की कमज़ोरियाँ इस कदर प्रकाश में आई हैं, आप सबके प्रति गहन चिन्ता के कारण ही मैंने प्रोत्साहन एवं समर्थन के उक्त शब्द अर्पित करना चाहा है। मेरी आशा है कि आप इन्हें मेरे आध्यात्मिक सामीप्य तथा सुसमाचार के प्रति आयरलैण्ड की निष्ठापूर्ण नेक परम्परा, विश्वास में दृढ़ता तथा पवित्रता में बढ़ते रहने के दृढ़निश्चय से प्रेरणा प्राप्त कर वर्तमान घड़ी की चुनौती का सामना करने हेतु आपकी क्षमता पर, मेरे भरोसे के संकेत रूप में ग्रहण करेंगे। आप सबके साथ मिलकर मैं सतत् प्रार्थना करता हूँ कि ईश कृपा से अनेक व्यक्तियों एवं परिवारों को कष्ट पहुँचाने वाले घाव चंगे हो जायें तथा आयरलैण्ड की कलीसिया पुनर्जन्म एवं आध्यात्मिक नवीनीकरण रूपी वसन्त की अनुभूति प्राप्त करे।


14) अब मैं, इस स्थिति से निपटने के लिये, कुछ ठोस उपायों का प्रस्ताव करना चाहता हूँ।


आयरी धर्माध्यक्षों के साथ मेरी मुलाकात के समापन पर मैंने आग्रह किया था कि इस वर्ष का चालीसाकाल, आपके देश की कलीसिया पर ईश करूणा एवं पवित्रआत्मा के वरदान से शक्ति पाने के लिये प्रार्थना का अनुपम काल सिद्ध हो। आप सबको मैं आमंत्रित करता हूँ कि आप सन् 2010 से लेकर सन् 2011 तक शुक्रवारों के त्याग और तपस्या से भरे कृत्यों को इस मनोरथ के लिये समर्पित रखें। मैं आप से अनुरोध करता हूँ कि आप अपने उपवासों, अपनी प्रार्थनाओं, पवित्र धर्मग्रन्थ पाठ तथा दया के कार्यों को आयरलैण्ड की कलीसिया की चंगाई एवं उसके नवीनीकरण के लिये अर्पित कर दें। पुनर्मिलन संस्कार की पुनर्खोज तथा उसकी कृपा में निहित रूपान्तरित करने की शक्ति का अधिकाधिक लाभ उठाने के लिये मैं आपको प्रोत्साहन देता हूँ।


यूखारिस्तीय आराधना पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये तथा प्रत्येक धर्मप्रान्त में इस उद्देश्य से गिरजाघरों एवं प्रार्थनालयों को समर्पित रखा जाना चाहिये। मैं पल्लियों, गुरुकुलों, धर्मसंघों एवं मठों से आग्रह करता हूँ कि वे यूखारिस्तीय आराधना के लिये विशिष्ट अवधियों को तय करें ताकि सभी को उसमें भाग लेने का अवसर मिल सके। प्रभु की यथार्थ उपस्थिति में सतत् प्रार्थना द्वारा, आप उन दुराचारों के लिये क्षमा याचना कर सकेंगे जिनसे अपार क्षति हुई है, साथ ही समस्त धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसंघियों एवं लोकधर्मियों में अपने मिशन के प्रति निष्ठा तथा नवीकृत शक्ति हेतु कृपा की याचना कर सकेंगे।


मेरा विश्वास है कि यह कार्यक्रम, ईश सत्य की परिपूर्णता में, आयरलैण्ड की कलीसिया के पुनर्जन्म का मार्ग प्रशस्त करेगा क्योंकि सत्य ही हमें स्वतंत्र बनाता है (दे. योहन 8: 32)।


इसके अतिरिक्त, इस मुद्दे पर सलाह मशवरा तथा प्रार्थना करने के बाद, मैं आयरलैण्ड के कुछेक धर्मप्रान्तों और साथ ही गुरुकुलों और धर्मसंघों का प्रेरितिक निरीक्षण करवाने का मनोरथ रखता हूँ। स्थानीय कलीसिया को नवीनीकरण हेतु मदद देना प्रेरितिक निरीक्षण का उद्देश्य है जिसका कार्यक्रम सक्षम परमधर्मपीठीय रोमी कार्यालय तथा आयरी काथलिक धर्माधथ्यक्षीय सम्मेलन के कार्यालय के बीच सहयोग से तैयार किया जायेगा। उचित क्षण में इसका विवरण प्रकाशित कर दिया जायेगा।


समस्त धर्माध्यक्षों, पुरोहितों एवं धर्मसंघियों के लिये, राष्ट्रीय स्तर पर, विशिष्ट मिशन के आयोजन का भी मैं प्रस्ताव रखता हूँ। मेरी आशा है कि आयरलैण्ड एवं अन्य क्षेत्रों के अनुभवी उपदेशकों एवं आध्यात्मिक साधना संचालन में संलग्न विशेषज्ञों की सुविज्ञता से लाभान्वित होकर तथा द्वितीय वाटिकन महासभा के दस्तावेज़ों, पुरोहिताभिषेक एवं व्रतधारण और साथ ही हाल की परमधर्मपीठीय शिक्षा की पुनर्खोज कर, आप अपनी अपनी बुलाहटों को गहनतम ढंग से सराह सकेंगे ताकि येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास की जड़ों तक पहुँच सकें तथा जीवन्त जल के उस सोते से पान कर सकें जिसे ख्रीस्त, कलीसिया के द्वारा, आपको अर्पित करते हैं।


पुरोहितों को समर्पित इस वर्ष में, मैं आपको, विशेष रूप से, सन्त जॉन वियानी के संरक्षण के सिपुर्द करता हूँ जो पुरोहिताभिषेक के रहस्य की गहराई से भली भाँति वाकिफ़ थे। "पुरोहित", वे लिखते हैं, "स्वर्ग की कुँजी हाथों में लिये रहता हैः वही द्वार खोलताः वही भले प्रभु का कारिन्दा है; उनकी चीज़ों का प्रशासक है।" क्यूर दे आर्स ने यह भली प्रकार समझ लिया था कि वह समुदाय कितना अनुगृहित होता है जिसकी सेवा किसी भले एवं पवित्र पुरोहित द्वारा की जाती हैः "एक भला गड़ेरिया, ईश हृदय के अनुकूल मेषपाल एक ऐसा विशाल कोष है जो ईश्वर किसी पल्ली को दे सकते हैं, ईश करूणा का महान वरदान।" सन्त जॉन मेरी वियानी की मध्यस्थता से, आयरलैण्ड में पौरोहित्य पुनः सजीव हो उठे तथा आयरलैण्ड की सम्पूर्ण कलीसिया पुरोहितिक मिशन के वरदान को सराहने में विकसित होते रहे।


इस स्थल पर मैं उन सबके प्रति, पहले से ही, आभार व्यक्त करता हूँ जो प्रेरितिक निरीक्षण एवं मिशन के आयोजन में संलग्न रहेंगे।। साथ ही मैं, सम्पूर्ण आयरलैण्ड के, उन सब स्त्री पुरुषों के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ जो कलीसियाई वातावरण में बच्चों की सुरक्षा हेतु काम कर रहे हैं। जब से कलीसिया में बच्चों के यौन दुराचार सम्बन्धी समस्या की गम्भीरता एवं संगीनता को समझा जा सका है तब से इस समस्या को सम्बोधित करने तथा इसका सुधार करने के लिये, कलीसिया ने, विश्व के विभिन्न भागों में, अपरिमित कार्य किये हैं। पहले से विद्यमान प्रक्रियाओं को सुधारने एवं नवीकृत करने के किसी भी प्रयास को विफल नहीं होने दिया जाना चाहिये तथापि, इस तथ्य से मैं प्रोत्साहित हूँ कि बच्चों की सुरक्षा के लिये, विश्व के कुछ भागों में, स्थानीय कलीसियाओं द्वारा उठाये गये कदमों को, अन्य संस्थाओं के अनुकरण के लिये, आदर्श माना जा रहा है।


आयरलैण्ड की कलीसिया के लिये विशिष्ट प्रार्थना द्वारा मैं अपने इस पत्र को समाप्त करना चाहता हूँ जिसे मैं आपको उस पिता रूप में प्रेषित कर रहा हूँ जो अपनी सन्तानों के प्रति उत्कंठित है, उस ख्रीस्तीय भाई के स्नेह सहित जो भाई के प्रति चिन्तित है तथा उस दुःखी कलीसियाई सदस्य रूप में जो अपनी प्रिय कलीसिया में जो कुछ हुआ उसे आश्चर्यचकित एवं संतप्त है। अपने परिवारों, पल्लियों तथा समुदायों में आप जब भी इस प्रार्थना का पाठ करें तब पवित्र कुँवारी मरियम आपकी रक्षा करें तथा आप में से प्रत्येक को उनके, क्रूसित एवं पुनर्जीवित, पुत्र के निकट आने में मदद दें। आपके प्रति अपार स्नेह तथा ईश्वर की सच्ची प्रतिज्ञाओं में विश्वास के साथ, मैं, प्रभु में सम्बल एवं शांति के प्रण रूप में, आप सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।


वाटिकन से, 19 मार्च 2010, सन्त योसफ के पर्व दिवस पर
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें


आयरलैण्ड की कलीसिया के लिये प्रार्थना


हमारे पूर्वजों के ईश्वर,
हमें उस विश्वास में नवीकृत कर जो हमारा जीवन एवं हमारी मुक्ति है,
उस आशा को जो क्षमा एवं आन्तरिक नवीनीकरण की प्रतिज्ञा करती,
उस उदारता को जो हमें शुद्ध करता तथा हमारे मन के द्वारों को खोलता है,
ताकि हम आपसे प्रेम कर सकें तथा आपमें हमारे प्रत्येक भाई एवं प्रत्येक बहन से प्यार कर सकें।


हे प्रभु येसु ख्रीस्त,
आयरलैण्ड की कलीसिया, सत्य और भलाई, पवित्रता एवं समाज के प्रति उदार सेवा के ख़ातिर
युवा लोगों की शिक्षा सम्बन्धी अपने चिरकालीन समर्पण को नवीकृत करे।


पवित्रआत्मा, सान्तवनादायक, परामर्शदाता एवं मार्गदर्शक,
आयरलैण्ड की कलीसिया में,
पवित्रता एवं प्रेरितिक उस्ताह के नये वसन्त को उत्प्रेरित करें।


हमारा दुःख एवं हमारे आँसू,
अतीत की ग़लतियों को सुधारने हेतु हमारे निष्कपट प्रयास,
तथा सुधार हेतु हमारा दृढ़ संकल्प,
आयरी समाज की आध्यात्मिक प्रगति
और सम्पूर्ण मानव परिवार में, उदारता, न्याय, आनन्द एवं शांति के विकास हेतु,
हमारे परिवारों, पल्लियों, स्कूलों एवं समुदायों में विश्वास को सुदृढ़ करते हुए,
कृपा की विपुल फसल उत्पन्न करें।


आयरलैण्ड का रानी, हमारी माता, मरियम
तथा सन्त पैट्रिक, सन्त ब्रिजिट एवं समस्त सन्तों के
ममतामयी संरक्षण में विश्वास करते हुए
हम स्वतः को, अपनी सन्तानों को एवं आयरलैण्ड की कलीसिया की आवश्यकताओं को,
त्रियेक ईश्वर के सिपुर्द करते हैं।
आमेन।








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