2010-04-06 12:00:44

नई दिल्लीः राष्ट्रीय सांख्यकी में धर्म बना चिन्ता का कारण


भारत ने पहली अप्रैल से आधिकारिक जनगणना आरम्भ की है किन्तु कुछ कलीसियाई धर्माधिकारी इस बात के प्रति चिन्तित हैं कि इस प्रक्रिया में धर्म के आधार पर किस प्रकार लोगों को गिना जायेगा।

भारत में प्रति दसवें वर्ष जनगणना की जाती है। संख्या की दृष्टि से यह विश्व की सर्वाधिक विशाल जनगणना है। भारत में सम्पन्न यह 15 वीं जनगणना है जिसके दौरान 25 लाख अधिकारी घर घर जाकर लोगों की गिनती करेंगे।

चर्च ऑफ नॉर्थ इन्डिया के महासचिव प्रॉटेस्टेण्ट पादरी ईनोस प्रधान ने पत्रकारों से कहा कि जनगणना का पहला चरण घर परिवार तक सीमित रहता है किन्तु इसके दूसरे चरण में धर्मानुयायियों की सही गणना हो सकेगी या नहीं यह हमारी चिन्ता का विषय है।

काथलिक एवं प्रॉटेस्टेण्ट चर्च के धर्माधिकारियों ने जनगणना को विकास के लिये अपरिहार्य बताकर इसका स्वागत किया है। तथापि, उन्होंने इस बात के प्रति चिन्ता भी व्यक्त की है कि लोगों के धर्म को किस प्रकार रिकॉर्ड किया जाता है क्योंकि सन् 2001 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों की संख्या दो करोड़ चालीस लाख बताई गई थी जो ख्रीस्तीय संगठनों द्वारा प्रकाशित आँकड़ों से मेल नहीं खाती थी।

ग़ौरतलब है कि सरकारी सुविधाओं से वंचित न रह जाने के भय से बहुत से दलित ख्रीस्तीय स्वतः को हिन्दु धर्मानुयायी बताते है।

भारतीय संविधान में बौद्ध, हिन्दु एवं सिक्ख दलितों को सरकारी नौकरियों, शिक्षण संस्थानों तथा आवास योजना आदि में सुविधाएँ प्रदान की जाती है किन्तु दलित ख्रीस्तीयों को ये सुविधाएँ नहीं मिलती है।

इस सन्दर्भ में काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फादर बाबू जोसफ ने कहा कि ख्रीस्तीय दलों ने असली समस्या को उजागर किया है और वह यह कि सरकारी सुविधाओं से वंचित रह जाने के भय से दलित ख्रीस्तीय अपनी पहचान बताने से डरते हैं। उन्होंने कहा कि यह दलित ख्रीस्तीयों के विरुद्ध भारतीय सरकार का क्रमबद्ध अन्याय है। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय लोग इसीलिये धर्म का भेदभाव किये बिना दलितों के विकास की मांग करते रहे हैं।

ख्रीस्तीय संगठनों द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार भारत की ख्रीस्तीय जनता में लगभग साठ प्रतिशत लोग दलित मूल के हैं।








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