गुड फ्राइडे और पास्का रविवार के मध्य पड़नेवाले शनिवार को माता कलीसिया पवित्र या पुण्य
शनिवार मानती है। इस दिन मातम और गम के साये में ख्रीस्तीय विश्वासी माता मरियम के दुःखों
पर विशेष चिंतन करते हैं।
क्रूस पर मरने से पूर्व प्रभु येसु ने अपनी प्रिय
और पवित्र माँ को प्रेरित योहन को सौंपते हुए उन्हें कलीसिया और सम्पूर्ण मानवजाति की
माता बना दिया। मानवजाति की महान मुक्ति योजना के पूरी होने के लिए माँ मरियम के बुलावे
और उनकी उल्लेखनीय भूमिका पर चिंतन करना सार्थक होगा। पवित्र धर्मग्रंथ बाइबिल में हम
पढ़ते हैं कि मरियम ईश्वर के द्वारा संसार को बचाने की उनकी योजना में एक विशेष भूमिका
अदा करने के लिए बुलाई गयी। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने मानवजाति को पाप और बुराई की जंजीरों
से मुक्त करने की अपनी योजना को पूरा करने के लिए गलीलिया को नाजरेत की एक कुँवारी को
चुना जिसका नाम मरियम था। इस बुलावे का वृत्तांत हम संत लुकस रचित सुसमाचार के अध्याय
1 के 26 से 38 पदों में पढ़ते हैं। स्वर्गदूत गब्रियल के अभिवादन और उनके संदेश के अंत
में मरियम ने कहा- देखिए मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये। इस हाँ
को पूरा करने के लिए, इस बुलावे को पूरा करने के लिए माता मरियम ने बड़े बड़े कष्ट उठाया
और दुःख भोगा। उन्होंने हर संकट को धैर्यपूर्वक सहते हुए ईश्वर की असाधारण मुक्ति योजना
में पूरा सहयोग किया। उन्होंने अटूट विश्वास रखा कि ईश्वर ने जो कहा है वह पूरा होगा।
सुसमाचार बताता है कि मरियम ने ईश्वर के वचन को सुना और उसका पालन किया। उन्होंने अपने
जीवन के हर पल ईश्वर द्वारा की गयी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखा। अपने पुत्र के आदर्श का अनुकरण
करते हुए वे हम सब के लिए हमारे अपने जीवन की यात्रा में ईश्वर की योजना को पूरी होने
देने का महान आदर्श हैं।
मनुष्य बने ईश पुत्र की माता होने के लिए बुलायी
गयी मरियम अपने अस्तित्व के प्रथम क्षण से ईश्वर की कृपा से परिपूर्ण की गयी थीं। जिस
प्रकार वह येसु की माता थी उसी प्रकार वह उनके रहस्यमय शरीर अर्थात् कलीसिया के सदस्यों
की माता होने के लिए बुलाई गयी थीं। मरियम येसु के जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके आनन्द
और दुःखों में घनिष्ठ रूप से सहभागी हुईं। मरियम के जीवन में जीवनदायी और जीवनविनाशी
ताकतों का निरंतर संघर्ष चलता रहा। उनके दुःखों का कोई अंत नहीं था।
माता
मरियम ने अपने जीवन की सब घटनाओं में अपने पुत्र में भरोसा रखा और ईश्वर के प्रेम में
अपना विश्वास कभी नहीं खोया। इसी कारण से वह सबके लिए आशा और भरोसे का सर्वोत्तम चिह्न
हैं। जिस स्वतंत्रता को उन्होंने प्राप्त किया उसका आनन्द हम भी उठा पायेंगे यदि हम उनके
समान ईमानदार बने रहें और ईश्वर पर भरोसा रखें। माता मरियम विश्वासियों की आशा और भरोसा
हैं।
बाइबिल में हम पाते हैं कि क्रूस पर मरने से पूर्व येसु ने अपनी माता को
और उनके पास अपने उस शिष्य को जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा-
भद्रे यह आपका पुत्र है। इसके बाद उन्होंने शिष्य से कहा- यह तुम्हारी माता है। उस समय
से उस शिष्य ने मरियम को अपने यहाँ आश्रय दिया। अपनी माता को संत योहन की माता के रूप
में देकर येसु ने अपनी माँ को शिष्यों की माता होने के लिए दे दिया। जिस प्रकार ईश्वर
का प्रेम परिवार में बच्चे तक पहुँचता है उसी तरह उनका प्रेम मरियम के द्वारा विशाल परिवार
कलीसिया और सम्पूर्ण मानवजाति तक पहुँचता है। अपने पुत्र की मृत्यु के बाद हम मरियम को
येसु के प्रेरितों से संयुक्त होते हुए उनके साथ सहभागिनी होते हुए और प्रार्थना करते
हुए पाते हैं।
माँ मरियम के सात महादुःखों का पर्व काथलिक कलीसिया 15 सितम्बर
को मनाती है। ये सात महादुःख हैं- धर्मी तथा भक्त पुरूष सिमेयोन की भविष्यवाणी, मिश्र
देश पलायन करना, मंदिर में बालक येसु का खो जाना, क्रूस मार्ग में मरियम की येसु से भेंट,
क्रूस के नीचे मरियम की उपस्थिति, येसु के शव को ग्रहण करना और येसु के शव को कब्र में
रखे जाने को देखना।
यदि हम में मरियम के समान ईश्वरीय योजना के प्रति विश्वास
है तो हम भी न्याय और स्वाधीनता प्राप्त करने के लिए पड़ोसियों के साथ मिलकर कार्य करेंगे
जिसकी हम सब लालसा करते हैं। निष्कपट प्रेम, सच्चे दिल से पड़ोसी और ईश्वर की सेवा, संकट
में धैर्य रखना, प्रार्थना में लीन रहना, अत्याचारियों के लिए ईश्वर से आशीर्वाद माँगना,
आनन्द मनानेवालों के साथ आनन्द मनाना औौर रोनेवालों के साथ शोकित होना, आपस में मेल मिलाप
बनाये रखना, घमंडी न होना, दीन दुःखियों की सेवा करना इत्यादि ये सब प्रमुख गुण हैं जो
हमें ईश्वरीय राज्य के मूल्यों की स्थापना करने में सहायता करते हैं।
भक्त और
श्रद्धालु जन माता मरिया की शरण में आते हैं। पीडि़त लोग मानते हैं कि माता मरियम बहुत
अच्छी तरह से यह जानती और समझती हैं कि तकलीफ उठाने का क्या अर्थ होता है। उन्होंने अनेक
दुःख संकटों का सामना किया और इसी कारण वह सब प्रकार की गुलामी और अन्याय से स्वतंत्रता
पाने के मानव की लालसा को भली भाँति समझती हैं। माता मरियम हमें सहायता करती हैं कि हम
देख सकें ईश्वरीय योजना को पूरा होने में कष्ट और तकलीफें बाधक नहीं अपितु सहायक ही सिद्ध
होती हैं। पवित्र शनिवार के दिन माता मरियम के जीवन और दुःखों पर विचार करते हुए ईश्वर
की कृपादृष्टि को पहचानें। माता मरियम द्वारा दिखाये मार्ग पर चलकर अपने जीवन के लिए
ईश्वर की जो योजना है उसे दैनिक जीवन में पहचानने और जीने का ईमानदार प्रयास करते रहें
और इस तरह सम्पूर्ण मानव जाति को अनन्त जीवन की ओर उन्मुख करने में छोटा लेकिन महत्वपूर्ण
योगदान दें।
माता मरियम के दुःखों पर चिंतन करने के बाद अब हम स्वयं को आध्यात्मिक
और मानसिक रूप से तैयार करें ताकि प्रभु येसु के पुनरूत्थान का महोत्सव, ईस्टर अर्थात्
पास्का पर्व मना सकें।