2010-03-27 20:17:53

ईसाई-विरोधी हिंसा में मारे गये ईसाइयों को ‘शहीद’ का दर्ज़ा मिले – महाधर्माध्यक्ष चीनथ


भुवनेश्वर, 27 मार्च, 2010 शनिवार (उकान) कटक-भुवनेश्वर के महाधर्माध्यक्ष रफाएल चीनथ ने आशा व्यक्त की है कि ईसाई विरोधी हिंसा के दौरान अपने ख्रीस्तीय विश्वास के लिये मारे गये लोगों को ‘शहीद’ का दर्ज़ा दिया जा सकेगा।
महाधर्माध्यक्ष ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने 26 मार्च को उकान संवाददाता से बातें कीं।
महाधर्माध्यक्ष चीनथ ने कहा कि एक समिति उन तथ्यों को जमा कर रही है जिससे मारे गये लोगों को ‘शहीद’ का दर्ज़ा देने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि 17 मार्च को हुए महाधर्मप्रांतीय सभा में एक 5 सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया है जो उड़ीसा में सन् 2008 के हिंसा में मारे गये लोगों के संबंध में तथ्यों को इकट्ठा करेगी ताकि उन लोगों को ‘शहीद’ बनाये जाने की प्रक्रिया आगे बढ़ सके।
महाधर्मप्रांत के विकर जेनरल ने कहा फादर जोसेफ कालाथिल ने कहा है कि कलीसिया की ओर से धर्म के लिये अपने प्राण देने वालों के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
पौल प्रधान नामक एक आदिवासी ईसाई नेता ने कहा कि जिन ईसाइयों ने धर्म के लिये अपने जीवन का बलिदान कर दिया है वह बेकार नहीं जायेगा। उनके बलिदान से अनेकों पीढ़ियों के लोग प्रेरणा प्राप्त करते रहेंगे।
विदित हो कि ईसाई विरोधी हिंसा के समय पौल प्रधान बाल-बाल बच गये थे। कलीसिया उनके जीवन को एक आदर्श के रूप में सदा याद करेगी। उन्होंने बताया कि जो ईसाई मारे गये वे बहुत ही गरीब और बेसहारे थे उन्होंने अपने विश्वास के लिये अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। निर्धन किन्तु उनके दृढ़ साहस को देखकर उन्हें मारने वालों को भी शामत आयी होगी।
बेरहमपुर के धर्माध्यक्ष सरतचन्द्र नायक ने कहा कि कलीसिया को इस संबंध में ‘दोबारा विचार करने’ की आवश्यकता है। बस इसके लिये ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि शहीद बनाये जाने की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण किन्तु अर्थपूर्ण है। उधर मोन्टफोर्ट ब्रदर वर्गीस थेकान्नाथ ने कहा है कि पूरी भारतीय कलीसिया को उड़ीसा में ‘शहीद’ हुए ईसाइयों की पर गर्व है। ज्ञात हो ब्रदर वर्गीस वकीलों की सहायता से हिंसा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिये प्रयासरत हैं।
ऑल इंडिया क्रिश्चियन कौंसिल के सचिव जोन दयाल ने कहा कि उड़ीसा ईसाई विरोधी हिंसा में मारे गये लोगों ने अपने को ‘शहीह’ बनाने की माँग नहीं की है पर भारत की कलीसिया चाहती है कि वे शहीद के रूप में याद किये जायें।
जोन दयाल ने कहा है कि उड़ीसा में मरे एक-एक व्यक्ति के रक्त ने भारत की कलीसिया को ऐसी शक्ति प्रदान की हैं कि वे येसु के लिये अपना जीवन समर्पित कर सकें।
ज्ञात हो कि सन् 2008 में 24 अगस्त को उस समय एक ईसाई विरोधी हिंसा की लहर फैली जब एक हिंदु धार्मिक नेता की माओवादियों ने हत्या कर दी थी। सात सप्ताह तक चले इस हिंसा में सरकारी सूत्रों के अनुसार 90 ईसाइयों ने अपनी जान गंवायी थीं।




















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