वाटिकन सिटी, 13 मार्च 2010 शनिवार (ज़ेनित) संत पाप बेनेदिक्त सोलहवें की किताब ‘जीज़स
ऑफ नाज़रेथ’ का द्वितीय भाग जल्द ही प्रकाशित कर दिया जायेगा। रोम स्थित अपोस्तोलोरुम
यूनिवर्सिटी में गुरुवार 11 मार्च को आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए संस्कार और पूजन
विधि के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल अंतोनियो कनीज़ारेस ने उक्त
बात की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संत पापा की किताब ‘जीज़स ऑफ नाज़रेथ’ के दूसरे भाग
में संत पापा ने ‘दोमिनुस येसुस’ पर अपना चिंतन प्रकट किया है। उन्होंने बताया कि
‘दोमिनुस इयेसुस’ में येसु मसीह और कलीसिया द्वारा की जाने वाली सार्वभौमिक मुक्ति की
विशिष्टता की चर्चा करती है। उन्होंने कहा कि ‘जीज़स ऑफ नाज़रेत’ का द्वितीय भाग
कलीसिया के उस दस्तावेज़ को पूर्ण रूप से लागू करने का प्रयास करता है जिसे 10 साल पहले
विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति ने प्रकाशित किया था। विदित हो
कि उस समय इस समिति के अध्य़क्ष कार्डिनल जोसेफ रैटसिंगर अर्थात् स्वयं सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें थे। कार्डिनल अंतोनियो ने बताया कि दस साल पहले जिस दस्तावेज़ की घोषणा की
गयी थी वह ‘एक प्रभावकारी दस्तावेज़’ है। दस्तावेज़ प्रभावकारी इसलिये है क्योंकि
यह बताता है कि येसु ही एकमात्र मसीहा है जो कुछ उदारवादी विचारकों के मत के ठीक विपरीत
है। उदारवादी विचारकों का मानना है कि येसु की प्रकाशना दूसरे धर्मों के सिद्धांतों के
साथ मिलकर पूर्ण होती है। कार्डिनल ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि सापेक्षवाद
कई बार येसु की सत्यता को छुपा देता है। उन्होंने कहा कि आज ज़रूरत है इस बात की
है कि कलीसिया अपना नवीनीकरण करे और येसु में अपना विश्वास मजबूत करे। कार्डिनल ने
इस बात को भी बताया कि ‘दोमिनुस इयेसुस’ अन्य धर्मों का पूरा सम्मान करती है पर इसका
यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिये कि सब धर्म समान हैं। विदित हो कि संत पापा द्वारा
लिखित किताब ‘जीज़स ऑफ नाज़रेत’ के पहले भाग का प्रकाशन सन् 2007 में हो चुका है जिसमें
संत पापा ने येसु का बपतिस्मा, ईश्वर का राज्य, पर्वत पर प्रवचन, पिता परमेश्वर, चेले,
दृष्टांत और संत योहन के सुसमाचार में प्रस्तुत येसु के विभिन्न प्रतीकात्मक रूपों पर
अपने चिन्तन प्रस्तुत किये हैं। ‘जीज़स ऑफ नाज़रेत’ के दूसरे भाग में संत पापा ने
येसु के दुःखभोग और मृत्यु पर अपने चिन्तन प्रस्तुत किये हैं।