2010-03-10 20:52:34

बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
10 मार्च, 2010


वाटिकन सिटी, 10 मार्च, 2010 बुधवार (सेदोक) बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा


प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में हम मध्ययुगीन ख्रीस्तीय संस्कृति के बारे में चिन्तन करते हुए फिर एक बार संत बोनावेन्तुरा के जीवन पर विचार करें।

संत बोनावेन्तुरा तेरहवीं शताब्दी के एक महान् ईशशास्त्री थे। आज हम उनके उन पुस्तकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसमें उन्होंने सृष्टि की चर्चा की है। यह वही समय था जब फियोरे के एक धर्माचार्य जोवाकिम की भविष्यवाणी पूरी होने लगी थी।

फ्रांसिस्कन धर्मसमाज ने अपनी आध्यात्मिकता में पवित्र आत्मा को विशिष्ट स्थान देना आरंभ किया था। संत बोनावेन्तुरा सदा चाहते थे कि असीसी के संत फ्रांसिस की बातों की सही व्याख्या करें इसलिये उन्होंने फ्रांसिस्कन धर्मसमाज के इस झुकाव का विरोध किया।

उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और येसु मसीह ईश्वर द्वारा उच्चरित एकमात्र और पूर्ण शब्द हैं। इसलिये केवल एक ही सुसमाचार है और येसु मसीह की कलीसिया को छोड़ और कोई दूसरी कलीसिया नहीं है।

उन्होंने कहा कि येसु जो देहधारी शब्द है उस रहस्य को पूर्ण रूप से समझना आसान नहीं है। हम इसे जितना समझने का प्रयास करते हैं हम उतना ही नये जीवन का अनुभव करते जाते हैं।

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि फ्रांसिस्कन धर्मसमाज आदर्शवादी आध्यात्मिकता पर स्थापित नहीं की जा सकती है।

बोनावेन्तुरा ने दो और आध्यात्मिक किताबें लिखीं ‘मेनतस इन देउम’ और ‘दे त्रिपलिची भिया’। एक में उन्होंने ईश्वर के साथ पूर्ण रूप से एक हो जाने की चर्चा की है कि तो दूसरे में उन्होंने तीन मार्गों के बारे में बताया है।

उनके अनुसार व्यक्ति को ईश्वर से एक होने के लिये नम्रतापूर्वक पाप से दूर रहने के लिये प्रयास करना है, प्रार्थनामय जीवन के द्वारा अंतर्दृष्टि प्राप्त करना है और येसु का अनुकरण करना है।

अपनी किताप ‘द जर्नी ऑफ द माईन्ड टू गॉड में उन्होंने इस बात पर बल दिया कि एक व्यक्ति कैसे सृष्टि की वस्तुएँ पर मनन करते हुए तृत्त्वमय ईश्वर का व्यक्तिगत अनुभव कर सकता है।

बोनावेन्तुरा ने अपने किताबों के द्वारा येसु को पूरे ईशशास्त्र का केन्द्र में करने के प्रयास किया।

आज उनके विचार हमें इस बात के लिये आमंत्रित कर रहे हैं कि हम येसु के दिव्य वचनों को अपने दिल में स्वीकार करें और ईश्वर के अनन्त प्रेम का गहरा अनुभव करें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया



उन्होंने इंगलैंड और आयरलैड के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों, विद्यार्थियों तथा उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा एवं शांति की कामना की और उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।









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