संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें पौरोहित्य जीवन पर मनन-चिन्तन किया
वाटिकन सिटी, 1 मार्च, 2010 सोमवार (ज़ेनित) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने अपने
चालीसाकालीन आध्यात्मिक साधना के अंतिम दिन पौरोहित्य जीवन पर मनन-चिन्तन किया।
शनिवार
27 फरवरी को संत पापा और वाटिकन में कार्यरत धर्माधिकारियों की चालीसाकालीन आध्यात्मिक
साधना सम्पन्न हुई।
इस वर्ष सलेशियन फादर एनरिको दल कोभोलो ने आध्यात्मिक साधना
के दौरान प्रवचन किया। इस वर्ष आध्यात्मिक साधना की विषय वस्तु पुरोहितीय जीवन में ईश्वर
और कलीसिया की शिक्षा पर आधारित थी।
आध्यात्मिक साधना के सफल संचालन के लिये
संत पापा ने फादर एनरिको के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।
उन्होंने कहा कि फादर एनरिको
ने पौरोहित्य जीवन के बारे में अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार प्रवचन दिये जिससे उन्हें
ईश्वर के प्रति अपने समर्पण की गहराई को समझने में मदद मिली।
संत पापा ने आध्यात्मिक
साधना के अपने अनुभव के बारे में बताते हुए कहा उनकी प्रार्थना सोलोमोन की प्रार्थना
से आरम्भ की गई थी। सोलोमोन की प्रार्थना का सार है एक ऐसे दिल का अनुरोध जो ईश्वर की
आवाज़ सुनता है और इसी को आधार बनाकर साधना के अन्य विषयों को प्रस्तुत किया गया।
संत
पापा ने कहा कि व्यक्ति पूर्ण नहीं है पर जब वह ईश्वर को सुनने का आदी हो जाता है तब
वह अपनी असलियत को पहचान कर पूर्णता की ओर आगे बढ़ता है।
संत पापा ने अपने सप्ताह
भर के अनुभव को याद करते हुए कहा कि माता मरिया भी सदा ही ईश्वर की आवाज़ सुना करती थी।
ईश्वर के शब्दों को सुनते-सुनते ही उन्होंने अनादि शब्द को धारण किया बाद में सदा ही
इसे अनादि शब्द के साथ एक होकर जीवन बिताती रही।
संत पापा ने फादर एनरिको को
इस बात के लिये भी धन्यवाद दिया कि उन्होंने अंतियोख के संत इग्नासियुस और संत पापा
जॉन पौल द्वितीय जैसे महान् पुरोहितों का नमूना प्रस्तुत किया जिनके जीवन से उन्हें एक
पुरोहित के जीवन और समर्पण को समझने में मदद मिली।
संत पापा ने कहा आध्यात्मिक
साधना से प्रेरणा पाकर अब वे अपने मिशन को और अधिक विश्वास के साथ पूरा करने के लिये
प्रेरित हुए हैं।