जैव नैतिकता को प्राकृतिक विधान की ज़रूरत – संत पापा
वाटिकन सिटी, 15 फरवरी, 2010 सोमवार(ज़ेनित): संत पापा ने इस बात की पुष्टि की है कि
जैव नैतिकता को अपने वैज्ञानिक विकासों के बावजूद प्राकृतिक विधान की ज़रूरत है ताकि
यह मानव मर्यादा की रक्षा कर सके।
संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने
शनिवार 13 फरवरी को जीवन रक्षा हेतु गठित परमधर्मपीठीय अकादमी के विद्धानों को, रोम में
आयोजित, उनकी आम सभा में संबोधित किया।
संत पापा ने कहा, "आज विज्ञान के अनवरत
विकास के में जैव नैतिकता एवं प्राकृतिक विधान के बीच विद्यमान सम्बन्ध की प्रासंगिकता
और अधिक सुसंगत प्रतीत होती है।"
उन्होंने कहा कि जैव नैतिकता के इर्द गिर्द
उपस्थित प्रश्न हमें इस तथ्य को पुष्ट करने की अनुमति देते हैं कि ये प्रश्न मानव शास्त्र
सम्बन्धी प्रश्न से घनिष्ट रूप से जुड़े हैं।
सन्त पापा ने कहा कि ऐसी समग्र
शैक्षणिक योजना की नितान्त आवश्यकता है जो इन प्रश्नों का सामना सकारात्मक, संतुलित और
रचनात्मक तरीके से कर सके, विशेष रूप से, विश्वास एवं तर्कणा की जब बात की जाये।
सन्त
पापा ने कहा कि मानव प्रतिष्ठा वह मूलभूत सिद्धान्त है जिसकी क्रूसित और पुनर्जीवित येसु
पर विश्वास ने सदैव की है, विशेष रूप से, जब दीन हीन तथा दुर्बल व्यक्तियों की प्रतिष्ठा
की बात आती है क्योंकि ईश्वर, अद्वितीय एवं गहन ढंग से, प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करते
हैं।
संत पापा ने कहा जैव विज्ञान को भी अन्य विज्ञानों की तरह ही इस बात को
याद कराये जाने की आवश्यकता है कि मानव जीवन सम्बन्धी सवालों का ज़वाब देने में वह प्राकृतिक
विधान का स्मरण करे जो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय पर अंकित है।
संत पापा ने आगे
कहा कि जैव विज्ञान और प्राकृतिक नैतिक नियम दोनों का एक साथ मंच में आना इस बात की पुष्टि
करता है कि गर्भ के प्रथम क्षण से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक मानव मर्यादा बरकरार रहती
है।
संत पापा ने इस बात को रेखांकित किया कि मानव जीवन को सदैव इस दृष्टि से
देका जाना चाहिये कि उसके कुछ अलंघनीय अधिकार हैं तथा उसे कभी भी बलशाली की इच्छा के
अधीन नहीं किया जाना चाहिये।
संत पापा ने स्पष्ट किया कि सम्पूर्ण मानव जाति
के लिये सामान्य मापदण्ड उत्पन्न करनेवाले सार्वभौमिक सिद्धान्तों की नितान्त आवश्यकता
है अन्यथा वैधानिक स्तर पर आपेक्षिकीय प्रवृत्ति की ओर झुकने का ख़तरा सदैव बना रहेगा।