2010-02-10 19:48:02

बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश
10 फरवरी, 2010






रोम, 13 जनवरी, 2010 (सेदोक) । बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में संबोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहाः-

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, हम आज की धर्मशिक्षामाला में मध्य युगीन ईसाई संस्कृति के बारे में विचार करना जारी रखते हुए, पादुवा के संत अंतोनी के जीवन पर विचार करें। संत अंतोनी संत फ्रांसिस के समकालीन थे जिन्होंने फ्रांसिस्कन ईशशास्त्रीय और आध्यात्मिक परंपरा की नींव डाली थी।

अंतोनी का जन्म लिसबन में हुआ था। आरंभ में अंतोनी ने संत अगुस्तिनियन धर्मसमाज के कैनन बने और बाद में उन्हें संत फ्रांसिस्कन धर्मसमाज के धर्माधिकारी बनाये गये।

उनकी वाकपटूता और बुद्धिमता ने उन्हें एक प्रभावशाली उपदेशक बना दिया। उनके उपदेशों की एक विशेषता थी कि इसमें धर्मग्रंथ की बातों की व्याख्या, परंपरागत आध्यात्मिकता और ख्रीस्तीय विश्वास को सुदृढ़ करने की क्षमता होती थी।

उन्होंने अपने प्रवचन में प्रार्थना को बहुत मह्त्त्व दिया। उन्होंने प्रार्थना का अर्थ समझाते हुए कहा कि प्रार्थना ईश्वर के साथ आध्यात्मिक वार्त्तालाप है और इससे व्यक्ति के दिल में आंतरिक आनन्द की अनुभूति होती है।

उनकी बातों में इस फ्रांसिस्कन आध्यात्मिकता की स्पष्ट झलक मिलती है। फ्रांसिस्कन आध्यात्मिकता में ईश्वरीय प्रेम पर अधिक बल दिया जाता है। उनका मानना है कि ईश्वरीय प्रेम से ही आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है जो हमारे जीवन के बदल डालता है।

अंतोनी का जीवनकाल आर्थिक विकास का समय था और ऐसे समय में अंतोनी ने लोगों का ध्यान आध्यात्मिक सम्पन्नता की ओर खींचने का प्रयास किया।

प्रवचन देते हुए उन्होंने लोगों से अपील की कि वे निर्धनों के ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील बनें। फ्रांसिस्कन धर्मसमाजियों की एक विशेषता यह है कि वे येसु के जीवन पर मनन-चिन्तन करने को प्रोत्साहन देते हैं ख़ास करके येसु के जन्म और उसके क्रूसित होने की घटना को।

पुरोहितों को समर्पित इस वर्ष में आइये हम संत अंतोनी की मध्यस्थता से प्रार्थना करें कि कलीसिया के उपदेशकों के दिल में येसु के प्रति अगाध प्रेम हो, वे प्रार्थना के द्वारा ईश्वर से जुड़े रहें और ईश्वर के वचन की सच्चाई के अनुसार अपना जीवन जीयें।

इतना कहकर उन्होंने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने डेनमार्क, इंगलैंड, लूथरन कलीसिया के एक विशेष अमेरिकी दल और देश-विदेश से आये तमाम तीर्थयात्रियों, पर्यटकों एवं उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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