कोढ़ रोग से ग्रस्त लोगों के पुनर्वास के लिये सरकार उचित कदम उठाये
मुम्बई, 1 फरवरी, 2010 सोमवार, (एशियान्यूज़)। कोढ़ रोगियों के पुनर्वास के लिये बनाये
गये आश्रम ‘स्वर्ग-द्वार’ के निदेशक जेस्विट फादर विजय रायाराला ने कहा है कि सरकार
का यह दावा कि देश से कोढ़ की बीमारी से पूर्ण मुक्ति मिल गयी है, सही नहीं है। उक्त
बातें फादर विजय ने उस समय कहीं जब एशिया समाचार के संवाददाता ने 31 जनवरी रविवार को
विश्व कोढ़ दिवस के अवसर पर फादर विजय से बातचीत की। फादर विजय ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण
है कि भारत में अभी करीब हज़ारों लोग कोढ़ की बीमारी से ग्रस्त हैं। उन्होंने बताया
कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्येक दस
हज़ार में एक व्यक्ति लेपरोसी या कोढ़ बीमारी का शिकार पाया गया है। फादर विजय ने
कहा है कि यद्यपि कई व्यक्ति इस बीमारी से चंगे हो जाते हैं पर उनके पुनर्वास के लिये
सरकार को उचित कदम उठाना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि लेपरोसी एक ऐसी बीमारी रही
है जिसका कोई-न-कोई धार्मिक पहलु या अर्थ रहा है। उन्होंने बताया कि ईसाइयों के धर्मग्रंथ
बाइबल में इसकी चर्चा करते हुए नबी इसायस कहते हैं कि येसु क्रूस की मृत्यु स्वीकार कर
कोढ़ियों के समान बन गये ताकि पूरी दुनिया को बचा सकें। इसके साथ बाइबल हमें बताती
है कि येसु के लिये कोढ़ियों की चंगाई करने का अर्थ था सुसमाचार का प्रचार करना और स्वर्गीय
राज्य के आगमन की घोषणा करना। उन्होंने आगे बताया कि येसु के शिष्यों ने भी येसु
का अनुसरण करते हुए सदा ही कोढ़ियों की देख-रेख की और उनकी चंगाई के लिये प्रयास किये।
फादर विजय ने आगे कहा कि फ्रांसिस ऑफ असीसी ने एक कोढ़ी को चुम्बन देकर अपना स्नेह दिखाया
था। उधर फादर देमियन ने तो अपने पूरे जीवन को कोढ़ रोग से ग्रस्त लोगों के लिये
मोलोकाई नामक द्वीप में सपर्पित कर दिया था। विजय ने इस बात की भी जानकारी दी कि
येसु और इन दोनों संतों के उदाहरण पर चलते हुए आज भी कई धर्मसमाजी लेपरोसी से पीड़ित
लोगों की सेवा में अपना सारा जीवन अर्पित कर देते हैं। ‘स्वर्ग-द्वार’ के निदेशक
फादर विजय ने बताया कि देश के राष्ट्रपित महात्मा गाँधी के दिल में कोढ़ियों के प्रति
विशेष प्रेम था और उन्होंने वर्धा नामक स्थान में पारचुरे सास्त्री नामक एक कोढ़ी की
व्यक्तिगत रूप से सेवा किया करते थे।