2010-01-27 12:30:55


वाटिकन सिटीः जॉन पौल द्वितीय को सन्त क्यों घोषित किया जाये? मान्यवर ओडर की नवीन पुस्तक पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत


सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय पश्चाताप को अत्यधिक महत्व दिया करते थे और इसके लिये वे कई बार ज़मीन पर सोते, उपवास और परहेज़ करते तथा तप तपस्या एवं आत्मदमन करते थे।
स्व. सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के सन्त प्रकरण पर अध्ययन करनेवाले मान्यवर स्लावोमीर ओडेर ने मंगलवार, 26 जनवरी को "जॉन पौल द्वितीय को सन्त क्यों घोषित किया जाये?" शीर्षक से लिखी अपनी नवीन पुस्तक को पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किया।
मान्यवर ओडेर के अनुसार सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय द्वारा ज़मीन पर सोने, उपवास और परहेज़ करने तथा तप-तपस्या एवं आत्मदमन करने का उद्देश्य स्वतः को शुद्ध करना तथा ईश्वर के आधिपत्य एवं उनकी श्रेष्ठता को पुष्ट करना था।
मान्यवर ओडेर ने बताया कि जॉन पौल द्वितीय पर उनकी नवीन कृति की आधार धन्य घोषणा हेतु प्रस्तावित दस्तावेज़ तथा उन 114 व्यक्तियों द्वारा दिया गया साक्ष्य है जो स्व. सन्त पापा को व्यक्तिगत रूप से जानते थे।
मान्यवर ओडेर ने कहा कि जब जॉन पौल द्वितीय किसी रोग से पीड़ित नहीं थे तब वे खुद अपने शरीर को कोड़ों की मार से कष्ट पहुँचाते थे। उन्होंने कहा कि क्रैकाव के महाधर्माध्यक्ष रहते हुए तथा वाटिकन में कलीसिया के परमाध्यक्ष पद रहते हुए अनेक बार वे ज़मीन पर बिना दरी आदि सोते थे। इसके अतिरिक्त, यद्यपि स्व. सन्त पापा को खान पान में अभिरुचि थी तथापि चालीसाकाल के दौरान ही नहीं बल्कि पुरोहितों एवं धर्माध्यक्षों को अभिषिक्त करने से पूर्व भी वे उपवास करते थे।
सन् 1989 एवं 1994 में जॉन पौल द्वारा लिखे पत्रों का हवाला देकर मान्यवर ओडेर ने पत्रकारों को यह भी बताया कि सन्त पापा ने लिखा था कि यदि रोगवश या किसी अन्य कारण से वे कलीसिया के परमाध्यक्षीय कार्यभार सुचारू रूप से न निभा पाये तो वे पद त्याग देंगे।
ग़ौरतलब है कि सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय सन् 1978 से सन् 2005 में अपनी मृत्यु तक विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष थे।








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