बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश 27
जनवरी, 2010
रोम, 27 जनवरी, 2010। बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने पौल
षष्टम् सभागार में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने में कहा -
प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्म शिक्षामाला में हम मध्ययुगीन
ईसाई संस्कृति के बारे में चिंतन करना जारी रखते हुए असीसी के संत फ्रांसिस के जीवन पर
विचार करें।
कलीसिया के इतिहास में संत फ्रांसिस असीसी का महत्त्वपूर्ण स्थान
है। पूरी कलीसिया संत फ्रांसिस के जीवन से परिचित है विशेष करके येसु के प्रति उनके प्रेम
और ग़रीबों और दुःखित लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति से।
संत फ्रांसिस असीसी
ने अपने जीवन काल में संत क्लेर जैसे कुछ लोगों का एक समुदाय बनाया और संत पापा इन्नोसेंट
तृतीय के इस निवेदन के साथ पहुँचे कि उन्हें सुसमाचार का प्रचार करने और कलीसिया के नवीनीकरण
की अनुमति दी जाये।
क्रूसित येसु की भक्ति करते हुए संत फ्रांसिस को अपने जीवन
के अंतिम दिनों में ला भेरना नामक स्थान में ईश्वर की ओर से एक विशेष चिह्न प्राप्त
हुआ था । संत फ्रांसिस को इस बात पर दृढ़ विश्वास था कि येसु मसीह यूखरिस्तीय समारोह
में सशरीर उपस्थित रहते हैं।
संत फ्रांसिस को इस बात पर भी विश्वास करते थे कि
पूरी दुनिया की सृष्टि ईश्वर ने बनायी है। संत फ्रांसिस असीसी के जीवन और उनकी शिक्षा
ने अनगिनत लोगों के जीवन को प्रभावित किया और कई लोगों ने येसु मसीह का निकट से अनुकरण
करने के लिये अपने-आप को समर्पित किया।
आज संत फ्रांसिस का जीवन हमारे जीवन को
प्रभावित करे और हमें भी प्रेरणा दे कि हम भी ईश्वर को प्यार करें और उस आनन्द की आध्यात्मिक
अनुभूति प्राप्त करें जिसे येसु को निकटता से अनुसरण करने और उसके मार्ग में चलने से
प्राप्त होता है।
इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने
ऑस्ट्रेलिया जोर्डन, इस्राएल, जिब्राल्टर, हॉंगकाँग और अमेरिका के तीर्थयात्रियों, उपस्थित
लोगों विद्यार्थियों और उनके परिवार के सब सदस्यों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना
की और उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।