2010-01-06 12:46:36

देवदूत प्रार्थना से पूर्व सन्त पापा का सन्देश


प्रभु प्रकाश महापर्व के अवसर पर अर्पित ख्रीस्तयाग के उपरान्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इस प्रार्थना से पूर्व उन्होंने कहाः .........................

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
आज हम प्रभु प्रकाश का महापर्व मना रहे हैं, सब लोगों के समक्ष प्रभु प्रकाशना के रहस्य का महापर्व जिनका प्रतिनिधित्व यहूदियों के राजा की आराधना करने सुदूर पूर्व से पहुँचे विद्धानों ने किया (सन्त मत्ती 2,1-2)। इस घटना का वृत्तान्त सुनाने वाले सुसमाचार लेखक सन्त मत्ती इस तथ्य पर बल देते हैं कि किस प्रकार ये विद्धान, नबियों द्वारा पूर्वघोषित राजा एवं मसीह के जन्म की घोषणा करने हेतु उदित, तारे से दिशा पाकर बेथलेहेम पहुँचे। जैरूसालेम पहुँचने पर विद्धानों को प्रधान याजकों एवं फरीसियों से निश्चित स्थल, अर्थात दाऊद की नगरी, तक जाने के लिये संकेतों की आवश्यकता पड़ी (मत्ती 2, 5-6)। तारा और पवित्रधर्मग्रन्थ विद्धानों के लिये वे प्रकाश स्तम्भ सिद्ध हुए जिन्होंने उन्हें मार्गदर्शन दिया। ये विद्धान अब सत्य की खोज करने के लिये हमारे आदर्श हैं।"

सन्त पापा ने आगे कहाः... "ये विद्धान तारों एवं नक्षत्रों के शास्त्री थे तथा लोगों के इतिहास के ज्ञानी थे। एक विस्तृत भाव में ये विज्ञान के पण्डित थे जो ब्रहमाण्ड का अध्ययन करते रहते थे मानों वह मानव के लिये दैवीय संकेतों एवं सन्देशों से भरा एक महान एवं वृहद ग्रन्थ हो। अपने आप के लिये पर्याप्त मानने से कहीं दूर अपने ज्ञान को वे ईश्वरीय प्रकाशनाओं एवं अपीलों के लिये खुला रखते थे। वस्तुतः यहूदी धार्मिक नेताओं से धर्मशिक्षा सम्बन्धी सवाल करने में उन्हें किसी प्रकार की हिचक या लज्जा महसूस नहीं होती थी। वे आसानी से कह सकते थे कि हमें सबकुछ का ज्ञान है हमें किसी की ज़रूरत नहीं और इस प्रकार, हमारे युग की मानसिकता के अनुसार, विज्ञान एवं ईशवचन के बीच विद्यमान हर प्रकार के सम्बन्ध को तोड़ सकते थे। इसके विपरीत, येसु के दर्शन करनेवाले विद्धान नबूवतों को सुनते तथा उनका स्वागत करते हैं और जैसे ही बेथलेहेम की ओर यात्रा शुरु करते तारे को पुनः देखते हैं मानों मानवीय खोज एवं ईश्वरीय सत्य के बीच पूर्ण समन्वय की पुष्टि होते देखते हैं, ऐसी पुष्टि जो यथार्थ विद्धानों के हृदयों को आनन्द से परिपूर्ण कर देती है। उनकी खोज की यात्रा अपने चरमोत्कर्ष पर तब पहुँचती है जब वे शिशु को उनकी माता मरियम के संग देखते हैं(मत्ती 2,11)। सुसमाचार बताते हैं कि वे उनके आगे नतमस्तक हुए तथा उन्होंने उनकी आराधना की। वह दृश्य देखकर उन्हें निराशा भी हो सकती थी किन्तु इसके विपरीत सच्चे विद्धानों की तरह वे आश्चर्यचकित ढंग से प्रकाशित उक्त रहस्य के प्रति उदार रहे; तथा अपने प्रतीकात्मक उपहारों के द्वारा यह बता दिया कि उन्होंने राजा एवं ईशपुत्र येसु को पहचान लिया था। उनके ठीक इसी कृत्य में हम मसीही वाणी को पाते हैं जो इस्राएल के ईश्वर के प्रति विश्वमण्डल के देशों के समर्पण की उदघोषणा करते हैं।"

अन्त में सन्त पापा ने कहाः .... "तीन विद्धानों में एक और विशिष्ट बात प्रकट हुई और वह है प्रज्ञा एवं विश्वास के बीच विद्यमान एकताः यह तथ्य कि स्वप्न में हेरोद के विरुद्ध सावधान कर दिये जाने के बाद वे दूसरे रास्ते से अपने देशों को चले गये (मत्ती 2,12)। अपनी खोज को प्रतिध्वनित करने के लिये जैरूसालेम, हेरोद के महल और मन्दिर में वापस लौटना स्वाभाविक होता। किन्तु शिशु येसु को अपना राजा स्वीकार करनेवाले विद्धानों ने मरियम की या स्वयं ईश्वर की शैली में उनकी रक्षा करनी चाही। सत्य का साक्षात्कार कर उनका मन परिवर्तित हुआ, वे तृप्त हुए और जिस प्रकार से वे प्रकाशमान हुए थे उसी प्रकार वे मौन में विलुप्त हो गये। उन्होंने ईश्वर के नवीन मुखमण्डल, नवीन राजसी वैभव अर्थात् प्रेम की खोज कर ली थी। यथार्थ प्रज्ञा की आदर्श पवित्र कुँवारी मरियम, तर्कणा एवं विश्वास, विज्ञान एवं प्रकाशना के बीच विद्यमान घनिष्ठ सम्बन्ध को आत्मसात कर जीवन यापन में सक्षम, ईश्वर के सच्चे खोजकर्त्ता बनने में हमारी मदद करें।"

इतना कहकर सन्त पापा ने देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।









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